शहादत के पर्व मोहर्रम की 7 तारीख को शिया समुदाय का मातमी जुलूस निकाला

Jabalpur. On the 7th day of Muharram, the festival of martyrdom, a mourning procession of the Shia community was taken out. The mourning procession started from Majlis Imambara. Shujaat Rizvi Shamsul, Kazim and Faizan Naqvi were reciting Noha in the procession.

जबलपुर। शहादत के पर्व मोहर्रम की 7 तारीख को शिया समुदाय का मातमी जुलूस निकाला।
मजलिस इमामबाड़े से मातमी जुलूस निकला जुलूस में शुजाअत रिजवी शमसुल, काज़िम एवं फैजान नकवी नोहा पढ़ रहे थे। जिस पर शिया बंधुओं ने मातम किया” जुलूस घंटाघर, बड़ी ओमती, गलगला चौराहे होते हुए सायंकाल 6 बजे गलगला शिया इमामबाड़े में समापन हुआ।
महिला एवं पुरुषों की मजलिस का सिलसिला रहा दोपहर 2 बजे घंटाघर स्थित बाबा जाफरी के इमामबाड़े में मजलिस हुई जिसमें जनाब नाईब रिजवी एवं एहतिशाम हैदर ने मर्सिया एवं सलाम पढ़ा उसके पश्चात लखनऊ से तशरीफ लाए मौलाना जाबिर अंसारी साहब ने मजलिस को संबोधित किया जिसमें बड़ी संख्या में शिया बंधुओं ने उन्हें सुना मौलाना ने अपने सम्बोधन में कहा कि हर मुसलमान को अपने बच्चों को बताना होगा कि मोहर्रम केवल एक महीने का नाम नहीं है। बल्कि मोहर्रम नाम है एक आंदोलन का भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन न इंसाफ़ी, अत्याचार और बुराइयों के खिलाफ इस महीने की घटना वो घटना हैं जो सोते हुए इंसान को झिंझोड़ती है। मजलूमों के अंदर उम्मीद की किरण पैदा करती है। और ज़ालिम के खिलाफ आवाज़ उठाने का हौसला देती है।
बता दें कि
इस्लामी नया साल हिजरी सन 1447 मोहर्रम माह से शुरू हो गया है। 27 जून, शुक्रवार (जुमा) को मोहर्रम की पहली तारीख थी और आगामी 6 जुलाई, रविवार को (10 मोहर्रम) यौम-ए-आशूरा है।
जबलपुर में मोहर्रम का पर्व हज़रत इमाम आली मुकाम के उर्स शरीफ के रूप में अकीदत के साथ मनाया जाता है। संस्कारधानी में मुस्लिम धर्मावलंबियों के साथ-साथ हिंदू धर्मावलंबी भी सवारियां रखते हैं और मोहर्रम पर अपनी अकीदत पेश करते हैं। शहर में सभी धर्मों और समुदायों द्वारा सामूहिक रूप से शरीक होकर मनाए जाने वाले इस पर्व को पूरे देश में कौमी एकता की मिसाल कहा जाता है। मोहर्रम के मौके पर पूरे देश से लोग जबलपुर आते हैं।

बाइट जाबिर अली अंसारी

जबलपुर से वाजिद खान की रिपोर्ट

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