नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख बशीर ने कहा कि गठबंधन दो पार्टियों के बीच है, नेताओं के बीच नहीं
National Conference leader Sheikh Bashir said the coalition is between two parties and not between leaders
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद घाटी में सियासी हलचल तेज होने के साथ ही यहां के आम लोगों में भी खासा उत्साह है।
अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद यहां पहली बार चुनाव हो रहा हैा। सभी लोग अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख बशीर ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गठबंधन किया है। दोनों ही दलों ने एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वैसे तो इस कदम से किसी के भी हितों पर कोई कुठाराघात नहीं पहुंचेगा, लेकिन मैं यहां इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि यहां किसी का भी निजी हित कोई मायने नहीं रखता। अगर हमारे लिए कुछ मायने रखता है, तो वो पार्टी है। हां…इस बात को भी सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता कि जो व्यक्ति पिछले 10 सालों से पार्टी के लिए काम कर रहा हो, लेकिन गठबंधन के बाद उसे यह कह दिया जाए कि वो चुनाव नहीं लड़ेगा, तो उसे झटका तो लगेगा ही। लेकिन, मैं यहां इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि पार्टी मायने रखती है, ना कि किसी व्यक्ति का निजी हित। हमारी लिए पार्टी ही सर्वोपरि रही है और आगे भी रहेगी।”
उन्होंने आगे कहा, “मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यहां आपको एक बात समझनी होगी कि जब कोई भी राजनीतिक दल गठबंधन करने का फैसला करता है, तो वो बड़े कारकों को ध्यान में रखता है। इसके अलावा, आपको एक बात पर और ध्यान देना होगा कि जम्मू-कश्मीर मौजूदा समय में एक या दो नहीं, बल्कि कई परेशानियों से जूझ रहा है। इसी बीच चुनाव भी होने जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें कई बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा। मैं एक बार फिर से अपने सहकर्मियों को यही कहना चाहूंगा कि यह गठबंधन किया गया है, तो आप लोग इसे मेहरबानी कर निजी तौर पर मत लीजिए। हम सभी जानते हैं कि यह लोकतंत्र है और किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत कोई भी पार्टी किसी के भी पाले में जा सकती है।”
उन्होंने कहा, “हां….इस बात को सिरे से खारिज करना ठीक नहीं कि मौजूदा समय में राजनीतिक परिदृश्य के लिहाज से घाटी में कई विसंगतियां हैं, लेकिन हमें इन सबको नजरअंदाज कर विकास पर ध्यान देना होगा, तभी हम अपने मकसद में सफल हो पाएंगे। हम जब इस बात को भलीभांति जानते हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अंतिम शक्ति जनता के पास ही होती है। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मान लीजिए कि किसी चुनाव में 20 उम्मीदवारों की सूची है, लेकिन जनता तो किसी को एक ही जीत का ताज पहनाएगी। ऐसा तो मुमकिन नहीं कि सभी को जीत मिले। यही लोकतंत्र की रीति है, जिसे हम सभी लोग स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं।”