भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने में अब क्या दिक्कत बची है?
What problem remains now in India becoming a permanent member of the United Nations Security Council?
नई दिल्ली:। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा की 79वीं बैठक को संबोधित करते हुए भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने की सिफारिश की है।
उन्होंने अपने संबोधन में जी-4 (संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट मांगने वाले चार देशों का समूह) के देश जिसमें भारत, ब्राजील और जापान हैं, को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने की अपील की।
इसके अलावा सुरक्षा परिषद में रूस भारत की आजादी के बाद से ही भारत के स्थायी प्रतिनिधित्व का पक्षधर रहा है। इसके बाद 21वीं सदी आते-आते भारत की जैसे-जैसे विदेश नीति में धमक बढ़ी तो ब्रिटेन और अमेरिका भी भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधित्व के पक्षधर हो गए। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी सुरक्षा परिषद में नए देशों को एंट्री न मिलने और कई युद्ध में यूएन की सीमित भूमिका के बाद एक बयान में सुरक्षा परिषद को ‘आउटडेटेड’ करार दिया था।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब लगभग सभी देश भारत को स्थायी सदस्यता देने के पक्षधर हैं तो फिर पेंच फंसता कहां है?
इस सवाल का जवाब देते हुए राजनीतिक विश्लेषक अरविंद जयतिलक मानते हैं कि भारत के इस सवाल का जवाब चीन और अमेरिका हैं। वह कहते हैं, “चीन भले ही अब साउथ चाइना सी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने दबदबे के लिए भारत को खतरा मानता हो, लेकिन भारत की इस समस्या के लिए बहुत हद तक अमेरिका भी जिम्मेदार है। वर्तमान में चीन भारत को वीटो मिलने से रोकने के लिए सुरक्षा परिषद में वीटो कर देता है। या जब उसके पास कोई जवाब नहीं बचता तो वह पाकिस्तान को भी वीटो देने का अपना राग अलापने लगता है। इस मामले को चीन के एंगल से अलग भी समझना जरूरी है।”
वह आगे कहते हैं कि चीन तो भारत का धुर विरोधी है ही, लेकिन अमेरिका अभी जो यह भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने के लिए राजी हुआ है, यह स्थिति हमेशा नहीं थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का सोशलिस्ट लोकतंत्र होने की वजह से हम तत्कालीन सोवियत संघ के ज्यादा नजदीक थे। जिसकी वजह से अमेरिका हमारे खिलाफ था। जैसा हम 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी देख चुके हैं। यही वजह है कि अमेरिका हर जगह भारत का न सिर्फ विरोध करता था बल्कि भारत के खिलाफ अपने सारे सहयोगी देशों को भी इस्तेमाल करता था। यही वजह है कि अमेरिका का बनाया हुआ भारत विरोधी माहौल आज भी है। इसी क्रम में ब्रिटेन भी भारत की स्थायी सीट का विरोध करता था।हालांकि, अब देखना यह होगा कि जब अमेरिका हमारे पक्ष में आ गया है तो चीन और उसके पाकिस्तान जैसे सहयोगी भारत के बढ़ते वर्चस्व को कब तक रोक पाएंगे।