सपा का गढ़ हुआ कमजोर? अखिलेश के समर्थन में आजमगढ़ नहीं उतरा मैदान में,अखिलेश के गढ़ में विरोध गायब, सपा की गिरती साख उजागर

अखिलेश की गिरफ्तारी पर ‘दूसरे घर’ आजमगढ़ में भी नहीं दिखा जोश

अखिलेश की गिरफ्तारी पर भी आजमगढ़ में सन्नाटा, सपाई नेताओं की चुप्पी पर सवाल

आजमगढ़। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की गिरफ्तारी के बाद भी आजमगढ़ में आश्चर्यजनक सन्नाटा देखने को मिला। जिस जनपद को सपा का गढ़ माना जाता है, जहां पार्टी के दो-दो सांसद और दसों विधानसभाओं पर कब्जा है, वहां कार्यकर्ताओं और नेताओं का यह ठंडा रुख पार्टी की अंदरूनी कमजोरी और टूटते मनोबल को उजागर करता है।स्थानीय वरिष्ठ नेता हाईकमान के निर्देश का इंतज़ार करते बैठे रहे, जबकि ज़िला स्तर के कई बड़े नेता कलेक्ट्रेट पर जुटने के बजाय आराम फरमाते रहे। कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि पार्टी नेतृत्व गिरफ्तारी के विरोध में कोई बड़ा आंदोलन करेगा, लेकिन शाम तक कोई वरिष्ठ पदाधिकारी मैदान में नहीं उतरा। मायूस कार्यकर्ता नेताओं की निष्क्रियता को कोसते हुए लौट गए।गौरतलब है कि सोमवार को “वोट चोरी” के आरोप लगाते हुए विपक्ष के करीब 300 सांसदों ने संसद से चुनाव आयोग कार्यालय तक मार्च किया। इस दौरान राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, आजमगढ़ के सांसद धर्मेंद्र यादव, डिंपल यादव समेत कई विपक्षी सांसदों को पुलिस ने हिरासत में लेकर पार्लियामेंट थाने भेज दिया। लखनऊ और कई जिलों में सपा कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतरकर विरोध दर्ज कराया, लेकिन आजमगढ़,जो अखिलेश का दूसरा घर माना जाता है,वहां सिर्फ़ प्रतीक्षा और निराशा ही दिखी।आजमगढ़ सदर सीट से अखिलेश के भाई धर्मेंद्र यादव सांसद हैं, लालगंज लोकसभा सीट से वरिष्ठ नेता दरोगा प्रसाद सरोज सांसद हैं, फिर भी राष्ट्रीय अध्यक्ष की गिरफ्तारी पर न तो नेतृत्व ने कोई पहल की, न कार्यकर्ताओं ने कोई जोश दिखाया। दो लोकसभा और दस विधानसभाओं पर कब्ज़ा रखने वाले जिले में पार्टी का यह ठंडा रवैया बताता है कि समाजवादी पार्टी का ज़मीनी जनाधार और संगठनात्मक अनुशासन दोनों तेजी से कमजोर हो रहे हैं।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिस तरह आजमगढ़ में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता सड़क पर उतरने से बचते दिखे, वह आने वाले चुनावों में सपा के लिए खतरे की घंटी है। अखिलेश की गिरफ्तारी पर अपने ही गढ़ में यह बेरुख़ी, सपा की खोखली सक्रियता और गिरते मनोबल का सबसे बड़ा सबूत बन गई है।

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