दिल्ली की एक अदालत ने मेधा पाटकर की सजा पर फैसला सुरक्षित रखा, वीके सक्सेना के मानहानि मामले में हैं दोषी

A Delhi court reserved verdict on the conviction of Medha Patkar, convicted in VK Saxena's defamation case

नई दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दर्ज कराए गए मानहानि के मामले में सजा पर फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट एक जुलाई को सजा पर अपना फैसला सुनाएगी।

 

 

 

 

 

मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा, “दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) ने विक्टिम इम्पैक्ट रिपोर्ट (वीआईआर) पेश की। इसके बाद उन्होंने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।”

 

 

 

 

यह रिपोर्ट आरोपी को दोषी ठहराए जाने के बाद पीड़ित को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए तैयार की जाती है।

 

 

 

 

 

इससे पहले मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने 24 मई को मेधा पाटकर को उनके खिलाफ सक्सेना की ओर से दायर मानहानि मामले में दोषी ठहराया था। साल 2000 में जब कानूनी विवाद शुरू हुआ था, तब वह अहमदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।

 

 

 

 

 

पिछली सुनवाई के दौरान, पक्षों ने सजा के मामले में अपनी दलीलें पूरी कर ली थी। शिकायतकर्ता सक्सेना ने लिखित दलीलें पेश की। जिसमें उन्होंने कहा कि पाटकर को ज्यादा से ज्यादा सजा दी जाए। दलील में कड़ी सजा की मांग के समर्थन में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं का हवाला दिया गया।

 

 

 

 

 

सबसे पहले पाटकर के ‘आपराधिक इतिहास’ और ‘पिछली पृष्ठभूमि’ को कोर्ट के ध्यान में लाया गया। इससे पता चला कि वह लगातार कानून की अवहेलना कर रही हैं।

 

 

 

 

 

मेधा पाटकर और सक्सेना के बीच साल 2000 से ही एक कानूनी लड़ाई जारी है। उस समय जब पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ एक वाद दायर किया था।

 

 

 

 

 

वीके सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर अपने खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस को मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी मेधा पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर कराए थे।

Related Articles

Back to top button