सिनेमा,संस्कृति और सामाजिक जागरूकता:अनिल मिश्रा और शशि शर्मा के प्रयासों ने DPIFF को नई ऊँचाई दी
अनिल मिश्रा और शशि शर्मा के नेतृत्व में DPIFF बना भारतीय सिनेमा का वैश्विक मंच

मुंबई:भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली मंचों में शुमार दादासाहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (DPIFF) ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम दर्ज की है। बड़ौदा की महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ के फेस्टिवल के सलाहकार बोर्ड में शामिल होने की घोषणा ने DPIFF की गरिमा, वैचारिक गहराई और वैश्विक पहचान को और अधिक सुदृढ़ कर दिया है।इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के पीछे फेस्टिवल के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल मिश्रा की दूरदृष्टि, अथक परिश्रम और वर्षों की निरंतर मेहनत की अहम भूमिका रही है। उनके नेतृत्व में DPIFF ने न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी एक विशिष्ट और सम्मानित पहचान स्थापित की है। अनिल मिश्रा का यह स्पष्ट दृष्टिकोण रहा है कि सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम न होकर शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और सकारात्मक बदलाव का सशक्त औज़ार बने और आज यह सोच वैश्विक मंचों पर सराही जा रही है।अनिल मिश्रा के प्रयासों से दादासाहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल एक ऐसा प्रभावशाली मंच बन चुका है, जो युवा पीढ़ी को रचनात्मकता, संस्कृति और सिनेमा की सकारात्मक शक्ति से जोड़ने का कार्य कर रहा है। भारतीय सिनेमा की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनका योगदान अतुलनीय माना जा रहा है।वहीं, DPIFF को वैश्विक पहचान दिलाने में सलाहकार बोर्ड के सदस्य शशि शर्मा की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। इटली मूल के शशि शर्मा लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फेस्टिवल को सशक्त बनाने के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं। वे एक संवेदनशील और विचारशील व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं, जो गरीबों के कल्याण, युवा पीढ़ी के मार्गदर्शन, और सामाजिक मुद्दों के प्रति विशेष रूप से जागरूक रहते हैं। भारत में सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को लेकर उनकी चिंता और युवाओं को मनोरंजन की दुनिया में सकारात्मक दिशा देने के उनके प्रयास समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ का सलाहकार बोर्ड में शामिल होना इस बात का सशक्त प्रमाण है कि DPIFF अब केवल एक फिल्म फेस्टिवल नहीं रहा, बल्कि यह कला, संस्कृति, विचार और सामाजिक चेतना का एक अंतरराष्ट्रीय संगम बन चुका है। लक्ष्मी विलास पैलेस की संरक्षक के रूप में भारतीय विरासत के संरक्षण में उनका योगदान DPIFF की सांस्कृतिक सोच से पूरी तरह मेल खाता है।कुल मिलाकर, अनिल मिश्रा की नेतृत्व क्षमता, शशि शर्मा की अंतरराष्ट्रीय दृष्टि और सामाजिक संवेदनशीलता, तथा महारानी राधिकाराजे गायकवाड़ की शाही सांस्कृतिक विरासत इन तीनों के संयुक्त प्रयासों से दादासाहेब फाल्के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल आज भारतीय सिनेमा को वैश्विक सांस्कृतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रहा है।



