Deoria news :राम वन गमन की कथा सुन श्रद्धालुओं की आंखों से छलके आंसू
Tears rolled down the eyes of devotees after listening to the story of Ram's exile
विनय मिश्र, जिला संवाददाता।
,बरहज देवरिया।
पुराने हनुमान मंदिर पर चल रहे श्रीमद् भागवत कथा एवं श्री राम कथा में कानपुर से पधारी हुई, सुश्री साध्वी
निलेश शास्त्री ने श्री, राम वन गमन की कथा का श्रद्धालुओं को नुकसान करते हुए कहा कि श्री सीताराम विवाह के बाद अवध में खुशहाली का माहौल था इसी बीच चक्रवर्ती महाराज दशरथ के मन में विचार आया कि अब अयोध्या की राज सत्ता अपने बड़े बेटे राम को सौंप देनी चाहिए गुरु वशिष्ट के अनुसार राम के राज्याभिषेक की तैयारी होने लगी पूरे अवध में घर-घर मंगल कलश सजा जाने लगे अवध वासियों के मन में उत्साह, और उमंग की लहरें दौड़ गई सभी लोग रात बीतने की प्रतीक्षा कर रहे थे कि कल सुबह हम लोगों के राम राजाराम होंगे इसको लेकर देवताओं में परेशानी बढ़ने लगी देवताओं ने सोचा कि भगवान को हम लोगों के उद्धार के लिए आए हुए हैं, इन्हें अगर अयोध्या का राजा बना दिया जाएगा तो हम लोगों का कार्य अधूरा रह जाएगा इसलिए देवताओं ने मां सरस्वती से प्रार्थना की मां सरस्वती ने कहा की अयोध्या में मैं किसी की बुद्धि बदल नहीं सकती क्योंकि सभी लोगों ने सरयू का जल को ग्रहण किया जो सरयू का जन्म ग्रहण न किया हो उसकी बुद्धि बदल सकती है तब देवताओं ने बताया कि मंथरा एक ऐसी , महिला है जिसने सरजू का नहीं जल ग्रहण नहीं किया है तो मां सरस्वती ने मंथरा की बुद्धि पर प्रहार किया, और मंथरा सीधे ,कैकेयी के राजमहल पहुंची, और कैकेयी कहा कि , तुम राजमहल में सोई हुई हो और महाराज दशरथ तुम्हारे बड़े बेटे राम को राज्य देने जा रहे हैं जबकि भारत ननिहाल में है और मंथरा ने कैकेयी को दो बरदान को याद दिलाते हुए कहा कि बड़ा सुंदर समय है भारत के लिए राजगद्दी और राम को 14 वर्ष का वनवास मांग लो जिस पर कैकेयी की तैयार हो गई दुई बरदान भुप सन थाति मानहु आज जुडाव छाती,
प्रथमहि बर भरतहि कर टिका, दुसर बर मागहु कर जोरि पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी, तापस वेष विशेष उदासी चौदह वर्ष राम बन बासी।।इधर चक्रवर्ती महाराज दशरथ अपनी पत्नी के पास पहुंचे तो देखा कि कैकई कोप भवन में, फटा पुराना कपड़ा पहनकर जमीन पर लेटी हुई चक्रवर्ती महाराज दशरथ ने कहा कि खुशी के इस अवसर पर यह क्या कर रही हो तब रानी ने अपने दो वरदान का प्रस्ताव रखा चक्रवर्ती महाराज ने कहा तुम दो वरदान की बात करती हो दो की जगह चार माँग लो, चक्रवर्ती महाराज दशरथ ने कहा कि रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। महारानी ने ने पहला वरदान भरत को, राजगद्दी और दूसरा वरदान राम को 14 वर्ष के लिए तपस्वी के वश में वनवास मांगा जिस पर चक्रवर्ती महाराज व्याकुल हो उठे उन्होंने कहा कि मैं तो चंद्रमा का चित्र बना रहा था लेकिन तुमने राहु बनकर चंद्रमा को ही ग्रस लिया जब अयोध्या वासियों ने सुना था कि कल राम राजा होंगे तो गोस्वामी जी लिखते हैं सुनत राम अभिषेक सुहावा बाजत गहागह अवध बधावा लेकिन जब अयोध्या वासियों ने सुना की राम का 14 वर्ष के लिए वनवास हो गया वह अवध की प्रजा के आंखों में केवल और केवल आंसू ही मात्रा थे राम बनवास हो जाने पर चक्रवर्ती महाराज आठ बार भगवान के नाम का स्मरण करके भगवान के धाम चले गए। कथा के दौरान हनुमान मंदिर के मंहत श्री 1008 के श्री मारूति जी महाराज उर्फ त्यागी बाबा, सीमा शुक्ला, राम आशीष यादव, रामाशंकर यादव, रामायण यादव, उमेश चंद चौरसिया, सोनू भारद्वाज, चंद्रभान तिवारी, रमाशंकर, श्याम सुंदर दास, प्रभाकर शुक्ला सीमा देवी ,रजवंती देवी, कुसुम ,सरिता देवी, बदामी देवी, सहित नगर एवं क्षेत्र के सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु जन उपस्थित रहे।



