फिलिस्तीन के पक्ष में प्रदर्शन पर रोक लगाने वाला मुंबई हाईकोर्ट का निर्देश असंवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ले संज्ञान-शाहनवाज़ आलम

Mumbai High Court's order banning demonstrations in favor of Palestine is unconstitutional, Supreme Court should take cognizance - Shahnawaz Alam

रोक के बावजूद बदायूं की जामा मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की अवमानना

साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 205 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता

रिपोर्ट: रोशन लाल

नयी दिल्ली, 27 जुलाई 2025. मुंबई हाईकोर्ट का वामपंथी पार्टियों की तरफ से इज़राइल द्वारा किए जा रहे फिलिस्तीनियों के जनसंहार के खिलाफ प्रदर्शन पर रोक लगा दिया जाना साबित करता है कि न्यायपालिका का एक हिस्सा भाजपा सरकार के वैचारिक एजेंडे के पक्ष में काम कर रहा है. इससे न सिर्फ़ न्यायपालिका की छवि ख़राब हो रही है बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में हो रही उपनिवेशवादी हिंसा के ख़िलाफ खड़े होने की भारत की परम्परा भी धूमिल हो रही है. न्यायपालिका के इस हिस्से को भारत की छवि ख़राब करने की छूट नहीं दी जा सकती. विपक्षी दलों के लोकतान्त्रिक अधिकारों के ख़िलाफ फैसला देने वाले जजों रविन्द्र घुगे और गौतम अनखड़ के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट को कार्यवाई करनी चाहिए।

ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 205 वीं कड़ी में कहीं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद से ही न्यायपालिका के एक हिस्से के आरएसएस के एजेंडे से समझौता करने की प्रवित्ती बढ़ती गयी है. आज स्थिति ऐसी हो गयी है कि भारत के फिलिस्तीन के प्रति अपने पारम्परिक समर्थन के स्टैंड के पक्ष में खड़े होने को कुछ जज देश विरोधी काम बताते हुए विपक्षी लोगों और पार्टियों से संघी छाप की देशभक्ति साबित करने की बात करने लगे हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि इन जजों को यह जानकारी न हो कि 1974 में भारत पहला गैर अरब देश बना जिसने पीएलओ को फिलिस्तीनी अवाम का प्रतिनिधि माना था और 1988 में फिलिस्तीनी राज्य को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में शामिल हुआ. लेकिन ये जज आरएसएस और मोदी सरकार के दबाव में फिलिस्तीन के पक्ष में उठने वाली आवाज़ों को दबाने की कोशिश कर रहे हैं. सबसे अहम कि इन जजों ने उनसे विदेश के मामलों के बजाये अपने देश के मुद्दों जैसे कचरा, प्रदूषण, नाली और बाढ़ की समस्याओं को उठाकर अपनी देशभक्ति साबित करने की नसीहत भी दी. जो यह साबित करता है कि ये जज मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ आवाज़ उठाने के विपक्षी दलों के अधिकारों को दबाकार अब उन्हें यह भी बताना चाहते हैं कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है. उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों को ऐसे फैसलों के ख़िलाफ एकजुटता दिखानी होगी क्योंकि यह उनकी राजनीति और विचारधारा को नियंत्रित करने की साज़िश का हिस्सा है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि टीवी डिबेट में भाजपा के प्रवक्ता विपक्षी दलों द्वारा फिलिस्तीन का मुद्दा उठाने पर उन्हें दूसरे देशों के मुद्दों को उठाने वाले विदेशी एजेंट बताते रहे हैं लेकिन यह पहली बार हुआ है कि हाईकोर्ट के जज भी फिलिस्तीन का मुद्दा उठाने पर विपक्ष की इसमें ‘रूचि’ की वजह पूछ रहे हैं. यह मीडिया के बाद जजों के एक हिस्से का ‘गोदीकरण’ है. जिसपर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को स्वतः संज्ञान लेकर उचित कार्यवाई करनी चाहिए. अगर वह ऐसा कर पाने में विफल रहते हैं तो उनकी निष्ठा पर भी सवाल उठना स्वाभाविक होगा।

उन्होंने कहा कि ऐसे जजों को यह याद दिलाने की ज़रूरत है कि जब देश की आजादी की लड़ाई चल रही थी तब कुछ अंग्रेज़ों ने गांधी जी से पूछा था कि आप भारत की आजादी क्यों चाहते हैं? जिस पर गांधी जी ने जवाब दिया था वो भारत को इसलिए आज़ाद कराना चाहते हैं ताकि भारत आजाद होने के बाद दुनिया के गुलाम देशों की आजादी के लिए लड़ सके |

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इसकी भी जांच होनी चाहिए कि इन जजों को नियुक्त करने वाली कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के कौन-कौन जज शामिल थे। क्योंकि मुसलमानों के ख़िलाफ नफ़रती भाषा बोलने वाले इलाहबाद हाईकोर्ट के शेखर यादव, जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए संविधान की प्रस्तावना में मौजूद सेक्युलर शब्द को कलंक बताने के बाद सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए पंकज मित्तल, तमिल नाडु की भाजपा महीला मोर्चा की नेत्री रहते हुए मुसलमानों और ईसाईयों के ख़िलाफ साम्प्रदायिक भाषण देने वाली विक्टोरिया गौरी के मद्रास हाई कोर्ट में जज नियुक्त होने में पिछले 5 सालों में सीजेआई रहे लोगों की सीधी भूमिका थी।

शाहनवाज़ आलम ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूजा स्थल अधिनियम से जुड़े मामलों की सुनवाई पर रोक के बावजूद बदायूं की ऐतिहासिक जामा मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिका पर बदायूं ज़िला अदालत द्वारा सुनवाई किए जाने को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना बताया. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि सुप्रीम कोर्ट अपनी अवमानना पर चुप क्यों है.।

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