दलित ऐक्ट की तरह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए क़ानून ज़रूरी है

Like the Dalit Act, a law is necessary for the protection of minorities.

शाहनवाज़ आलम

साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 206 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता

रिपोर्ट: रोशन लाल

नयी दिल्ली:मुसलमानों के खिलाफ़ साम्प्रदायिक हिंसा अब संस्थागत रूप ले चुकी है. इसकी जड़ मनुवादी विचारधारा में है. संस्थागत हिंसा को सिर्फ़ क़ानून बनाकर ही नियंत्रित किया जा सकता है. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 206 वीं कड़ी में कहीं।शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने 24 मार्च 1947 को संविधान सभा द्वारा मौलिक अधिकारों के लिए गठित उपसमिति को अल्पसंख्यकों और राज्य के अधिकारों पर दिए ज्ञापन में कहा था कि दुर्भाग्य से भारतीय राष्ट्रवाद ने एक ऐसा सिद्धांत विकसित कर लिया है जिसे अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों का शासन करने का दैवीय अधिकार ही कहा जा सकता है. जिसमें सत्ता में हिस्सेदारी की अल्पसंख्यकों की किसी भी मांग को साम्प्रदायिकता घोषित कर दिया जाता है. जबकि सत्ता पर बहुसंख्यकों के एकाधिकार को राष्ट्रवाद कह दिया जाता है. डॉ अम्बेडकर ने कहा था कि ऐसी स्थिति को देखकर ही उन्होंने अनुसूचित वर्गो के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए संविधान में व्यवस्था की थी।शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सत्ता में अल्पसंख्यकों की घटती हिस्सेदारी के कारण ही मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा संस्थागत रूप लेती गयी है. इस हिंसा की जड़ मनुवादी व्यवस्था में निहित है. जिसे सिर्फ़ संवैधानिक व्यवस्था से ही रोका जा सकता है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने जिस तरह अनुसूचित वर्गो के खिलाफ़ मनुवादी हिंसा को रोकने के लिए दलित उत्पीड़न निवारण कानून बनाकर दलित विरोधी हिंसा को रोकने की व्यवस्था की थी वैसी ही संवैधानिक व्यवस्था अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी के लिए होना समय की मांग है. इससे हम हिंसा विहीन लोकतंत्र की तरफ बढ़ सकेंगे।उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने साम्प्रदायिक हिंसा विरोधी बिल ला कर इस दिशा में कोशिश की थी लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पायी थी।कांग्रेस नेता ने कहा कि यह तर्क कि ऐसा क़ानून राज्य और केंद्र के संघीय ढांचे के विरुद्ध होगा क्योंकि क़ानून व्यवस्था राज्य का विषय है, अप्रासंगिक है. क्योंकि सुरक्षित जीवन जीने के अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकार को सिर्फ़ तकनीकी समस्या में उलझाकर नहीं छीना जा सकता. उन्होंने कहा कि दलित विरोधी हिंसा निवारण कानून से जब राज्य और केंद्र के संघीय संबंधों में कोई दिक्कत नहीं उत्पन्न हुई तो अल्पसंख्यकों के लिए ऐसे ही क़ानून से भी कोई दिक्कत उत्पन्न नहीं हो सकती।

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