Azamgarh :कटान से जूझते किसान, करोड़ों की योजना और बहता हुआ भरोसा – “डंपर” तो बन रहे हैं, लेकिन किसके लिए?
कटान से जूझते किसान, करोड़ों की योजना और बहता हुआ भरोसा – “डंपर” तो बन रहे हैं, लेकिन किसके लिए?
रिपोर्टर जितेंद्र यादव
सहबदिया गांव के किसानों के लिए एक बार फिर “राहत” की खबर आई है – और साथ ही आई है शासन की चार करोड़ की एक और परियोजना। अधिशासी अभियंता अरुण सचदेव बड़े गर्व से बताते हैं कि 4 करोड़ 15 लाख की लागत से 350 मीटर वायर किट बोल्डर और आठ डंपर (या कहें ‘घोषणाएं’) बनाए जा रहे हैं। काम 27 मार्च से शुरू हुआ है और 31 मई तक इसे पूरा करने का लक्ष्य है। अब तक 13% काम पूरा हो चुका है – यानी पंद्रह दिन का काम हुआ है, बचे 42 दिन में बाकी 87% भी हो जाएगा…! गणित का जवाब नहीं।
विधायक डॉ. एच.एन. सिंह पटेल निरीक्षण करने पहुंचे, कैमरे चमके, निर्देश दिए गए – “गुणवत्ता से समझौता नहीं होगा!” और वहीं दूसरी तरफ ग्राम प्रधान दिनेश पटेल तल्खी से कहते हैं – “ये किसानों के साथ सीधा छलावा है। नदी की धारा को रोकने की बजाय उसका रास्ता बना रहे हैं, ताकि डंपर में टकराकर धारा वापस उत्तर की तरफ मुड़ जाए? ये तो भूगोल को भी शर्मिंदा कर दे!”
परियोजना के नाम पर जो निर्माण हो रहा है उसमें 15 मीटर चौड़ी स्लो पिंचिंग, 350 मीटर लॉन्चिंग, नदी के अंदर 12 मीटर एमजी बैग और 10 मीटर बॉर्डर शामिल है। सब कुछ बहुत सुनियोजित है – कागज़ पर। लेकिन किसानों का कहना है कि जब बाढ़ आएगी, तो ये सब भी पिछली बार की तरह पानी में बह जाएगा, और फिर से नई योजना आएगी, नया बजट बनेगा और नए नारे गूंजेंगे – “अबकी बार डंपर पार!”
ग्रामीण याद दिलाते हैं कि इससे पहले भी करोड़ों की लागत से ठोकर और नोज बनाए गए थे – लेकिन घाघरा नदी सबको बहा कर ले गई। सच्चाई ये है कि सगड़ी तहसील का हर साल बहता हुआ किनारा दरअसल शासन की योजनाओं का आईना है – ढीली प्लानिंग, दिखावटी निर्माण और चुनावी वादों की गारंटी।
सवाल ये नहीं है कि आठ डंपर बन रहे हैं – सवाल ये है कि क्या इस बार भी किसानों की उम्मीदें डूबेंगी, या फिर ये डंपर भी सिर्फ बजट बहाने के टूल हैं?
अब तो घाघरा भी मुस्कुरा रही होगी – “वाह रे इंसान, मैं बहती हूं अपने हिसाब से, तू बना ले जितने चाहो डंपर।”