दोहा सम्मेलन:अरब दुनिया का सामूहिक शक्ति प्रदर्शन,मिस्र और कतर की अगुवाई में “अरब NATO” की बुनियाद
अरब NATO: सामूहिक सुरक्षा की ओर ऐतिहासिक कदम

दोहा सम्मेलन: अरब दुनिया की सामूहिक शक्ति का उदय‘अरब नाटो’ पर चर्चा, मिस्र और कतर ने दिखाया नेतृत्व
कतर की राजधानी दोहा इस सोमवार ऐतिहासिक क्षण की गवाह बनी, जब इस्लामी देशों के शीर्ष नेता एक छत के नीचे इकट्ठा हुए। यह आपातकालीन शिखर सम्मेलन न केवल इज़रायली हमलों की निंदा का मंच था, बल्कि अरब दुनिया की सामूहिक सुरक्षा और भविष्य की रणनीति पर गहन विमर्श का अवसर भी साबित हुआ।
अरब नाटो का स्वरूप
बैठक का सबसे अहम बिंदु मिस्र द्वारा प्रस्तावित “अरब NATO” रहा। यह विचार लंबे समय से चर्चा में था, लेकिन दोहा पर इज़रायली हवाई हमले ने इसमें नई जान डाल दी। मिस्र, जिसके पास अरब जगत की सबसे बड़ी सेना (4.5 लाख सक्रिय सैनिक) है, ने शुरुआती तौर पर 20,000 सैनिक उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा। योजना के तहत इस गठबंधन का मुख्यालय काहिरा में होगा और मिस्र का एक चार-सितारा जनरल इसकी कमान संभालेगा।
सऊदी अरब को डिप्टी कमांड और वित्तीय व रणनीतिक समर्थन का जिम्मा मिल सकता है, जबकि यूएई और बहरीन जैसे खाड़ी देश तकनीकी व आधुनिक क्षमताएँ देंगे। इसमें आर्मी, एयरफोर्स, नेवी और स्पेशल कमांडो यूनिट के साथ-साथ प्रशिक्षण और रसद का भी समावेश होगा।
पाकिस्तान और तुर्की की सक्रिय भागीदारी
पाकिस्तान, जो एकमात्र परमाणु-सशस्त्र मुस्लिम देश है, ने न केवल बैठक में भाग लिया बल्कि ‘इज़रायली गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए जॉइंट टास्क फोर्स’ बनाने का भी आह्वान किया। वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने इज़रायल पर आर्थिक दबाव डालने और अरब देशों की सामूहिक ताक़त को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साबित करने की बात कही।
सामूहिक सुरक्षा का नया अध्याय
इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद अल-सुदानी ने स्पष्ट कहा कि किसी भी अरब या इस्लामी देश की सुरक्षा दरअसल पूरे क्षेत्र की सामूहिक सुरक्षा का हिस्सा है। यही सोच नाटो-स्टाइल कलेक्टिव डिफेंस की नींव बन रही है।
अरब नेताओं ने यह भी दोहराया कि यह गठबंधन इज़रायल के खिलाफ आक्रामक कदम नहीं, बल्कि एक “डिफेंसिव मूव” होगा—जिसका उद्देश्य आतंकवाद, अस्थिरता और बाहरी खतरों से अरब दुनिया की रक्षा करना है।
अरब एकता की मिसाल
कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी ने अपने संबोधन में इज़रायली हमले को “विश्वासघाती और कायराना” बताते हुए कठोर शब्दों में निंदा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब अरब देशों के पास अपनी सुरक्षा को लेकर केवल निंदा और बयानबाज़ी का विकल्प नहीं है, बल्कि ठोस सैन्य एकीकरण ही भविष्य का रास्ता है।
ऐतिहासिक महत्व
यह पहली बार नहीं है जब ऐसा विचार सामने आया हो। 2015 में शर्म अल-शेख सम्मेलन में भी ‘जॉइंट अरब फोर्स’ की बात हुई थी, लेकिन आंतरिक मतभेदों और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा के चलते योजना आगे नहीं बढ़ पाई। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। दोहा सम्मेलन ने अरब दुनिया को एकजुट होकर अपनी ताक़त दिखाने का अवसर दिया है।
अरब देशों की बढ़ती अहमियत
विश्लेषकों का मानना है कि अगर ‘अरब नाटो’ आकार लेता है, तो इससे न केवल मध्य-पूर्व की शक्ति संतुलन में बदलाव आएगा बल्कि अमेरिका और पश्चिम पर पारंपरिक निर्भरता भी घटेगी। यह अरब दुनिया की आत्मनिर्भर सुरक्षा की दिशा में क्रांतिकारी कदम होगा।


