घोसी के बीबीपुर निवासी नौशेरा के शेर ब्रिगेडियर मो उस्मान की पुण्य तिथि वृहस्पतिवार को, श्रधांजलि।
रिपोर्ट :अशोकश्रीवास्तव ब्यूरोप्रमुख।
घोसी। घोसीतहसील मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर घोसी- मधुबन मार्ग से उत्तर दिशा में स्थित एक छोटे से गांव बीबीपुर को अमर शहीद ब्रिगेडियर उस्मान जैसे वीर सपूत को जन्म देने का गौरव प्राप्त है। परंतु दुःख की बात यह है कि इनके नाम पर न कोई स्मारक है न कोई चिन्ह।जिससे आनेवाली पीढी इनको याद कर सके।मात्र इनके शहादत दिवस पर कुछ लोग याद कर रह जाते है।
ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म 15जुलाई सन 1913 को इसी गांव में मु०फारूक के घर हुआ था।इस परिवार की गिनती उस समय के बड़े जमींदार घरानों में हुआ करती थी।ज़मींदारी शानो शौकत में पलने बढ़ने के बावजूद भी बाप और बेटे दोनों में देश प्रेम व समाज सेवा की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी।तभी तो पिता मु०फारूक ने सिपाही के रूप में पुलिस विभाग की नौकरी स्वीकारी और अपनी साहसिक कार्यप्रणाली से पूर्वी उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी कोतवाली बनारस के प्रभारी यानि कोतवाल के पद तक पहुंचे।उनकी साहसिक कार्यशैली व अदम्य साहस को देखते हुए अंग्रेज़ लेफ्टिनेंट ने उन्हें खान बहादुर के खिताब से नवाज़ा था।मु०फ़ारूक़ के तीन बेटों में दूसरे नम्बर के मु०उस्मान पिता के सानिध्य में रहकर बनारस के हरिश्चन्द्र कालेज से स्नातक की उपाधि हासिल कर भारतीय सेना में भर्ती हुए और कमीशन प्राप्त कर ब्रिगेडियर के पद तक पहुंचे।जबकि बड़े भाई मु०सुब्हान टाइम्स ऑफ इंडिया में उप सम्पादक बने व छोटे भाई मु०गुफरान भी भारतीय सेना का हिस्सा बनकर ब्रिगेडियर का पद प्राप्त किया।
बताते चलें कि सन 1947 में आज़ादी के समय मज़हबी आधार पर देश विभाजन के मद्देनज़र पाकिस्तानी सेना के उच्चाधिकारियों द्वारा मुस्लिम सैन्य अधिकारियों को बड़े ओहदे का लालच देकर पाकिस्तानी सेना में शामिल किया जा रहा था।पाकिस्तानी आर्मी चीफ जैसे सर्वोच्च पद का लालच ब्रिगेडियर उस्मान को दिया गया लेकिन देश भक्ति का जज़्बा लिए इस सपूत ने पाक की नापाक पेशकश ठुकरा दी और ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ की भावना लिए हुए कश्मीर की नौशेरा पहाड़ी से पाक कबायलियों को अपने पराक्रम से खदेड़ते हुए 3 जुलाई1948 को शहीद हो गये।ब्रिगेडियर उस्मान अदम्य साहस व वीरता की प्रतिमूर्ति थे,उनके इस अदम्य साहस के लिये उन्हें “नौशेरा का शेर”खिताब से नवाजा गया।बाद में भारत सरकार द्वारा इस अदम्य साहस व वीरता की प्रतिमूर्ति ब्रिगेडियर उस्मान को महावीर चक्र(मरणोपरांत)से सम्मानित किया।
वर्तमान समय जहां उनकी शहादत दिवस व भारत की आज़ादी के पचहत्तर वर्ष बीत जाने के बाद भी उनका गांव बदहाली के दौर से गुजरते हुए अपने विकास की बाट जोह रहा है।आज़ादी का अमृत महोत्सव अधिकारियों के कागज़ो पर खूब दौड़ रहा है, लेकिन धरातल पर अधिकारियों के कदम तो दूर गांव के रास्ते तक की जानकारी नहीं है। उनके नाम पर लगभग चालीस वर्षों से स्थापित ब्रिगेडियर उस्मान लघु माध्यमिक विद्यालय शासन प्रशासन की उपेक्षा व कुछ प्रबन्धकीय विवाद के चलते विगत एक दशक से अधिक समय से बंद पड़ा हुआ है। सांसद, विधायक व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा गोद लिये जा रहे गांव की श्रेणी में ये गांव शामिल नहीं हो सका। काश! इस शहादत दिवस पर कोई सांसद, विधायक व अधिकारी श्रद्धांजलि के रूप में इस गांव को गोद ले लें तो अमर शहीद की इस पवित्र जन्मभूमि का समुचित विकास हो सके।