दीपावली के अगले दिन ‘भूत-प्रेत भगाने’ की परंपरा, जबलपुर में अब भी जीवित है यह अनोखी रस्म
Jabalpur: In many villages across the country, the tradition of exorcising ghosts and spirits on the day after Diwali still lives on. Members of the Gwal community go from house to house performing exorcisms using herbs collected from the forest. However, over time, this practice is now seen in only a few places. In Jabalpur, Madhya Pradesh, members of the Yadav community perform this tradition on the occasion of Padwa, the day after Diwali. Villagers believe that this exorcism will prevent any obstacles or illnesses in the coming year.
जबलपुर:देश के कई गांवों में दीपावली के अगले दिन भूत-प्रेत भगाने की परंपरा आज भी जीवित है। ग्वाल समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटियों की मदद से घर-घर जाकर झाड़-फूंक करते हैं। हालांकि समय के साथ यह प्रथा अब कुछ ही स्थानों पर देखने को मिलती है।मध्यप्रदेश के जबलपुर में दीपावली के अगले दिन ‘पड़वा’ के मौके पर यादव समाज के लोग यह परंपरा निभाते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि इस झाड़-फूंक से आने वाले वर्षभर में कोई बाधा या बीमारी नहीं आती।
कैसे होती है यह परंपरा
जबलपुर के पाटन क्षेत्र में ग्वाल समाज के लोग दीपावली के दूसरे दिन सुबह से ही गांवों में घर-घर जाकर झाड़-फूंक करते हैं।दशहरे के दिन ये लोग जंगल से एक विशेष जड़ी ‘मवरी’ लाते हैं और उसे सिद्ध करके पूजा करते हैं।फिर परमा के दिन एक लकड़ी में यह जड़ी बांधकर लोगों के घर जाकर उन्हें झाड़ते हैं।मान्यता है कि इस प्रक्रिया से भूत-प्रेत, नजर दोष, और बीमारियां दूर होती हैं।इसके बदले में ग्रामीण इन झाड़-फूंक करने वालों को दान में अनाज, कपड़े या पैसे देते हैं।
इस तरह किया जाता है झाड़-फूंक।यह कहते हैं स्थानीय लोग
मंगल यादव बताते हैं कि यह परंपरा उनके पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है। उनका मानना है कि कई बार घरों में या व्यक्तियों पर भूत-प्रेत हावी हो जाते हैं, जिन्हें यह जड़ी काम में लेकर उतारा जाता है और साथ ले जाया जाता है।उन्होंने यह भी दावा किया कि यह जड़ी बुखार जैसी कुछ बीमारियों को भी ठीक कर सकती है, और लोग इसे अपने घरों में सुरक्षा के लिए भी रखते हैं।स्थानीय निवासी लक्ष्मी बबेले का कहना है कि झाड़-फूंक से घर में किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा या बाधा नहीं आती और सालभर बच्चे भी स्वस्थ रहते हैं।स्थानीय मानते है- इससे नकारात्मकता खत्म होती।झाड़-फूंक या अंधविश्वास के भरोसे न रहेपरमा के दिन भूत-प्रेत भगाने की इस परंपरा में जड़ी-बूटियों का प्रयोग होता है, लेकिन इसके पीछे कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है।यह पूरी प्रक्रिया लोक मान्यताओं और धार्मिक विश्वासों पर आधारित है, जिसे कुछ लोग आस्था का विषय मानते हैं।हालांकि, मानसिक या शारीरिक समस्या होने पर योग्य डॉक्टर या विशेषज्ञ से संपर्क करना जरूरी है। झाड़-फूंक या अंधविश्वास के भरोसे रहना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
जबलपुर से वाजिद खान की रिपोर्ट