गर्मी के इस मौसम में पशुओं की देखभाल गंभीरता पूर्वक करें पशुपालक

 

विनय मिश्र, जिला संवाददाता।

, बरहज देवरिया।

इन दिनों मौसम का तापमान काफी गर्म चल रहा है। जिसके कारण पशुओ पर दबाव की स्थिति बन जाती हैं। तथा पशुओं की पाचन प्रणाली और दुग्ध उत्पादन क्षमता पर काफी प्रभाव पड़ता है। इससे पशुओं की उत्पादन तथा प्रजनन क्षमता में भी गिरावट आ जाती है। ऐसे में पशुओं की उचित देखभाल करना आवश्यक हो जाता है। पशुपालन विभाग के डॉ. कंचन लता ने बताया कि संकर नस्ल की गाय तथा भैंस गर्मी के दिनो मेंअधिक संवेदनशील होती हैं। ऐसे मौसम दुधारू पशुओं पर अत्यधिक दुष्प्रभाव पड़ता है, प्रत्येक पशु को उसकी आवश्यकता अनुसार पर्याप्त स्थान मिलना चाहिए। सामान्य व्यवस्था में गाय को चार से पांच एवं भैंस सात से आठ वर्गमीटर खुले स्थान बाड़े के रूप में प्रति पशु उपलब्ध होना चाहिए। पशुओं को नहलाने और पानी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए

पशुओं के शरीर पर दिन में दो या तीन बार ठंडे पानी का छिड़काव करें। संभव हो तो तालाब या नदी में पशुओं को नहलाएं। दोपहर को पशुओं पर ठंडे पानी का छिड़काव उनके उत्पादन तथा प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है। पशुओं को पीने का ठंडा पानी उपलब्ध होना चाहिए। इसके लिए पानी की टंकी पर छाया की व्यवस्था करना अति आवश्यक होता है। इनके आहार में हरा चारा अधिक से अधिक मात्रा में उपलब्ध कराना चाहिए। पशुओं को गुड़ का शरबत पिलाने के साथ पशुशाला के आसपास छायादार वृक्ष होना चाहिए। यह वृक्ष पशुओं को छाया के साथ ही उन्हें गर्म लू से भी बचाते हैं। पशुओं को नियमित रूप से खुरैरा करें। खाने-पीने की नाद को नियमित अंतराल पर चूनाकली करना चाहिए। रसोई का जूठन तथा बासी खाना पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए। कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ जैसे आटा, रोटी, चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए। पशुओं को दें संतुलित पशु आहार

पशुओं को सुतंलित आहार में चारे तथा दाने का अनुपात 40 और 60 का रखना चाहिए। वयस्क पशुओं को रोजाना 50 से 60 ग्राम एलेक्ट्राल एनर्जी तथा छोटे बच्चों को 10 से 15 ग्राम एलेक्ट्राल एनर्जी देनी चाहिए। गर्मी के मौसम में पैदा की गई ज्वार में जहरीला पदार्थ हो सकता है, जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है। इसलिए इस मौसम में तीन-चार बार पानी लगाने के बाद ही खिलाना चाहिए। टीकाकरण अवश्य कराएं

पशुओं को गर्मी के मौसम में गलाघोंटू, खुरपका-मुंहपका, लंगड़ी बुखार आदि बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण जरूर कराना चाहिए, जिससे वे आगे आने वाली बरसात में इन बीमारियों से बच सके।

सीधे तेज धूप एवं लू से नवजात पशुओं को बचाने के लिए पशु आवास के सामने की ओर खस या जूट के बोरे का पर्दा लटका देना चाहिए। आवास साफ-सुथरा तथा हवादार होना चाहिए। फर्श पक्का तथा फिसलन रहित हो। उसमें मूत्र और पानी की निकासी के लिए ढलान हो। पशुशाला की छत ऊष्मा की कुचालक हो, जिससे गर्मी में अत्यधिक गर्म न हो। इसके लिए एस्वेस्टस शीट उपयोग करना चाहिए। अधिक गर्मी के दिन में छत पर चार से छह इंच मोटी घास-फूस की परत या छप्पर डाल देना चाहिए। ये परत ऊष्मा अवशोषक का काम करती हैं। इससे पशुशाला के अंदर का तापमान मेंटेन रहता है। पशुशाला की छत की ऊंचाई कम से कम 10 फीट होनी चाहिए जिससे हवा का समुचित संचार पशुशाला में हो सके। पशुशाला की खिड़कियां, दरवाजे तथा अन्य खुली जगहों पर जहां से तेज गरम हवा आती हो बोरी या टाट आदि टांगकर पानी का छिड़काव कर देना चाहिए।

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