भागवत कथा सुनने मात्र से अंतः करण हो जाता है पवित्र – आचार्य लोकेंद्र जी महाराज
पंजाब से दीपक पाण्डेय की रिपोर्ट
पंजाब के बंगा शहर में स्थित महादेव मंदिर में श्रीमती गीता गरेवाल धर्मपत्नी श्री धर्मेंद्र सिंह गारेवाल द्वारा आयोजित की गई कथा का प्रारंभ आचार्य जी लोकेंद्र जी के तत्वाधान में हुआ। जिन्होंने अपने आचार्यों के साथ गणेश गौरी वरुण नवग्रह आदि देवताओं का पूजन हरिहरात्मक ढंग से किया।तदुपरांत व्यास पीठ का भी पूजन किया गया उसके बाद श्री कृष्ण और भगवत जी को आसन पर विराजमान किया गया।”सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे। तापत्रयविनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:।।” श्रीमद् भागवत पुराण के इस प्रथम श्लोक में असंख्य ब्रह्मांडों के रचयिता परब्रह्म परमात्मा भगवान श्री कृष्ण जी की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि वह सच्चिदानंद स्वरूप हैं, इस समस्त विश्व की उत्पत्ति के हेतु हैं। और इसी मंगलाचरण वंदना के साथ आचार्य लोकेंद्र जी महराज ने कथा का श्री गणेश किया।बता दें कि लोकेंद्र जी महाराज उत्तराखंड गंगोत्री की धरती से चलकर (बंगा) पंजाब आए हुए हैं।जहां महाराज जी के साथ चार और आचार्य भी आगत हैं।पंजाब के भक्तों को दूसरे दिन कथा श्रवण कराते हुए कहा कि कलियुग में लोग अब हरि नाम भूल रहे हैं तदपि असंका कीन्हिहु सोई। कहत सुनत सब कर हित होई।। जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना। श्रवनरन्ध्र अहि भवन समाना।।अर्थात् तो भी वही शंका की है जिसके कहने सुनने से सबका कल्याण होगा। जिन्होंने हरि कथा अपने कानों से नहीं सुनी उसके कान साँप के बिल के समान हैं। कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥ 1 वाममार्गी इसे उस दौर में कौल कहा जाता था। 2 – कामुक- चौपाई में कामबश लिखा है। काम का अर्थ भोग और संभोग दोनों ही होता है। 3 -कृपण को प्रचलित शब्द में कंजूस कह सकते हैं, 4 विमुढ़ा – इसे भ्रमित बुद्धि का व्यक्ति भी कह सकते हैं।5 – अति दरिद्र 6 – अजसि – अपयश 7 – अति बूढ़ा 8 – सदा रोगवश हो 9- संतत क्रोधी- निरंतर क्रोध में रहने वाले व्यक्ति 10 – बिष्णु विमुख- इसका अर्थ है भगवान विष्णु के प्रति प्रीति नहीं रखने वाला, अस्नेही या विरोधी।11 – श्रुति और संत विरोधी- वेदों को श्रुति कहा गया है और स्मृतियां, रामायण, पुराण आदि को स्मृति कहा गया है।12- तनु पोषक- तनु पोषक का अर्थ खुद के तन और मन को ही पोषित करने वाला 13- निंदक 14 – अघ खानी- समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो पाककर्म के द्वारा धन या संपत्ति अर्जित करके अपना और परिवार का पालन-पोषण करते हैं।जिसके कारण संस्कार विलुप्त हो रहा है और लोग एक दूसरे का सम्मान करना भूल रहे हैं। उन्होंने एक श्लोक श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्।।अर्थात-: धर्म का सार क्या है, सुनें और सुनकर उसका पालन करें! दूसरों के साथ वह व्यवहार मत करो जो तुम्हें पसंद नहीं है। फिर कहा कि जिनकी संताने अभिवादनशील होती हैं जो नित्य प्रति वृद्धों की सेवा करते हैं,उनकी चार चीजें आयु विद्या यश और बल सदैव बढ़ते रहते हैं। साथ ही भागवत कथा सुनने मात्र से अंतः करण पवित्र हो जाता है। वहीं कथा आयोजक धर्मेंद्र जी द्वारा सात दिनों तक भंडारे का भी प्रबंध किया गया है,जहां लोग कथा सुनने के बाद भगवान का प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं।