Deoria news:भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला कथा

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श्रीकृष्ण की‌ बाल लीला।
देवरिया।
बरहज तहसील क्षेत्र के बड़का गांव में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के दौरान बृजेश मणि त्रिपाठी ने भागवत चर्चा करते हुए कहा कि बाल कृष्ण भगवान अपने पैर के अंगूठे को पीने की लीला करते हैं
“करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्,
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।”
श्रीकृष्ण सच्चिदानन्दघन परब्रह्म परमात्मा हैं।
यह सारा संसार उन्हीं की आनन्दमयी लीलाओं का
विलास है।
श्रीकृष्ण की लीलाओं में हमें उनके ऐश्वर्य के साथ-साथ माधुर्य के भी दर्शन होते हैं। ब्रज की लीलाओं में तो श्रीकृष्ण संसार के साथ बिलकुल बँधे-बँधे से दिखायी पड़ते हैं।
उन्हीं लीलाओं में से एक लीला है बालकृष्ण द्वारा अपने पैर का अंगूठे पीने की लीला।श्रीकृष्णावतार की यह बाललीला देखने, सुनने अथवा पढ़ने में तो छोटी-सी तथा सामान्य लगती है, किन्तु इसे कोई हृदयंगम कर ले और श्री कृष्ण के रूप में मन लग जाय तो उसका तो बेड़ा पार होकर ही रहेगा। क्योंकि—
‘नन्हे श्याम की नन्ही लीला, भाव बड़ा गम्भीर रसीला।’
श्रीकृष्ण की पैर का अंगूठा पीने की लीला का भाव – भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्येक कार्य
को संतों ने लीला माना है जो उन्होंने किसी न किसी उद्देश्य से किया है।
जानते हैं संतों की दृष्टि में क्या है? श्रीकृष्ण के पैर का अंगूठा पीने की लीला का भाव !
संतों का मानना है कि बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने के पहले यह सोचते हैं कि क्यों ब्रह्मा,शिव,देव, ऋषि,मुनि आदि इन चरणों की वंदना करते रहते हैं और इन चरणों का ध्यान करने मात्र से उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ?
कैसे इन चरण-कमलों के स्पर्श मात्र से गौतमऋषि की पत्नी अहिल्या पत्थर की शिला से सुन्दर स्त्री बन गई ?
कैसे इन चरण-कमलों से निकली गंगा का जल(गंगाजी विष्णुजी के पैर के अँगूठे से निकली हैं अत: उन्हें विष्णुपदी भी कहते हैं) दिन-रात लोगों के पापों को धोती रहती हैं ?
क्यों ये चरण-कमल सदैव प्रेम-रस में डूबी गोपांगनाओं के वक्ष:स्थल में बसे रहते हैं ?
क्यों ये चरण-कमल शिवजी के धन हैं? मेरे ये चरण-कमल भूदेवी और श्रीदेवी के हृदय-मंदिर में हमेशा क्यों विराजित हैं?
जे पद-पदुम सदा शिव के धन,सिंधु-सुता उर ते नहिं टारे।
जे पद-पदुम परसि जलपावन, सुरसरि-दरस कटत अघ भारे।।
जे पद-पदुम परसि रिषि-पत्नी, बलि-मृग-ब्याध पतित बहु तारे।
जे पद-पदुम तात-रिस-आछत,मन-बच-क्रम प्रहलाद सँभारि।।
भक्तगण मुझसे कहते हैं कि
हे कृष्ण ! तुम्हारे चरणारविन्द प्रणतजनों की कामना पूरी करने वाले हैं,लक्ष्मीजी के द्वारा सदा सेवित हैं, पृथ्वी के आभूषण हैं, विपत्तिकाल में
ध्यान करने से कल्याण करने वाले हैं।
भक्तों और संतों के हृदय में बसकर मेरे चरण-कमल सदैव उनको सुख प्रदान क्यों करते हैं ?
बड़े-बड़े ऋषि मुनि अमृतरस को छोड़कर मेरे चरणकमलों के रसका ही पान क्यों करते हैं?
क्या यह अमृतरस से भी अधिक स्वादिष्ट है
अपने चरणों की इसी बात की परीक्षा करने के लिये बालकृष्ण अपने पैर के अंगूठे को पीने की
लीला किया करते हैं। कथा के दौरान दिनेश पाठक, राजेश पाठक, सुशील पाठक, शोभित पाठक ,कौशल पाठक, राजन चौबे ,अंकित पांडे , मृत्युंजय पांडे ,अनिल मिश्रा सहित समस्त ग्रामवासी उपस्थित रहे ।

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