विकास और पर्यावरण की समस्याएं आज के समय में जटिल विषय हैं : मोहन भागवत

Gurugram: A three-day workshop on 'Vision for Developed India' was organized at SGT University in Gurugram, Haryana. Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) Sarsangchalak Mohan Bhagwat said that it is necessary to realize a developed India for the prosperity of the people of the country. A thousand researchers participated in the workshop. ISRO Director Dr. S. Somnath told them the tricks of India's development. He informed about the campaigns being carried out across the country regarding 'Vision for a Developed India'. Kailash Satyarthi, who was awarded the Nobel Peace Prize, presented his thoughts to the researchers on how to write the new story of the country through the Vedas. RSS K Sarsangchalak Mohan Bhagwat said, “Any coin has two sides. To understand any real situation we should discuss both these aspects.", he said that we have to make India a developed nation for the prosperous future of our people. Problems have become a complex and controversial issue in today's times. Striking a balance between the two is a big challenge. Development means the use of technology, industry, and resources to meet the needs of human society, while environmental protection means the moderate and continuous use of natural resources so that the natural balance is maintained. The two seem to be in conflict with each other, as the environment is neglected in the name of development and the resulting pollution.

गुरुग्राम:। हरियाणा के गुरुग्राम में एसजीटी यूनिवर्सिटी में ‘विजन फॉर विकसित भारत’ को लेकर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि देश के लोगों की समृद्धि के लिए विकसित भारत का साकार करना जरूरी है।कार्यशाला में एक हजार शोधकर्ताओं ने भाग लिया। इसरो के निदेशक डॉ. एस. सोमनाथ ने उन्हें भारत के विकास की राह पर चलने के गुर बताए। उन्होंने ‘विजन फार विकसित भारत’ को लेकर देश भर में चलाए जा रहे अभियानों की जानकारी दी।नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने वेदों के माध्यम से देश की नई गाथा कैसे लिखी जाए, इस पर अपने विचार शोधकर्ताओं के सामने रखे।आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, “किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं। किसी भी वस्तु स्थिति को समझने के लिए हमें दोनों ही पहलुओं पर विचार विमर्श करना चाहिए।”,उन्होंने कहा कि हमें अपने लोगों के समृद्ध भविष्य के लिए भारत को विकसित राष्ट्र का स्वरूप देना है।मोहन भागवत ने कहा, “विकास और पर्यावरण की समस्याएं आज के समय में एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा बन चुकी हैं। दोनों के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है। विकास का मतलब है, मानव समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी, उद्योग, और संसाधनों का इस्तेमाल करना, जबकि पर्यावरण की रक्षा का अर्थ है प्राकृतिक संसाधनों का संयमित और सतत उपयोग करना, ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे। दोनों एक-दूसरे से टकराते हुए दिखते हैं, क्योंकि विकास के नाम पर पर्यावरण की उपेक्षा की जाती है और इसके परिणामस्वरूप प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।”,उन्होंने कहा कि यह विवाद इस प्रश्न पर आधारित है कि क्या हम विकास की राह पर चलते हुए पर्यावरण को नजरअंदाज कर सकते हैं, या फिर हमें विकास को सीमित करके प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए। मानव जीवन की आवश्यकता है कि वह संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग करे, लेकिन इस प्रक्रिया में यह जरूरी नहीं कि वह केवल अपने ही हितों के बारे में सोचे। विकास का मतलब सिर्फ आर्थिक और भौतिक संपन्नता नहीं होना चाहिए, जीवन की गुणवत्ता, सामाजिक कल्याण और स्थिरता को भी ध्यान में रखना चाहिए।उन्होंने कहा, “विकास के लिए लोग अपने-अपने प्रयासों में लगे रहते हैं। वे अपनी पूरी कोशिश करते हैं, ताकि अपने जीवन स्तर को ऊंचा कर सकें, अधिक अवसरों की तलाश में रहते हैं। लेकिन, यह वास्तविकता है कि जब विकास के प्रयासों के फलस्वरूप पूरी तरह से सफलता नहीं मिलती, तो लोगों का उत्साह कम होने लगता है। लोग यह सोचने लगते हैं कि विकास के प्रयास उनके लिए निरर्थक हो गए हैं, या फिर यह समझने लगते हैं कि यदि उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की है तो उन्हें भी अपने प्रयासों का सही दिशा में पुनर्निर्देशन करना चाहिए।”,उन्होंने कहा, “यह स्थिति एक भटकाव की तरह होती है, जहां लोग यह नहीं समझ पाते कि वे किस दिशा में चलें। विकास और पर्यावरण दोनों का एक साथ संतुलन बनाना एक कठिन कार्य है, और इसके लिए एक ठोस दृष्टिकोण और योजना की आवश्यकता है। जब तक यह बात स्पष्ट नहीं होती कि इन दोनों को किस तरह समन्वित किया जाए, तब तक यह मुद्दा टलता रहेगा और हल नहीं होगा।”

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