साहित्य की दादी : बिना स्कूल गए लिखी 500 से ज्यादा कविताएं, प्रतिभा को गूगल ने भी किया सलाम

Grandmother of Literature: Wrote more than 500 poems without going to school, even Google saluted her talent

 

नई दिल्ली: एक महिला बिना स्कूली शिक्षा के उत्कृष्ट साहित्यकार बन जाती हैं। उनकी प्रतिभा देश-विदेश के दायरे से इतर हर तरफ फैल जाती है। यहां तक कि दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट सर्च इंजन गूगल उनके लिए डूडल समर्पित करता है। आप हैरान नहीं हों, ये कारनामा करने वाली या यूं कहें, ऐसी शख्सियत सिर्फ बालमणि अम्मा ही हो सकती हैं।

 

बालमणि अम्मा को प्यार से चाहने वाले ‘दादी’ का संबोधन देते हैं, जो उनके लिए पूरी तरह उचित है। 29 सितंबर 2004 को दुनिया को अलविदा कहने वाली बालमणि अम्मा ने अपने पीछे लेखन की समृद्ध विरासत को छोड़ा, जो उनके चाहने वालों के बीच हमेशा लोकप्रिय रहेंगी। नालापत बालमणि अम्मा को ‘मलयालम साहित्य की दादी’ भी कहा जाता है।

बालमणि अम्मा हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। बीसवीं सदी की एक प्रसिद्ध साहित्यकार के रूप में बालमणि अम्मा ने 500 से ज्यादा कविताएं लिखी। उनका जन्म एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ था, जहां लड़कियों को स्कूल भेजना अनुचित माना जाता था। लेकिन, बालमणि अम्मा के लिए घर में पढ़ाई की व्यवस्था की गई।

उन्होंने घर में पढ़ाई करते हुए मलयालम और संस्कृत भाषा सीखी। उनके मामा एन. नारायण मेनन एक कवि और दार्शनिक भी थे। उनसे ही बालमणि अम्मा ने साहित्य रचने की प्रेरणा ली। उनके घर में कवि और विद्वान आते थे और साहित्यिक चर्चाओं का दौर चलता था। इस माहौल ने बालमणि अम्मा की सोच और चिंतन को काफी हद तक प्रभावित किया।

बालमणि अम्मा की शादी 19 साल की उम्र में हुई और वह पति के साथ कोलकाता (तब कलकत्ता) आ गईं। यहां रहते हुए बालमणि अम्मा के विचार काफी प्रभावित हुए और उनके अंदर का साहित्यकार छटपटाने लगा। पति उनकी काबिलियत को भांप चुके थे और उन्हें लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद बालमणि अम्मा ने अपनी पहली रचना लिखी।

बालमणि अम्मा को पहली प्रकाशित और चर्चित कविता ‘कलकत्ते की काली कुटिया’ से काफी लोकप्रियता मिली। उनकी कविता ‘मातृचुंबन’ ने भी साहित्य जगत में खूब लोकप्रियता बटोरी। बालमणि अम्मा के जीवन पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों और व्यक्तित्व का भी काफी प्रभाव पड़ा। यहां तक कि उन्होंने खादी के वस्त्र भी पहने थे।

इसी बीच बालमणि अम्मा ने ‘गौरैया’ शीर्षक से एक कविता लिखी, इसे काफी लोकप्रियता मिली। यहां तक कि इस कविता को केरल की पाठ्य-पुस्तकों में भी सम्मिलित किया गया। इसके अलावा बालमणि अम्मा ने एक स्त्री के विभिन्न पक्षों को भी कविता के विषय के रूप में शामिल किया, इसमें गर्भधारण, प्रसव, और शिशु के लालन-पालन से जुड़े प्रसंग हैं।

बालमणि अम्मा ने आध्यात्मिकता में भी खुद को समर्पित किया, जिसने उनके लेखन कौशल को एक नई ऊंचाई मिली। उनकी चर्चित कृति ‘निवेद्यम’ साहित्य जगत में एक मील का पत्थर साबित हुई। जब कवि एनएन मेनन का निधन हुआ तो उन्होंने एक संग्रह ‘लोकांठरांगलील’ की रचना की। उनकी कविताएं दार्शनिक और मानवता से ओत-प्रोत हैं।

उन्हें 1987 में सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। इसके अलावा भी बालमणि अम्मा को कई सम्मानों से नवाजा गया। केरल के त्रिशूर से ताल्लुक रखने वाली बालमणि अम्मा का जन्म 19 जुलाई 1909 को हुआ था। वर्ष 2009 में सरकार ने ‘दादी बालमणि अम्मा’ की जयंती को जन्म शताब्दी के रूप में मनाया था।

Related Articles

Back to top button