धर्म का अर्थ होता है – धारण किए जाने वाला आचरण करने योग्य – आचार्य ब्रजेश मणि त्रिपाठी
रिपोर्ट विनय मिश्रा
देवरिया । लार थाना क्षेत्र के चुरिया गाँव मे चल रहे सात दिवसीय श्री मद भागवत कथा के तृतीय दिवस कथा वाचक आचार्य ब्रजेश मणि त्रिपाठी जी ने कहा कि इस संसार में धर्म का पालन करना धर्म को धारण करना मनुष्य जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है धर्म की व्याख्या करते उन्होंने बताया कि” धर्म का क्या अर्थ होता है ? धर्म का अर्थ होता है -धारण किए जाने वाला, आचरण करने योग्य। ‘धार्यते जनैरिति धर्म’ मनुष्यों द्वारा जिसे धारण किया जाता है, अर्थात मनुष्यमात्र जिसे अपने आचरण में लाए, वह ही ‘धर्म’ कहलाता है। धर्म को धारण करने वाला, धर्म को अपने जीवन में आचरण करने वाला, धर्म के आधार पर अपने जीवन को जीने वाला, व्यक्ति धार्मिक कहलाता है। इस दृष्टि से ‘धर्म वह होगा, जिसका आचरण करने से, जिसको धारण करने से मनुष्य जीवन सुव्यवस्थित रूप से चलता रहे, जिसके अनुसार चलने से मनुष्य अपने निर्दिष्ट लक्ष्यानुसार जीवन निर्वाह करता हुआ अपने मनुष्य जीवन को सार्थक बनाए।” कथा के विस्तार के क्रम में कथा व्यास ने बताया की मनुष्य जीवन में नरक धोबी घाट के जैसे हैं जहां पर उनके कर्मों का फल मिलता है फल भोगने के पश्चात वही जीव पुनः इस संसार में आता है और भगवत भक्ति के द्वारा अपने जीवन को मुक्त कर सकता है आजमिलोपाख्यान के द्वारा नाम की महिमा और नाम जप का महत्व समझाया। इस दौरान मुख्ययजमान रघुवंश मिश्रा , धर्मेन्द्र मिश्रा , सतेन्द्र मिश्रा , पवन पाठक , करन , बबलू मिश्रा , विकास , वीरेन्द्र , आदित्य , आनन्द , रमेश , दिनेश सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।