हाय रे बढ़ते संसाधनों का प्रकोप गांव की गलियों से विलुप्त हो गया 22 कोप
Alas, the scourge of growing resources has disappeared from the village streets 22 Wrath
आजमगढ़ से रोशन लाल पत्रकार
स्पेशल स्टोरी
एक जमाना था जब घर बैठे मात्र पांच पैसा में पांच लोग 22 कोप के सहारे पूरी दुनिया में स्थित एक से बढ़कर एक अजूबे का नजारा देख लेते थे। गांव की गलियों में बायिस्कोप वाला अपने सर पर एक पेटी रखे आता था डमरू बजाते हुए गाना गाते हुए की ? दिल्ली का कुतुब मीनार देखो पैसा नहीं तो उधर देखो घर बैठे सारा संसार देखो पैसा फेंको तमाशा देखो, कभी यह गीत गांव की गलियों में धुआंधार रेडियो से सुनी जाती थी तो कभी 22 कोप वाला अपना तमाशा दिखाने के लिए आता था उसे सुनने को मिलती थी। जब बायिस्कोप वाला तमसा दिखाता था तो उसके बदले वह पैसे अनाज लेकर अपना परिवार चलता था। वह दौर ऐसा था की एक साथ पांच लोग बायिस्कोप के पास बैठकर बायिस्कोप में लगे हुए शीशे में आंखें डालकर अंदर झांकते थे। जिसमें पारदर्शी लेंस युक्त शिक्षा लगा होने के कारण अंदर लगने वाली सीन बड़ी-बड़ी दिखाई देती थी। एक तरफ बायिस्कोप संचालक रोल को लपेटता था और उस हिसाब से रिकॉर्डिंग गीत बजती थी ।तथा दूसरी तरफ से सीन स्टार्ट होती थी। जैसे-जैसे रोल के अंदर सीन सिमट जाती वैसे-वैसे गाना समाप्त होता। लास्ट में जब गीत समाप्त हो जाती वही बायिस्कोप का खेल खत्म हो जाता था। बायिस्कोप वाला पैसा लेकर पुनः अपने सर पर अपनी पेटी उठता था और डमरू बजाते हुए तथा गीत गवाते हुए आगे बढ़ जाता था । तब छोटे-छोटे बच्चे यहां तक की नौजवान और बुजुर्ग भी इसका आनंद ले लिया करते थे। लेकिन अब वह दौर समाप्त हुआ पिक्चर हाल के सहारे कुछ दिन पिक्चर हॉल ने तहलका मचाया। और 22 कोप विलुप्त कर दिया तो इसके बाद मोबाइल क्रांति चली जिसने पूरे पिक्चर हाल को तोड़ के रख दिया। और अब लोग मोबाइल के सहारे घर बैठे पूरी दुनिया देख रहे हैं।जिससे बायिस्कोप के बारे में बहुत किंचित लोग ही जानते होंगे।आज के बच्चे एकदम नहीं बता पाएंगे कि 22 स्कोप होता क्या है।