रमजान के पवित्र महीने में ही अल्लाह के नबी पर कुरआन नाजिल हुआ था

अतरौलिया आजमगढ़। रमज़ान उल मुबारक में रातों दिन अल्लाह की रहमतैं, बरकतैं, इनायतैं और नवाज़िशैं नाज़िल होती हैं। इससे पूरा पूरा फायदा वही लोग उठा पाते हैं ,जो उसकी रहमत के सच्चे तलबगार होते हैं, दिन में अल्लाह की रहमत हासिल करने का ज़रिया अगर रोज़ा है तो रात में अल्लाह की रहमत हासिल करने का ज़रिया नमाज़ ए तरावीह है ,जिस तरह दिन में रोज़ा रखने पर बड़ा सवाब है, यूं ही रात में नमाज़ ए तरावीह पढ़ने पर भी बड़ा अजरो सवाब है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो ताला अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया! कि रमज़ान के दिनों में रोज़े रखो, और उसकी रातों में क़याम करो। तरावीह मर्द औरत सबके लिए सुन्नते मोअककेदा है। इसका तर्क करना जायज़ नहीं , अल्लामा अमजद अली आज़मी मोसननिफ बहारे शरीयत फरमाते हैं, कि नमाज़ ए तरावीह पर खोलफाए राशेदीन ने मदावेमत फरमाई है ,और नबी ए करीम सल्लल्लाहो ताला अलेहे वसल्लम का फरमान है कि मेरी सुन्नत और खोलफाए राशेदीन की सुन्नत को अपने ऊपर अनिवार्य कर लो, पैगंबर ए इस्लाम ने नमाज़ ए तरावीह पढ़ी और उसे बहुत पसंद फरमाया। हजरत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाह ताला अनहो से रवायत है ,कि आप सल्लल्लाहो ताला अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया! जो रमज़ान उल में ईमान की वजह और सवाब हासिल करने की गरज़ से रातों में क़याम करेगा ,तो उसके अगले गुनाह बख्श दिए जाएंगे। पैगंबर इस्लाम की सुन्नत से साबित है, कि आपने नमाज़ ए तरावीह को जमात के साथ पढ़ा है, ताकि इसका मसनून होना मालूम हो जाए,उसके बाद आपने इस सुन्नत को तर्क कर दिया, इस अंदेशा के पेशे नज़र कि कहीं मेरी उम्मत पर फर्ज़ न हो जाए, अगर फर्ज़ियत का अंदेशा न होता तो आप हमेशा पढ़ते रहते, पैगंबर ए इस्लाम हज़रत मोहम्मद ने सहाबये केराम को घरों में तरावीह की नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया ,आपके विसाल के बाद नमाज़ ए तरावीह के फर्ज़ होने का अंदेशा खत्म हो गया ,तो हजरत उमर रज़ियललाहो तआला अन्हो (जो इस्लाम के दूसरे खलीफा हैं) रमजान में एक रात मस्जिद तश्रीफ ले गए , लोगों को अलग-अलग नमाज पढ़ते हुए देखा, कोई तन्हा पढ़ रहा है ,किसी के साथ कुछ लोग पढ़ रहे हैं, फरमाया मैं मुनासिब समझता हूं कि इन सब को एक इमाम के साथ जमा कर दूं ,तो बेहतर हो, आपने सबको एक इमाम उबै इब्न काब रज़ियललाहो तआला अन्हो के साथ इकट्ठा कर दिया। फिर दूसरे दिन तश्रीफ ले गए तो देखा कि सब लोग एक इमाम के पीछे नमाज पढ़ते हैं, फरमाया ! यह अच्छी बिदअत है। हज़रत उमर फारूक रज़ियल्लाह तआला अन्हो के ज़माना में लोग तरावीह की नमाज 20 रकआतैं पढ़ा करते थे,यूंही हज़रत उसमान ग़नी और शेरे खुदा, मौला ए कायनात हज़रत अली के ज़माना में भी था। रमज़ान में लोगों को 20 रकआतैं नमाज़ ए तरावीह की हिकमत यह है कि रातों दिन फराइज़ो वाजेबात 20/रकआतैं हैं, लिहाज़ा मुनासिब है कि यह भी 20 हों, तरावीह की 20 रकआतों से फ्राईज़ व बाजेबात की तकमील होती है। दौराने तरावीह पूरे रमज़ान में एक मर्तबा कुरान खत्म करना सुन्नते मुअक्केदा है ,दूसरी मर्तबा फजीलत ,और तीसरी मर्तबा अफज़ल है। रमज़ान उल मोबारक का चांद देखने के बाद तरावीह की नमाज शुरु की जाए और ईद का चांद देखने के बाद छोड़ दी जाए ।नमाज़ ए तरावीह को बिला उज़र ए शरई तर्क करने वाला गुनहगार है। और रमज़ान के पूरे महीना पढ़ना सुन्नति मोअक्केदा है। अक्सर जगह 3/ दिन 7 /दिन 10 /दिन 15/ दिनों में तरावीह में क़ुरआन खत्म हो जाता है, तो लोग समझते हैं कि इसके बाद तरावीह की नमाज़ नहीं पढ़ना है ,और तरावीह की नमाज़ पढ़ना छोड़ देते हैं, जो कि गलत है, क्योंकि रमज़ान में खत क़ुरआन करना मुस्तकिल सवाब का काम है ।और पूरे महीना तरावीह की नमाज़ पढ़ना खोलफाए राशेदीन, सहाबा और सल्फो सालेहीन की पाबंदी और अलहदा सुन्नत है ।
यह उक्त बातैं मौलाना मोहम्मद अब्दुल बारी नईमी आज़मी पेश इमाम जामा मस्जिद अतरौलिया एंव उस्ताद मदरसा अरबिया पैज़े नईमी सरैया पहाड़ी आजमगढ़ ने कहीं।

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