बेंगलुरु विपक्षी एकता मीटिंग से पहले अखिलेश यादव ढीले पड़े,जयंत के दबाव से कांग्रेस को मिलेगी ज्यादा सीटें,Akhilesh Yadav loosens up before Opposition unity meeting in Bangalore, Congress will get more seats under pressure from Jayant

ग्रेस की मेजबानी में बेंगलुरु में हो रही दूसरे राउंड की विपक्षी एकता बैठक से पहले यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के तेवर ढीले पड़ गए हैं।(Ahead of the second round of opposition unity meeting in Bangalore hosted by Grace, UP’s largest opposition Samajwadi Party president Akhilesh Yadav has loosened his mood) पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज्यादातर सीटों पर असर रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के दबाव में अब अखिलेश यादव कांग्रेस को बेहतर डील यानी लोकसभा की ज्यादा सीटें देने की मानसिक स्थिति में आ चुके हैं।इससे पहले तक अखिलेश यादव का रवैया ममता बनर्जी के स्टैंड से गाइड हो रहा था। ममता बनर्जी और अखिलेश कह रहे थे कि जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत है, वहां उसको नेतृत्व करने दिया जाए। इसका मतलब निकल रहा था कि उत्तर प्रदेश में सपा मजबूत है तो यहां सपा नेतृत्व करेगी और भाजपा को हटाना है तो कांग्रेस यूपी में ज्यादा सीट ना मांगे, जो सपा दे दे, उतना वो लड़ ले।लेकिन अखिलेश की सपा के गठबंधन में प्रभावी पार्टनर आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी बिना कांग्रेस 2024 का चुनाव नहीं लड़ना चाहते। जयंत चौधरी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जयंत का मिजाज यह है कि या तो सपा-कांग्रेस-आरएलडी और दूसरी पार्टियों का गठबंधन हो जाए तो वो इस तरफ रहें नहीं तो उनके पास बीजेपी से हाथ मिलाकर एनडीए में शामिल होने का अमित शाह का खुला ऑफर है ही।जयंत के मूड और जयंत के एनडीए में जाने की अटकलों से अखिलेश सहमे-सहमे चल रहे थे। अखिलेश को पता है कि अकेले सपा के वोट से पश्चिमी यूपी में बीजेपी के मुकाबले एक सीट निकालना मुश्किल साबित हो सकता है। कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम वोटों का झुकाव कांग्रेस की तरफ दिखा उसने जयंत चौधरी जैसे नेताओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बिना कांग्रेस विपक्ष की लड़ाई कमजोर होगी।पिछले हफ्ते अखिलेश यादव को कई झटके लगे हैं। आजम खान को एक और केस में सजा हो गई है। सपा विधायक दारा सिंह चौहान ने विधायकी छोड़ दी है और वो भाजपा में शामिल हो रहे हैं। चर्चा है कि वो घोसी से बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। दारा सिंह चौहान के झटके से अखिलेश उबरे नहीं थे कि सपा गठबंधन में रहकर भी सपा से दूर चल रहे ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा ने आखिरकार भाजपा का हाथ पकड़ लिया। गृहमंत्री अमित शाह से राजभर पिता-पुत्र ने मुलाकात के बाद एनडीए में शामिल होने का ऐलान कर दिया। राजभर को जाना था, ये अखिलेश को पहले से पता था। इसलिए वो संभावित सहयोगी दलों को लेकर अब तीखी बात नहीं करते।पटना में 23 जून को विपक्षी एकता की पहली मीटिंग के बाद से अखिलेश ने कांग्रेस पर हमले बंद कर दिए हैं। यहां तक कि 4 जुलाई को अयोध्या में अखिलेश ने कहा कि विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस और दूसरे दलों से बात चल रही है, सपा और सहयोगी दल यूपी में मिलकर बीजेपी को हराएंगे। अखिलेश ने कहा था कि अभी तक गठबंधन में कोई फॉर्मूला बना नहीं है लेकिन जो भी फैसला होगा, गठबंधन के सभी दल मानेंगे।कांग्रेस यूपी में भले अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच चुकी हो लेकिन सम्मानजनक सीटें ना मिले तो गठबंधन के लिए तैयार नहीं होगी। अखिलेश के पहले स्टैंड से लग रहा था कि वो कांग्रेस को 5 सीट देकर काम निकाल लेना चाहते थे लेकिन कांग्रेस को साथ लेने पर अड़े जयंत के कड़े रुख से अखिलेश अब कांग्रेस को 10-15 सीट देने के मूड में आ गए हैं। यही वजह है कि अखिलेश ने ऐसी 50 लोकसभा सीटें चुन ली हैं जिस पर हर हाल में सपा ही लड़ेगी। इनमें कई सीट पर अखिलेश कैंडिडेट्स को फील्ड में उतरने इशारा भी कर चुके हैं। अखिलेश ने 30 सीटें गठबंधन की बातचीत के लिए बचाकर रखी है जिसमें कांग्रेस, जयंत चौधरी, अपना दल का कृष्णा पटेल धड़ा समेत अन्य छोटे दल को सम्मान के साथ एडजस्ट किया जा सके।कांग्रेस के पास यूपी विधानसभा में 2 विधायक हैं। लोकसभा में पार्टी की एकमात्र सांसद सोनिया गांधी हैं। विधानसभा चुनावों को देखें तो 2007 में कांग्रेस के 22 विधायक थे जो 2012 के चुनाव में बढ़कर 28 हो गए थे। लेकिन 2017 के चुनाव में जब बीजेपी को भारी बहुमत से जीत मिली तो कांग्रेस घटकर 7 पर सिमट गई। 2022 के चुनाव में और नीचे गिरकर 2 विधायक पर आ गई।लोकसभा का देखें तो 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस 9 सीटें जीती थी जो 2009 में बढ़कर 21 हो गई। लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर में कांग्रेस बह गई और 21 से गिरकर 2 पर आ गई। ये दो सांसद भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी थे। 2019 के चुनाव में राहुल गांधी भी अमेठी में स्मृति ईरानी से हार गए और सिर्फ सोनिया गांधी रायबरेली जीत सकीं।In the Lok Sabha, the Congress had won nine seats in the 2004 general elections, which increased to 21 in But in 2014, the Congress was swept away in the wave of Narendra Modi and fell from 21st to 2nd. These two MPs were also Sonia Gandhi and Rahul Gandhi. In the 2019 elections, Rahul Gandhi also lost to Smriti Irani in Amethi and only Sonia Gandhi could win Rae Bareli.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button