वीर अब्दुल हमीद जयंती पर मशाल रैली का आयोजन
हिंद एकता टाइम्स भिवंंडी
रवि तिवारी
भिवंडी-भारत और पाकिस्तान १९६५ के युद्ध में वीर अब्दुल हमीद की जयंती पर भव्य मशाल रैली का आयोजन किया गया। उनकी बहादुरी एवं टेक्नीक से एक नहीं दो देशों पर विजय पताखा फहराने में महत्व पुर्ण भूमिका निभने वाले ऐसे महान भारत के वीर सपूत की महान वी गाथा आज भी स्वर्णिय अक्षरों में अंकित है। जब-जब इतिहास के पन्ने पलटे जायेंगें उस की वीरता हमारे नव जवानों को देश के बलिदान के प्रति एक नई उर्जा प्रदान करता रहेगा।वीर अब्दुल हमीद जयंती पर औरंगाबाद के लासूर में मशाल रैली का आयोजन किया गया। यह रैली औरंगाबाद के कस्बा लासूर में परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की जयंती पर सभी देश भक्तों नें उनकी वीरता को नमन करते हुए भारत माता जिंदाबाद के नारे लगाये। इस अवसर पर लोक हिंद पार्टी के अध्यक्ष बदिउज़्ज़माँ खान के नेतृत्व में एक भव्य मशाल रैली का आयोजन किया गया।रैली में रियाज़ पठान, मीना ताई पंडाव (सरपंच, लासूर), बंडू वाघ, फिरोज मंसूरी, शेख मुअज़्ज़म, साबिर शाह, शकील भाई, शेरू भाई, सलीम भाई, अशफाक भोपाली, मुख्तार अंसारी, सैन्य अधिकारियों और पुलिस विभाग की टीम ने हिस्सा लिया। इसके साथ ही कई स्कूलों के विद्यार्थियों और शिक्षकों की टोली ने भी परेड में उत्साहपूर्वक भाग लिया।अलहाज बदिउज़्ज़माँ खान ने मशाल प्रज्वलित कर रैली की शुरुआत की। सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि १९६५ के युद्ध में भारत ने वीर अब्दुल हमीद की अदम्य वीरता और रणनीति से न केवल एक, बल्कि दो देशों को परास्त किया था। उस समय के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अमेरिका से एम ४८ पैटन टैंक खरीदने से इनकार कर दिया था। इससे नाराज़ अमेरिका ने पड़ोसी देश को २०० पैटन टैंक देकर युद्ध के लिए उकसाया।लेकिन वीर अब्दुल हमीद ने अपनी बहादुरी और अनूठी तकनीक से जीप पर सवार होकर (RCL) गन से ८ एम ४८ पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया। यह देखकर दुनिया दंग रह गई कि जिस एम ४८ पैटन टैंक को अजेय माना जाता था, उसे वीर अब्दुल हमीद ने एक साधारण (RCL) गन से तबाह कर दिखाया। इसके बाद कई देशों ने अपने ऑर्डर रद्द किए और खरीदे गए एय ४८ पैटन टैंक वापस कर दिए। अमेरिका को भारी नुकसान उठाना पड़ा और उन्हें M70 टैंक का नया संस्करण तैयार करना पड़ा।इस प्रकार, १६५ के युद्ध में भारत ने वीर अब्दुल हमीद की वीरता और रणनीति के दम पर एक नहीं, दो देशों को शिकस्त दी। यह आयोजन न केवल वीर अब्दुल हमीद को श्रद्धांजलि था, बल्कि उनकी अमर गाथा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक प्रयास भी था।