जयंत की कथा का श्रद्धालुओं को कराया रसपान
,बरहज देवरिया।
त्यागी जी हनुमान मंदिर पर चल रहे श्रीमद् भागवत कथा एवं श्री राम कथा में कानपुर से पधारी हुई, सुश्री साध्वी
निलेश शास्त्री ने , जयंत की कथा का रसपान कराते हुए कहा कि प्रभु श्री राम वन गमन के काल में पंचवटी में सुंदर कुटी बनाकर, लक्ष्मण जानकी सहित निवास कर रहे थे इसी बीच इंद्र के पुत्र जयंत को भ्रम हो गया यह भगवान नहीं है यह राजकुमार है जिनकी परीक्षा लेने के लिए इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का वेश बनाकर भगवान के निवास स्थान पर पहुंच गया ठीक उसी समय प्रभु श्री राम अपने हाथों से सुंदर पुष्प की माला बनाकर जानकी के गले में पहना रहे थे जयंत यह मान लिया कि यह राजकुमार है गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज मानस में लिखते हैं कि एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषण राम बनाए, सियहि ते पहिराए सादर,, बैठे फटिक सिला पर सुंदर।
सूरपति सूत धरी बायस भेजा सठ चाहत रघुपति बल देखा,
मानो जयंत भगवान के बल का अनुमान करना चाहता था इसलिए जयंत मैं ने माता जानकी के चरण में चोच से प्रहार कर दिया
प्रभु श्री राम ने जयंत की इस दृष्टता को दिखा और एक सिक उठाकर जयंत के पीछे छोड़ दिया, जयंत अपनी प्राण बचाकर भागने लगा सबसे पहले अपने माता-पिता के पास गया माता-पिता ने डांट कर भगा दिया फिर भगवान शिव के पास गया उन्होंने भी वापस कर दिया ब्रह्मा जी ने भी लौटा दिया , जयंत को व्याकुल देखकर संत नारद को दया आ गई उन्होंने जयंत से भागने का कारण पूछा जयंत ने कहा मैं सीता के चरण में चोच मार दिया है, इस सिक से मेरे प्राण की कोई रक्षा नहीं कर रहा,तब देखा नारद विकल जयंता लागि दया कोमल चित संता,
संत नारद ने कहा कि जहां से अपराध किए हो वहीं से तुम्हें अभयदान मिलेगा वापस चले जाओ और सीता जी की चरण में गिरकर क्षमा मांग लेना भगवान से बैर करने वाले की रक्षा कोई नहीं कर सकता इसीलिए जयंत तीनों लोकों में भागता फिरा, लेकिन नारद जैसे संत ने कल्याण का मार्ग बता दिया।
कथा के दौरान हनुमान मंदिर के मंहत श्री 1008 के श्री मारूति जी महाराज उर्फ त्यागी बाबा, सीमा शुक्ला, राम आशीष यादव, रामाशंकर यादव, रामायण यादव, उमेश चंद चौरसिया, सोनू भारद्वाज, चंद्रभान तिवारी, रमाशंकर, श्याम सुंदर दास, प्रभाकर शुक्ला सीमा देवी ,रजवंती देवी, कुसुम ,सरिता देवी, बदामी देवी, सहित नगर एवं क्षेत्र के सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु जन उपस्थित रहे।