केवल अदालत ही किसी को दोषी या निर्दोष ठहरा सकती है : संतोष हेगड़े

Only the court can declare someone guilty or innocent: Santosh Hegde

बेंगलुरू:। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और कर्नाटक के लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन. संतोष हेगड़े ने एमयूडीए (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) मामले में सीएम के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी इस्तीफा ना देने के लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि नैतिकता का पालन करना कानून का पालन करने जितना ही महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा, “जब किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाया जाता है, तो उसे केवल कानून की अदालत द्वारा ही दोषी या निर्दोष पाया जा सकता है।” सिद्धारमैया को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।

न्यायमूर्ति ने आईएएनएस को बताया कि “यह केवल कानून के बारे में नहीं है, नैतिक मूल्यों और नैतिकता का भी पालन करना चाहिए।”

क्या सीएम सिद्धारमैया दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल द्वारा स्थापित मिसाल का पालन कर रहे हैं, जो अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद भी इस्तीफा नहीं दे रहे हैं? इस सवाल पर हेगड़े ने कहा कि “यदि किसी अपराध का आरोपी व्यक्ति दावा करता है कि वह दोषी नहीं है, तो क्या इसका मतलब है कि वह बरी हो गया है? क्या कोई और, जैसे कि उसकी पार्टी, दावा कर सकती है कि वह दोषी नहीं है? एक बार आपराधिक आरोप लगाए जाने के बाद, केवल अदालत ही दोषी या निर्दोष का निर्धारण कर सकती है, कोई और नहीं कर सकता। यहां तक ​​कि जांच आयोग भी किसी को दोषी या निर्दोष घोषित नहीं कर सकता। जबकि एक आयोग तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रदान कर सकता है, वह किसी को जेल नहीं भेज सकता।”

उन्होने कहा कि अगर आरोपी व्यक्ति जांच एजेंसी का वरिष्ठ प्रमुख है, तो क्या लोगों को संदेह नहीं होगा कि जांच वास्तविक होगी? मेरी राय में, नैतिकता यह तय करती है कि जब जनता द्वारा चुने गए व्यक्ति पर आरोप लगते हैं, तो जनता को संदेह तो होगा ही। इसलिए, निष्पक्षता से कहें तो सीएम सिद्धारमैया को इस्तीफा दे देना चाहिए।

केजरीवाल सीएम रहते हुए जेल गए थे, ऐसे बदलते राजनीतिक परिदृश्य को लेकर जस्टिस हेगड़े ने कहा कि लोकतंत्र में यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मुख्यमंत्री को किसी अपराध के लिए जेल भेजा जा सकता है और फिर भी वह जेल से ही शासन करना जारी रख सकता है। इस्तीफा देने के लिए कोई कानून नहीं हो सकता है, लेकिन नैतिकता यह मांग करती है कि गंभीर आरोपों का सामना करने वाले व्यक्ति को जांच पूरी होने और अदालत द्वारा मामले का फैसला किए जाने तक पद छोड़ देना चाहिए।

अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भविष्य में और भी गंभीर आरोपों के बाद भी इस्तीफे की जरूरत नहीं होगी। यह एक खतरनाक मिसाल कायम करता है। अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा नहीं दिया और अब कोई और ऐसा करने की कोशिश कर रहा है, मेरी राय में, यह सीएम की एक गंभीर गलती है।

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