ओलंपिक मेडल जीतने से खिलाड़ियों के साथ उनके परिवार और गांव की जिंदगी भी बदल जाती है: साक्षी मलिक
मुंबई, 6 जुलाई: भारत की स्टार रेसलर साक्षी मलिक ने कहा कि ओलंपिक मेडल जीतना सिर्फ खिलाड़ियों की ही जिंदगी नहीं बदलता, बल्कि उनके परिवार और गांव को भी बदल देता है।
भारत 120 खिलाड़ियों का दल ओलंपिक में भेज रहा है, जिसमें गत चैम्पियन पुरुष भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा की अगुवाई में एथलेटिक्स टीम है, 21 सदस्यीय निशानेबाजी टीम है और 16 सदस्यीय पुरुष हॉकी टीम शामिल है।
जेएसडब्ल्यू ग्रुप की मेजबानी में आयोजित एक पैनल बातचीत के दौरान ओलंपिक कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक ने कहा कि ओलंपिक सपना सिर्फ खिलाड़ी का नहीं, बल्कि पूरे परिवार का सपना होता है।
साक्षी ने रोहतक में छोटू राम स्टेडियम में ट्रेनिंग ली थी, उनकी ऐतिहासिक मेडल जीत के बाद टिन की छत के इस स्टेडियम को वातानुकूलित हॉल में तब्दील कर दिया है। यहां तक कि उनके नाम पर गांव में एक स्टेडियम भी बनाया गया।
साक्षी ने हरियाणा की लड़कियों में कुश्ती की लोकप्रियता के बारे में बताया कि, वहां हर दस मिनट की दूरी पर एक स्टेडियम है जहां आपको लड़कियां ट्रेनिंग करती हुई मिल जाएंगी। अब ये पुरानी धारणा बदल गई है कि लड़कियां रेसलिंग नहीं कर सकती हैं। पहली बार ओलंपिक में पांच लड़कियां कुश्ती के लिए जा रही हैं, जबकि लड़का केवल एक है।
रियो ओलंपिक में जिमनास्टिक में चौथे नंबर पर आने वाली दीपा कर्माकर ने तब पदक ना जीत पाने की निराशा व्यक्त की और कहा कि एक खिलाड़ी के लिए चौथे नंबर पर आना सबसे बुरा है। कोई भी खिलाड़ी जो चौथे नंबर पर आता है वह कभी चैन से नहीं सो सकता।
हालांकि करमाकर ने इन चीजों से सीखने के महत्व पर जोर दिया है। उनकी ओलंपिक यात्रा ने त्रिपुरा में भी काफी बदलाव लाया है जहां जिम्नास्टिक अब काफी उत्साह के साथ अपनाया जा रहा है। 2016 ओलंपिक के बाद इंफ्रास्ट्रक्चर में बहुत सुधार आए, जिसमें फॉम पिट जैसे अहम उपकरणों का इस्तेमाल भी था जो पूर्व में उपलब्ध ही नहीं होते थे। लेकिन करमाकर को ये भी लगता है कि ऐसी सुविधाएं अगर पहले उपलब्ध होती तो देश के मेडल दोहरे अंकों में होते। लेकिन पेरिस ओलंपिक में ये चीजें बदल सकती हैं।
करमाकर ने कहा कि जब तक हम सफल नहीं होते, तब तक एक खिलाड़ी के तौर पर हमें कुछ नहीं मिलता है। जिम्नास्टिक एक ऐसा खेल है जिसके बारे में लोग बहुत ज्यादा नहीं जानते थे, और लड़कियों को कमतर आंका जाता था।
उभरती हुई एथलीट प्रिया मोहन का कहना है कि हर खिलाड़ी की सफलता की अपनी एक समयरेखा होती है। कई एथलीट 24 या 25 साल की उम्र में अपने चरम पर होते हैं। नीरज चोपड़ा के ओलंपिक गोल्ड मेडल ने हमारा माइंडसेट बदल दिया है। ये दिखाता है कि हम भी ऐसी सफलता हासिल कर सकते हैं।
जेएसडब्ल्यू के संस्थापक पार्थ जिंदल ने नीरज चोपड़ा के बारे में बताते हुए कहा, ”नीरज चोपड़ा की कहानी प्रतिभा को पहचानने और लचीलेपन का एक शानदार प्रमाण है। हमने अपने खेल उत्कृष्टता कार्यक्रम के जरिए 2015 में नीरज को खोजा था और 2016 में, उन्होंने विश्व जूनियर चैम्पियनशिप रिकॉर्ड तोड़ने के बाद पोलैंड में 86.48 मीटर थ्रो के साथ स्वर्ण पदक भी जीता। वे रियो ओलंपिक में कांस्य पदक से चूक गए थे लेकिन वहां से उनकी यात्रा और भी दिलचस्प हो गई।