Deoria news:शिक्षक दिवस पर विशेष
Deoria:special on teachers day
बरहज/ देवरिया।हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि एक दिवस के रूप में आजादी के बाद से मनाया जाना आरंभ हुआ है, जो एक महान शिक्षक एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधा कृष्णन का जन्म दिवस है । उक्त तिथि पर हम लोग अपने शिक्षकों को याद कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, किन्तु भारतीय परंपरा में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में सहस्त्रों वर्षो से मनाया जाता रहा है और यह अद्यापि अविच्छिन है।
आइये, आज हम शिक्षा, शिक्षक और गुरु शब्द के साथ शिक्षक दिवस पर भी अपने विचार रखें।
शिक्षा आज सीखने के रूढ़ अर्थ में लिया जाता है। यह सीखने की इच्छा का अर्थ भी ध्वनित करता है तो सीखने की शक्ति के भाव को भी व्यंजित करता है। इसके विषय गतिमान हैं और क्षेत्र व्यापक। समय- समय पर विषय और स्वरूप बदलते रहे हैं। यह देश काल और परिस्थिति पर निर्भर करता है।
भारतीय चिंतन में वेद ज्ञान हैं, जिसको जानने के लिये सर्व प्रथम जिस विधा का उदय हुआ वह शिक्षा नाम से अभिहित हुआ। शिक्षा एक वेदांग है, जिसमें शब्द का ज्ञान, उच्चारण की प्रणाली आदि विषयों का समावेश है। वर्णमाला के वर्णों की उतपत्ति, स्वनिम का वर्णिम में रूपांतरण आदि इसके विषय हैं। तैतरीय उपनिषद शिक्षा वल्ली का यह प्रथम अनुवाक है कि- ” शीक्षां व्याख्यास्याम:। वर्ण: स्वर:। मात्रा बलम्। साम सन्तान:। इत्युक्त:।”
अर्थात शिक्षा का विषय वर्ण, स्वर , मात्रा ओर बल का ज्ञान प्राप्त करना है। वर्ण दो प्रकार के हैं- स्वर ओर व्यंजन, स्वर तीन हैं- उदात्त, अनुदात्त ओर स्वरित, मात्रा भी तीन हैं- ह्रस्व दीर्घ और प्लुत। इन सब विषयों का जहाँ समावेश हो वह शिक्षा है। प्राचीन काल से ही हमारे यहाँ पाणिनीय शिक्षा, याज्ञवल्क्य शिक्षा, भारद्वाज शिक्षा आदि शिक्षा शास्त्र के कई ग्रन्थ भारतीय वाङ्गमय में उपलब्ध हैं। इन गर्न्थो में शिक्षा के जो विधान बताये गए हैं उन विधानों को बताने वाले ही शिक्षक हैं।
इस संसार के उद्भव पालन और संहार का जो कारण है, वह कारण ही ब्रह्म है। ” यतो वा इमानि भूतानि जायन्ति तद ब्रह्म:।” ब्रह्म सदा अक्षर ,अव्यय, निराकार और अप्रमेय है। इस अव्यय ब्रह्म का जो ज्ञान करा दें वह गुरु हैं, ओर वर्ण स्वर मात्रा बल के लिये इस अक्षर (” ॐ इति अक्षर ब्रह्म”) स्वरूप का ज्ञान करा दे वह शिक्षक है।
ब्रह्म ज्ञान तो ज्ञान का वह उच्च सोपान है जिस पर आरूढ़ होने पर किसी और ज्ञान की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। इसके लिये मसी कागज भी छूने की जरूरत नहीं। कबीर जिसने स्वयं कहा कि ” मसी कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ”। किन्तु उन्हें ऐसा गुरु मिले जो उन्हें ज्ञान के उस धरातल पर खड़ा कर दिए जहाँ पहुँच कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। तभी तो उन्होंने कहा कि- “यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत के खान।” यही अमृत के खान गुरु, शिष्य को भी अमृत बना देते हैं और उन्हें कहना पड़ता है कि- ‘बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय।’
वहीं, वर्ण, स्वर, मात्रा बलादि अक्षर ब्रह्म के ज्ञान के प्रदाता, शिक्षक, जिसने पाटी पकड़ना सिखाया, खड़िया घसीटना सिखाया और अक्षर का पहचान कराकर वाङ्गमय जगत का द्वार खोला, शिक्षक दिवस पर हम उन प्रथम शिक्षक के चरणों पर प्रणति निवेदित करते हैं। यह उन्हीं प्राथमिक शिक्षक के नमन का दिवस है। हमारी पीढ़ी के लोगों में जितनी श्रद्धा इन प्राथमिक शिक्षक के प्रति होती है उतनी श्रद्धा विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष के प्रति भी नहीं होती है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब- जब उनके दर्शन हुए मैं उनका चरण स्पर्श न किया, और वहीं विभागाध्यक्ष से जब मिला हाथ जोड़ नमस्ते ही किया।
शिक्षा यह प्रवहमान स्वरूप आज प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक विद्यमान है और आज भी हम उसे पाकर जीवन कृतार्थ और सार्थक करने की दिशा में चल रहे हैं।