गंगा सप्तमी पर विशेष ।। 

 

विनय मिश्र ,जिला संवाददाता।

बरहज देवरिया।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान शंकर की जटाओं से मां गंगा ने पृथ्वी की ओर अपनी यात्रा आरंभ की थी। ऐसी मान्यता है कि गंगा सप्तमी’के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्यों को उसके हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

गंगा सप्तमी के दिन गंगा शिव की जटाओं से निकली थीं और गंगा दशहरा के दिन गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।

विष्णु आदि पुराणों के अनुसार गंगा को भगवान विष्णु के बायें पैर के अंगूठे के नख से प्रवाहित होना बताया गया है। कुछ अन्य पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान शंकर ने अपनी जटा से गंगा को सात धाराओं में परिवर्तित किया था। इनमें तीन धाराएं- नलिनी’, ‘हलदिनी’, ‘पावनी पूर्व की ओर हैं। ‘सीता’, ‘सुचक्षु’, ‘सिंधु पश्चिम की ओर हैं। सातवीं धारा भगीरथी हैं। कूर्म पुराण के अनुसार गंगा सबसे पहले *’सीता’, ‘अलकनंदा’, ‘सुचक्षु’ और ‘भद्रा’ के रूप में चार धाराओं में बहती है। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा मंदाकिनी के रूप में, पृथ्वी पर गंगा’ के रूप में और पाताल में भोगवती के रूप प्रवाहित हो रही हैं।

गंगा के जन्म के संबंध में पुराणों में अनेक कथाएं हैं। एक मान्यतानुसार भगवान विष्णु के वामन रूप में राक्षस बलि के प्रभुत्व से मुक्ति दिलाने के बाद ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरण धोए और उस जल को अपने कमंडल में भर लिया। एक अन्य कथानुसार भगवान शिव के संगीत को सुनकर भगवान विष्णु के शरीर से पसीना निकलने लगा तो उसे ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में भर लिया और कमंडल के इसी जल से गंगा का जन्म हुआ।

एक पौराणिक कथा के अनुसार जब गंगा शिव की जटाओं से पृथ्वी की ओर निकली, तो उनके प्रचंड वेग से पृथ्वी पर उथल-पुथल मच गई। इसी क्रम में गंगा ने ऋषि ‘जाहनु के आश्रम को भी तहस-नहस कर दिया और उनकी तपस्या भंग कर दी। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने गंगा को दंड देते हुए उसके समस्त जल को पी लिया। यह देखकर ‘देवताओं ने ऋषि से गंगा को मुक्त करने की प्रार्थना की ताकि वे राजा भगीरथ के पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति प्रदान कर सकें’। ऋषि जाहनु ने देवताओं की विनती पर गंगा को मुक्त करते हुए उसे अपने कान से बाहर निकाल दिया। इस कारण गंगा का नाम ‘जाह्नवी’ हुआ। इस घटना के बाद से गंगा को ऋषि जाहनु की पुत्री भी कहा जाने लगा।

गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनानां शतैरपि।

मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स गच्छति॥

जो गंगा गंगा कहता है, चाहे वह सैकड़ों योजन दूर से भी, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और विष्णुलोक में जाता है।

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