Deoria news:धर्म की स्थापना के लिए प्रभु लेते हैं अवतार
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धर्मकी संस्थापनाके लिए प्रभू लेते अवतार।
देवरिया। ग्राम रूचा पर में चल रही श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ में श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए कथाव्यास डाक्टर मनमोहन मिश्र ने कहा कि जब जब इस पृथ्वी पर धर्म का ह्रास व अधर्म की बढोत्तरी हुई और कंशादि रुपी पापियों का पादुर्भाव हुआ तब तब प्रभू किसी न किसी रूप में अवतार लेकर पापियों का सर्वनाश कर पृथ्वी के बोझ को हल्का करके धर्म की स्थापना करते हैं । कहाकि द्वापर युग के अंत में जब आसुरी शक्तियों का चारों तरफ बोलबाला हो गया तब पृथ्वी से ए सब सहा नहीं गया । वह देवों के साथ जाकर ब्रम्हा जी को अपना दुखडा सुनाया । ब्रम्हादि देवता क्षीरसागर के तट पर भगवान को पुकारने लगे । उसी समय आकाशवाणी हुई कि कुछ ही समय में देवकी और वसुदेव के यहां अवतार लेकर तुम्हारे सारे कष्टों का निवारण करुंगा । यह सुनकर सारे देवता भगवान की स्तुति करने लगे । यहां मथुरा में देवकी वसुदेव का विवाह हुआ। कंश ने सोने के रथ हजारों दास दासिया दिया जिस रथ पर देवकी वसुदेव बैठे थे उसी का संचालन स्वयं कंश कर रहा था । उसी समय आकाशवाणी हुई कि रे कंश जिस देवकी को इतनी इतनी प्रेम से विदाई कर रहा उसी की आठवीं संतान तेरा बध करेगी । यह सुनकर कंश आग बबूल हो गया और कहा न रहेगी देवकी न होगी आठवीं संतान यह कहकर देवकी की चोटी पकडकर मथुरा की सडकों पर घसीटते हुए मारना चाहा तब वसुदेव जी कंश से कहे देवकी तो आपके मृत्यु का कारण है नहीं मैं देवकी के सभी संतानों को आपके हवाले कर दूंगा । कंश मान गया । प्रथम बालक का जन्म हुआ वसुदेव जी कंश को दे दिये कंश ने कहा मेरा काल आठवां है उसे लाइयेगा। नारद जी ने जाकर उल्टा सीधा पढा दिया । कंश एक एक कर छ: संतानों की हत्याकर दिया आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर सारे दुष्टों का संहार किया।



