बीएसपी की विरासत पर कांग्रेस की नजर,कांशीराम की सीट से खरगे को लड़ाने की तैयारी में कांग्रेस

देश राजधानी दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. यह बात यूं ही नहीं कही जाती बल्कि चुनावी ट्रैक रिकार्ड भी इसकी तस्दीक करते हैं. पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी तक उत्तर प्रदेश से ही जीतकर देश के प्रधानमंत्री बने हैं.बीजेपी को विपक्ष इसी रास्ते पर रोकने की कोशिश में है, जिसके लिए सियासी तानाबाना बुना जाने लगा है. इसी के मद्देनजर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को उत्तर प्रदेश से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी है.The power of the country’s capital, Delhi, passes through Uttar Pradesh. This is not only said but also confirmed by the electoral track record. From Pandit Jawaharlal Nehru to Indira Gandhi, Rajiv Gandhi, Atal Bihari Vajpayee and Narendra Modi, the country’s prime ministers have won from Uttar Pradesh . . . . Congress President Mallikarjun Kharge is set to contest the 2024 Lok Sabha elections from Uttar Pradesh.मल्लिकार्जुन खरगे के लिए यूपी की उस सीट को भी चिन्हित किया गया है, जहां से बसपा संस्थापक कांशीराम जीतकर पहली बार सांसद पहुंचे थे. इसके बाद ही कांशीराम ने उत्तर प्रदेश में दलितों के दिल में राजनीतिक चेतना जगाई थी और बसपा को नई सियासी बुलंदी पर पहुंचाने का काम किया. तीन दशक के बाद बसपा यूपी की सियासत में हाशिए पर पहुंच गई है तो कांग्रेस खरगे के जरिए दलितों को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.

Dalit votes supported by Kharge

कांग्रेस खरगे को यूपी में किस सीट से चुनावी मैदान में उतारी है, यह भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात साफ है कि दलित वोटों को जोड़ने के लिए कांग्रेस गंभीर है. ऐसे में कांग्रेस मानना है कि बसपा प्रमुख मायावती विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा न बनकर बीजेपी की मददगार बन रही हैं. ऐसे में यूपी सहित देशभर में दलित वोट साधने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को दक्षिण के कर्नाटक में उनकी गुलबर्गा सीट के साथ ही यूपी की इटावा या बाराबंकी सीट से विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर उतारा जाए.खरगे को यूपी में चुनाव लड़ने की जिन सीट पर चर्चा हो रही है, उसमें एक सीट इटावा और दूसरी बाराबंकी है. इन दोनों ही सीटों पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि एक सीट पर बसपा प्रमुख मायावती के राजनैतिक गुरू कांशीराम सांसद थे जबकि दूसरी सीट से उनके करीबी रहे पीएल पुनिया सांसद चुने गए थे,इटावा सीट पर दलित-पिछड़े वोटों का समीकरण है. दूसरी बाराबंकी सीट पर दलित-मुस्लिम कैंबिनेशन काफी मजबूत है. इटावा से चुनावी मैदान में उतरते हैं तो यादव बेल्ट की सीटों को प्रभावित कर सकते हैं तो बाराबंकी सीट से उतरते हैं तो रायबरेली-अमेठी सहित अवध सीटों को प्रभावित करेंगे.

Kanshiram became MP from Etawah for the first time

कांशीराम ने 1984 में बसपा का गठन के साथ ‘दलित समाज’ का एक पुख्ता सियासी आधार तैयार किया. देश के अलग-अलग हिस्सों में घूम वो घूमकर पिछड़े, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के बीच अभियान चलाते रहे. मुलायम सिंह यादव ओबीसी-अल्पसंख्यक सियासत कर रहे थे.कांशीराम यूपी की सहारनपुर, अमेठी, इलाहाबाद और पंजाब की होशियारपुर लोकसभा सीट से लड़कर हार चुके थे. 1991 में यूपी की इटावा लोकसभा सीट रिक्त हुई थी, जहां उपचुनाव में कांशीराम जीतकर पहली बार सांसद चुने गए. उस समय तक इटावा लोकसभा सीट अनारक्षित थी.कांशीराम की जीत के साथ यूपी में नए राजनीतिक समीकरण शुरू हुआ. इटावा में कांशीराम को जिताने में मुलायम सिंह की अहम भूमिका रही थी. मुलायम के खास रामसिंह शाक्य जनता दल से प्रत्याशी थे, लेकिन उन्होंने कांशीराम की मदद की. कांशीराम के कहने के बाद ही मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया था.कांशीराम ने उस समय कहा था कि यदि मुलायम सिंह से अगर हाथ मिला लें तो यूपी में सभी दलों का सुपड़ा साफ हो जाएगा. इटावा जीत के बाद मुलायम और कांशीराम की जुगलबंदी शुरू हुई और 1993 में दोनों मिलकर चुनाव लड़े. बीजेपी का सफाया कर दिया था,कांशीराम अपने 85 बनाम 15 के मिशन को लेकर चल रहे थे, जिसमें मुलायम सिंह यादव उनके लिए फिट बैठ रहे थे, कांशीराम के सांसद चुने जाने के बाद बसपा को सियासी बुलंदी मिली. 1993 में सरकार में सहयोगी रही तो 1995 में सपा के साथ गठबंधन टूटने के बाद मायावती सीएम बनी. कांशीराम के बिमार होने के बाद बसपा की कमान मायावती के हाथों में आ गई तो वो बहुजन समाज के मिशन से दूर होने और सत्ता के लिए सर्वजन की तलाश करने में इतनी मशगूल हुईं,2007 में बसपा को अपने दम पर यूपी में सत्ता जरूर मिल गई, लेकिन दलित आधार बसपा का सिकुड़ता गया. दलित मानी जाने वाली जातियां भी उनसे अलग होती चली गईं और मायावती सियासी हाशिए पर पहुंच गई तो कांग्रेस दलित वोटों को साधने के मिशन में जुट गई.

Plan to contest Kharge from Kanshiram’s seat

बसपा प्रमुख मायावती 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए और विपक्षी गठबंधन INDIA के साथ गठबंधन करने के बजाय अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में है. ऐसे में कांग्रेस मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्षी गठबंधन की तरफ से यूपी में चुनाव लड़ाने की तैयारी है, जिसके जरिए एक तरफ मायावती को सियासी संदेश देने और दूसरी दलित वोटों के विश्वास को जीतने का प्लान है. ऐसे में खरगे के लिए उसी सीट को चिन्हित किया जा रहा है, जहां से कांशीराम सांसद चुने गए थे. इस तरह सीधे तौर पर कांशीराम की विरासत को खरगे के जरिए कांग्रेस अपनाने की कोशिश कर सकती है.खरगे भले ही कांग्रेस में हो और मौजूदा समय में पार्टी अध्यक्ष हो, लेकिन वो हमेशा से सामाजिक न्याय वाली सियासत करते रहे हैं. कर्नाटक में इस साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस खरगे के जरिए दलित वोटों को एकमुश्त अपने पक्ष में करने में कामयाब रही है. खरगे दलित कार्ड को भुनाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं,जातीय जनगणना के मुद्दे को धार दे रहे हैं तो कांशीराम के सामाजिक न्याय के सिद्धांत, जिसकी जितनी भागेदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी वाली बात को भी खरगे अपने भाषणों में जोर-शोर से उठाते हैं. ऐसे में अब कांशीराम की सीट से वो चुनावी मैदान में उतरे हैं तो बड़ा सियासी संदेश जाएगा.Kharge also raises the issue of Kanshiram’s principle of social justice, which is the more shared, the more shared, in his speeches. In such a case, if he is contesting from Kanshiram’s seat, it will be a big political message.

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