Azamgarh :न्याय की देवी की आँखों की पट्टी हटाना मनुस्मृति थोपने की तैयारी

न्याय की देवी की आँखों की पट्टी हटाना मनुस्मृति थोपने की तैयारी

 

शाहनवाज़ आलम

साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 165 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता

रिपोर्टर रोशन लाल

मधेपुरा न्याय की देवी की आँखों पर बंधी पट्टी को हटाकर मुख्य न्यायाधीश अपने कार्यकाल के दौरान की गयी न्यायिक धांधलियों को छुपा नहीं पाएंगे। उनके कार्यकाल को हमेशा सरकार और संघ के एजेंडे को बढ़ाने के लिए संवैधानिक मूल्यों और परंपराओं से समझौता करने के लिए याद रखा जाएगा।

ये बातें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 165 वीं कड़ी में कहीं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ यह कह कर कि न्याय की देवी की आँखों पर बंधी हटा देने से अब क़ानून अंधा नहीं रह जाएगा, भारतीय न्यायपालिका के गौरवशाली इतिहास पर सवाल उठा रहे हैं। उनके इस बयान से तो यही लगता है कि वो अपने आपको अब तक का सबसे क़ाबिल मुख्य न्यायाधीश मानते हैं जैसे मोदी जी अपने को सबसे क़ाबिल प्रधानमंत्री मानते हैं। यहाँ चंद्रचूड़ जी और मोदी जी अपने पूर्ववर्तियों को कमतर साबित करने की एक ही कुंठा से ग्रस्त दिख रहे हैं।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इस कुंठा से ग्रस्त लोग जिन मूल्यों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं उसका सार्वजनिक प्रदर्शन का ढोंग ज़्यादा करते हैं। यह ऐसा ही जैसे पिछले दस साल से संविधान पर हमला कर रहे मोदी जी ने किसी तरह चुनाव जीतने के बाद संविधान के सामने सर झुकाने का ढोंग किया।

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव ने मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का न्याय की देवी की आँखों पर बंधी पट्टी को औपनिवेशिक प्रतीक बताने को भविष्य में मनुस्मृति थोपने के लिए तर्क गढ़ने की कोशिश बताया है। उन्होंने कहा कि जब संविधान लागू किया जा रहा था तब भी आरएसएस और हिंदू महासभा ने संविधान को पश्चिमी मूल्यों से प्रभावित बताते हुए उसकी जगह मनुस्मृति को लागू करने की वकालत की थी। उन्होंने कहा कि आरएसएस चंद्रचूड़ जी के ज़रिये मनुस्मृति थोपने की अपनी पुरानी योजना को लागू करना चाहती है।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आधुनिक भारतीय क़ानून सभी को बराबरी से देखता है लेकिन अब आँखों की पट्टी हटाकर ऐसी न्याय व्यवस्था लागू करने की कोशिश हो रही है जिसमे जज लोगों की सामाजिक, जातिगत, राजनीतिक और वर्गीय हैसियत देखकर फैसला सुनाएंगे। इससे सबसे ज़्यादा नुकसान दलितों, अल्पसंख्यकों, आदिवासीयों, पिछड़ों, महिलाओं और सामान्य वर्ग के गरीबों को होगा। यह एक तरह से फिर से मनुस्मृति थोपने की साज़िश है जिसमें मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और आरएसएस सभी शामिल हैं।

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