नौशेरा के शेर ब्रिगेडियर उस्मान अपने ही क्षेत्र में है उपेक्षित, इनके नाम पर कोई नहीं है स्मारक

There is chaos in Gwarighat crematorium, family members are having to struggle

रिपोर्ट:अशोकश्रीवास्तव ब्यूरोप्रमुख।
घोसी।”शहीदों की मजारो पर लगेगे हर बरस मेले।वतन के नाम पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा। ” परंतु यह नौशेरा के शेर के लिए उल्टा है। आज क्षेत्र में इनके नाम पर कोई निशां नहीं है। न ही मजार है।।
नौशेरा के शेर के नाम से मशहुर और घोसी क्षेत्र के बीबीपुर निवासी अमर शहीद महाबीर चक्र से सम्मानित ब्रिगेडियर उस्मान जो की आज पहचान के मोहताज नहीं है। परंतु आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी घोसी क्षेत्र के साथ जनपद में कोई प्रतिमा या स्मारक, विद्यालय इनके नाम पर नहीं है। हा इधर कुछ वर्षों से हर साल इनके गाव में इनकी शहादत दिवस पर कार्यक्रम आयोजित कर जनप्रतिनिधि भाषण बाजी कर वादे कर चले जाते हैं, और भूल जाते है। आज स्थिति यह है की युवावर्ग इनके विषय में बहुत कम जान रहा है। बीबीपुर गाव स्थित इनकी पैत्रिक हवेली खंडहर बन कर रह गयी है। घोसी तहसील के सामने इनको सरकार से मिले जमीन पर स्थानीय प्रशासन ने एक दो बार इनके नाम पर राजकीय विद्यालय स्थापित करने का प्रयास किया, परंतु इनके परिवार के लोगों द्वारा उदासीनता के चलते ठंडे बस्ते मे रह गया।बाद में वह भी बिक ने के साथ वहा मकान बन गए हैं ।घोसी क्षेत्र के बीबीपुर निवासी ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म देश की आजादी से पूर्व एक प्रसिद्ध परिवार में हुआ था। इनके पिता अंग्रेजी हुकूमत मे काशी के कोतवाल थे। इनके एक सगे रिश्तेदार 1932 मे कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके है। परिवार से देश भक्ति का जज्बा पाए मो उस्मान ने सुख की राह की जगह देश सेवा की राह चुनी और सेना मे प्रतिभा के बल पर कमीशन प्राप्त कर अधिकारी बन गए। देश आजाद हो ने के समय उस्मान ब्रिगेडियर बन गए। जब, जुलाई 1948 मे पाकिस्तान फौज ने काबलाई आक्रमणकारीयो की आड़ में देश पर आक्रमण कर दिया, उस समय कारगिल के पास नौशेरा स्थान पर ब्रिगेडियर उस्मान युद्ध मे बीरता पूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए। सरकार ने मरणोपरांत उनको तत्कालीन सेना का सर्वोच्च पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया। आज हालत यह है कि इनके नाम पर गाव तो दूर घोसीतहसील मुख्यालय आदि स्थानों पर न ही इनकी प्रतिमा ही स्थापित है और न ही कोई स्मारक ही बना। आज हालत यह है कि इनके पैतृक हवेली को छोड़ कर कोई भूमि नहीं बची है।पैतृक हवेली भी जीर्ण अवस्था में है। गाव के साथ आसपास के युवाओं को इनके विषय में ठिक से जानकारी नहीं है। लोगों ने रोष के साथ आरोप लगाया कि इनकी प्रतिमा या स्मारक के लिए क्षेत्र या जनपद से चुने गए जनप्रतिनिधियों के साथ इनके नाम पर राजनीति करने वालों के साथ परिवार के लोग ने कोई सार्थक प्रयास किये हाते तो इनकी पैतृक मकान स्मारक बनने के साथ घोसी तहसील मुख्यालय पर आदमकद प्रतिमा कभी की स्थापित हो गयी होती। आजादी के 75 वर्ष बाद भी इनके नाम पर न स्मारक बन सकी और न ही प्रतिमा स्थापित हो सकी। लोगों ने मांग किया कि आजादी के 75 वे वर्ष पर राजनीति छोड़ कर इनकी प्रतिमा स्थापित करने के साथ इनके पैतृक मकान को स्मारक बनाया जाय।

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