साहिर लुधियानवी से अधूरा प्यार, जिसके प्यार में अमृता प्रीतम कहती थीं ‘ये आग की बात है, तूने ये बात सुनाई है’

Unfinished love with Sahir Ludhianvi, in whose love Amrita Pritam used to say 'Yah aag ki baat hai, tune yah baat sunai hai'

नई दिल्ली:‘मैं तैनूं फ़िर मिलांगी कित्थे? किस तरह पता नई, शायद तेरे ताखियल दी चिंगारी बण के, तेरे केनवास ते उतरांगी, पर तैनूं जरुर मिलांगी’…अगर आप प्रेम करते हैं तो इस कविता से बखूबी वाकिफ होंगे, क्योंकि शब्दों के माध्यम से प्रेम को इतनी खूबसूरती से पिरोया गया है, जो भी इसे पढ़े या सुनेगा, वो इसकी प्रेम भरी दुनिया में खो जाएगा। इस कविता को लिखा था मशहूर कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार अमृता प्रीतम ने।अमृता प्रीतम किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। वे जानी जाती हैं, अपनी कविताओं, कहानियों और नज़्मों के लिए। उनकी कविताएं जितनी ही रोमांटिक होती थी। उतनी ही उनके उपन्यास में दर्द भी दिखाई देता था।अमृता प्रीतम की कविता “अज्ज आखां वारिस शाह नू” (आज मैं वारिस शाह को याद करता हूं – “ओड टू वारिस शाह”) में इसे बखूभी बयां किया गया है। यही नहीं, अमृता के उपन्यास पिंजर में तो महिलाओं के खिलाफ हिंसा, भारत के विभाजन के दौरान भारतीय समाज की स्थितियों को दर्शाता है। बाद में इस पर फिल्म भी बनाई गई, जिसे खूब सराहा गया।अमृता प्रीतम ने उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी को बहुत करीब से देखा। जब देश का विभाजन हुआ तो इसका उन पर काफी असर पड़ा। बाद में उन्होंने अपनी कविताओं और उपन्यास में इस दर्द को बयां किया। उन्होंने पंजाबी के अलावा हिंदी में भी लिखना शुरू किया।अमृता प्रीतम की बात करते ही दो नामों का जिक्र होता है। एक के साथ उन्होंने अपनी जिंदगी गुजारी तो दूसरे शख्स ऐसे थे, जिनसे उन्होंने बेपनाह इश्क किया। ये नाम है इमरोज और साहिर लुधियानवी के। अमृता प्रीतम के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने साहिर लुधियानवी के प्रेम में सिगरेट पीना सीख लिया था। इसी पर उन्होंने कविता भी लिखीं। “यह आग की बात है, तूने यह बात सुनाई है, यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है, जो तूने कभी सुलगाई थी”।हालांकि, वे इमरोज से भी बेपनाह मोहब्बत करती रहीं। अमृता इमरोज से उम्र में बड़ी थीं, लेकिन उनका प्रेम अटूट था। उन्होंने इमरोज के लिए लिखा था- “अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते”.31 अगस्त 1919 को पंजाब के गुजरांवाला में जन्मीं अमृता प्रीतम ने पंजाबी लेखन से अपने करियर का आगाज किया। उन्होंने शुरुआती दिनों में ही कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू कर दिया था। लेकिन, जब वह 11 साल की थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया और घर की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर आ गईं। इसके बावजूद कविताओं से प्रेम बरकरार रहा।उनकी कविताओं से जुड़ी पहली किताब अमृत लेहरन 1936 में प्रकाशित हुई। उस समय अमृता की उम्र महज 16 साल थी। इसी दौरान उनका प्रीतम सिंह से विवाह किया। उन्होंने अपना नाम अमृत कौर से बदलकर अमृता प्रीतम रख लिया। 1960 आते-आते उनका तलाक हो गया था।अमृता प्रीतम ने “सत्रह कहानियां”, “सात सौ बीस कदम”, “10 प्रतिनिधि कहानियां”, “चूहे और आदमी में फर्क”, “दो खिड़कियां” जैसी कहानियां लिखीं। इसके अलावा उन्होंने “यह कलम यह कागज़”, “यह अक्षर ना राधा ना रुक्मणी”, “जलते बुझते लोग”, “जलावतन”, “पिंजर” जैसे मशहूर उपन्यास लिखें।अमृता को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1982 में भारत का सर्वोच्च साहित्यिक ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। वे पहली महिला थीं, जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। उन्हें 1969 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अमृता प्रीतम का लंबी बीमारी के बाद 31 अक्टूबर 2005 को निधन हो गया।

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