आजमगढ़:हायरे ज़िंदगी का तकाज़ा दुनिया का सबसे बड़ा गम है बूढ़े बाप के कंधे पर जवान बेटे का जनाज़ा

पुत्र के शहीद होने का गम, सता रहा है हमको हरदम, अब कौन बनेगा बुढ़ापे का सहारा कोई नहीं हमारा

रिपोर्ट:सुमित उपाध्यय/रोशन लाल

अहरौला/आजमगढ़: जिस उमेश पाल और उसके दो गनर की हत्याकांड ने पूरे प्रदेश की कानून व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया था जिसके बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना को अंजाम देने वाले अपराधियों को मिट्टी में मिलाने की बात कही गई थी उस हत्याकांड में शहीद हुए जवान के माता-पिता किस हाल में है उसकी चिंता ना तो सरकार को है और ना ही समाज को जिस माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा शहीद हुआ उनके पास सिवाय आंसू के कुछ भी नहीं है अहिरौला थाना क्षेत्र के अंतर्गत विसईपुर गांव निवासी शहीद संदीप के 68 वर्षीय पिता ने कहा कि विडंबना इस बात की है कि व्यवस्था एवं नियम के तहत शहीद होने के बाद जो भी सहयोग एवं सहायता सरकार के द्वारा प्रदान की जाती है जो जवानों के बूढ़े माता-पिता के साथ न्याय करता नहीं दिखाई देता उन्होंने कहा कि जब से मेरा पुत्र संदीप इस दुनिया में नहीं रहा तब से आज तक उसकी पत्नी ना ही ससुराल आई और ना ही हमसे कोई संपर्क रखती है तब से लेकर आज भी वह अपने मायके में ही है जबकि सहायता राशि मिलने पर उसने यह कहा था कि कि वह हम लोगों के साथ रहेगी और हम लोगों का ध्यान रखने के साथ-साथ घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद करेगी जन्म देने वाले माता-पिता ने कहा कि शासन के द्वारा किए गए वादे अब भी अधूरे हैं हमारी तो दुनिया ही उजड़ गई हमारा हौसला उम्मीद और उजाले का सूरज हमेशा के लिए डूब गया उस समय कई दिनों तक सैकड़ो नेता मंत्री अधिकारी आए मेरे कानों में आज भी कई बातें गूंजती हैं जो बेटे के शहीद होने के बाद कही गई थी लोगों ने कैसे-कैसे वादे किए थे लेकिन अब कोई झांकता भी नहीं है लाचारी बीमारी तंगहाली से लाचार माता पिता ने कहा कि सपूत खोने के गम के साथ बुढ़ापे के कुछ वर्ष शेष बचे हैं हम लोग की कोई मांग नहीं है उस‌ समय अधिकारियों द्वारा जो वादे किए गए थे सिर्फ वही पूरी हो जाए वही मेरे बेटे के प्रति सच्चा सम्मान होगा उस समय मुझे आवास देने का आश्वासन दिया गया था जिसके लिए मैं 11 महीने तक सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाता रहा पहले तो मुझसे कहा गया कि सरकारी काम है थोड़ा समय लगेगा लेकिन अब यह कह कर मना कर दिया गया कि आपके पास पक्का घर है जबकि वास्तविकता यह है कि यह घर मेरा नहीं है मेरे चाचा का है जिन्होंने मेरे पास घर न होने के कारण मुझे दिया था मेरा वास्तविक मकान आज भी मिट्टी का है उस समय शहीद बेटे के नाम से स्मारक बनाने का भी आश्वासन दिया गया था उस पर भी कोई कार्य प्रगति पर नहीं दिखाई दे रहा है ना ही कोई संताेजनक उत्तर मिल रहा है आज 24 फरवरी को शहीद बेटे संदीप की प्रथम पुण्यतिथि भी है।

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