भिवंडी पवरलूम मजदूरों की हालात बेहद खराब मजदूरों को नहीं मिल पारही योग्य मजदूरी – कॉ,डॉ, विजय कांबले

Bhiwandi Powerloom laborers who are in extremely poor conditions do not get fair wages - Dr. Vijay Kamble

मजदूर होरहे सरकारी उपेक्षाओं का शिकार कामगार संघटना भी नहीं दिला पा रही हैं न्याय


हिंद एकता टाइम्स भिवंडी
रवि तिवारी
भिवंडी – पावरलूम उद्योग कृषी क्षेत्र के बाद सबसे जादा रोजगार देने वाला दूसरे नंबर का सबसे बडा़ उद्योग है । परंतु सरकारी उपेक्षाओं का शिकार तथा उचित मजदूरी ना मिलने के कारण उनका और उनके परिवार का भविष्य अंधकार मय बना हुआ है। अगर यही हालात रहा तो कपडा़ उद्योग गहरे संकट में पड़ सकता है। कहने को श्रमाय दार और श्रमिक एकदूसरे के पुरक है। परंतु पावरलूम मजदूरों व पावरलूम मलिकों में मजदूरी को लेकर तथा कामगारों के लिये बनाये गये नियमों को लेकर सदैव संघर्ष चलता आ रहा है।धीरे धीरे पावरलूम मजदूरो का मोह भंग होता दिखाई दे रहा है। क्यों की उनका सुध लेने वाला कोई नहीं है? पावरलूम मजदूर और उनकी मजबूरी एक अभिसाप बनता जा रहा है। असंगठित पावरलूम मजदूर और श्रमाय दारों की बढ़ती ताना -तनी में पावरलूम मजदूरों को न्याय की आश दूर- दूर तक नहीं दिखाई दे रही है। पावरलूम मजदूरों के लिये बना कानून लागू करने के लिये कामगार कार्यालय बनाया गया है। परंतु अपने अधिकार तक सीमित रहना पड़ता है। कामगार युनियनों ने भी अपने आर्थिक फायदे के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। एसे में कोई संघटन उनको हक दिलाने की लडाई लड़नी पड़ती है। अधिकांश युनियनों ने मालिक के साथ मिलकर कमगारो को धोखा देकर अपना आर्थिक पायदा करती आ रही है। अथवा उनको भी संघर्ष करते -करते अदालतों में सालों लग जाते हैं। जिससे कामगारों को न्याय की आस भी छूट जाती है। कामगारों के लिये संघर्ष करने वाले प्रतिनिघि कॉ, डॉ, विजय कांबले ने कहा कि भिवंडी पावरलूम मजदूरों को कपडा़ उत्पादन के बाद मीटरों पर मजदूरी दी जाती है। मजदूरों को १२ घंटे काम करना पड़ता है। साप्ताहिक अवकाश पर उन्हे कुछ भी नहीं मिलता,कोई राष्ट्रीय व धार्मिक त्योहार् पर अवकाश भी नहीं मिलता,वार्षिक बोनस भी नहीं मिलता है । प्राइवेट फंड भी नशीब नहीं होता, कारखानों में सौचालय, तथा पानी पीने की सुविधा नहीं है । वेतन लेन देन की तारीख निश्चित भी नहीं है। आई कार्ड,ना होने से काम पर आने जाने में दिक्कते होती हैं।मंदी के दौर में मुशीबत और भी बढ़ जाती है। पावरलूम मजदूरों की ऐसी हालात का जबाब दार मात्र सरकार व पावरलूम मालिक है ।अपनी दुर्दशा को देखते हुए मजदूर गांव की ओर पलायन कर रहे हैं। नहीं तो भाजी वेचकर अथवा ठेले पर फल ईत्यादि की दुकान लगाकर व्यापार करते नजर आ रहे हैं।

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