मानस विशेष:कर्मों का फल निश्चित मिलता है,जानिए जटायु और भीष्म पितामह की इच्छा मृत्यु में अंतर…?
विनय मिश्र,जिला संवाददाता।
बरहज , देवरिया।सोचिये की जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले, तब स्वयं काल आये और जैसे ही काल को देखा की मौत निकट आ गई है तो गीधराज जटायु ने मौत से कहा खबरदार ! ऐ मौत ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना।
Lमैं मौत को स्वीकार तो करूंगा लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकती, जब तक मैं सीता जी की सुधि प्रभु श्री राम को नहीं सुना देता हूं। अब आप ईमानदारी से बतायें कि गीधराज की इच्छा मृत्यु हुई कि नहीं..? ऐसा नहीं है कि वह मरना नहीं चाहते थे.. लेकिन जटायु जी ने मौत को ललकार कर कहा हैं कि ये मौत तू मुझे छू नहीं पा रही है, मौत स्वयं सामने खड़ी होकर काँप रही है। गीधराज जटायु ने कहा मैं मौत से डरता नहीं हूँ ! मृत्यु को मैं स्वीकार करूँगा लेकिन तुम मुझे तब तक स्पर्श नहीं करना, जब तक मेरे प्रभु श्री राम न आ जायें और मैं उन्हें सीताहरण की गाथा न सुना दूँ।इधर मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही जब तक प्रभु श्री राम नहीं आए, इसलिए आप समझ लीजिए कि सबसे बड़ा इच्छा मृत्यु का वरदान गीधराज जटायु को प्राप्त था।
वहीं महाभारत के भीष्म पितामह जो कि महान तपस्वी थे, नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे लेकिन 18 दिनों तक बाणों की शैय्या पर लेट कर मौत का इंतजार करते रहे। उनके आंखों से आंसू गिरते थे, और जब भगवान कृष्ण जाते थे तो मन ही मन हंसते थे। क्योंकि सामाजिक मर्यादा के कारण और वहिरंग दृष्टि से यह उचित नहीं था। लेकिन भगवान हर बार भीष्म के कर्म को देखकर मन ही मन मुसकराते, और भीष्म पितामह श्री भगवान कृष्ण को देखकर दहाड़ मारकर रोने लगते कहते कन्हैया! मैं कौन से पाप का परिणाम देख रहा हूँ, कि आज बाणों की शैय्या पर लेटा हूं।भगवान कृष्ण मन ही मन मुस्कराते थे, और वहिरंग दृष्टि से भीष्म पितामह को समझा भी देते, लेकिन याद रखना वह दृश्य महाभारत का है जब भगवान श्री कृष्ण खड़े हुए हैं और भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे हैं, आंखों में आंसू हैं भीष्म रो रहे हैं और भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं।लेकिन रामायण का यह दृश्य है कि गिद्धराज जटायु भगवान की गोद रूपी शैय्या पर लेटे हैं, और भगवान रो रहे हैं, जटायु हंस रहे हैं बोलो वहां महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं, और भगवान कृष्ण हंस रहे हैं। और रामायण में जटायु जी हंस रहे हैं और भगवान राम रो रहे हैं। बोलो भिन्नता है कि नहीं ?इधर अंत समय में जटायु को भगवान श्री राम के गोद की शैय्या मिली, और भीष्म पितामह को मरते समय बाण की शैय्या मिली। जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शैय्या में प्राण त्याग रहे है, और राम जी की शरण में है, तथा राम जी की गोद में लेटे हुए है, और दूसरी तरफ बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं। ऐसा अंतर क्यों है..? ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था, लेकिन उन्होंने इसका विरोध नहीं किया था। जब कि दुःशासन को ललकार देते तो उसकी हिम्मत द्रोपदी के साथ गलत करने की नहीं होती, परंतु नहीं दुर्याेधन अन्याय कर्ता रहा, द्रौपदी रोती, बिलखती रही, चीखती, चिल्लाती रही परंतु भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे। और एक नारी की रक्षा नहीं कर पाये नारी का अपमान अपनी आखों के सामने सहते रहे, उसी का परिणाम है कि उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान होने के बाद भी बाणों की शैय्या मिली, और गीधराज जटायु ने नारी के सम्मान के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, जिसका परिणाम यह है कि उन्हे मरते समय भगवान श्री राम के गोद की शैय्या मिली।यही अंतर है, इसीलिए भीष्म 18 दिनों तक रोते रहे, तड़पते रहे; क्योंकि कर्म ऐसा किया था कि नारी का अपमान देखते रहे और जटायु ने ऐसा सत्कर्म किया था कि नारी का अपमान नहीं सह पाये, और नारी के सम्मान में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस लिए गोस्वामी बाबा ने कहा कहा है कि…
जल भरि नयन कहत रघुराई।
तात करम ते निज गति पाई।।”
आज भगवान ने जटायु को अपना धाम दे दिया। तो अच्छे कर्मों के चलते जटायु को भगवान का धाम मिला, भगवान का रूप मिला और वे भगवानमय हो गये। इस प्रकार जटायु चतुर्भुज रूप धारण करके भगवान के धाम को प्राप्त हुए!
इसीलिए कहते है कि जो दूसरों के साथ गलत होते और गलत होते हुए देखकर भी आंखें बंद कर लेते हैं, उनकी गति भीष्म जैसी होती है, और जो परिणाम जानते हुए भी औरों के लिए संघर्ष करते है दूसरों की मदद मे खड़े रहते हैं उसका माहात्म्य जटायु की तरह बढ़ता है और कीर्तिवान होते है।