भाजपा पर भारी हुआ बहुजन समाज पार्टी का दांव,पूर्वांचल की ये चार सीटे अब मोदी मैजिक के भरोसे
रिपोर्ट अशहद
यूपी:बहुजन समाज पार्टी ने पश्चिमी यूपी की तरह पूर्वी यूपी में भी बाजी मार ली है. अब तक विपक्ष बहुजन समाज पार्टी और उसकी सुप्रीमो मायावती पर बीजेपी की बी टीम कहकर हमला करता रहा है. लेकिन बीएसपी ने पहले वेस्ट यूपी में उम्मीदवार दिए, जिससे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को जीत के लिए लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं, अब उसने पूर्वी यूपी में उम्मीदवारों की घोषणा की है जो पार्टी को मुश्किल में डाल रहे हैं। चुनाव समाजवादी पार्टी ने मिलकर लड़ा था। आरएलडी और बहुजन समाज पार्टी. परिणामस्वरूप, बसपा को 10 सीटें और समाजवादी पार्टी को पांच सीटें मिलीं। इस बार बीजेपी और आरएलडी एक साथ हैं और कांग्रेस और एसपी एक साथ हैं लेकिन बीएसपी अकेले संघर्ष कर रही है. इस प्रकार, राज्य में त्रिपक्षीय मुकाबला देखने को मिल रहा था। ऐसा लग रहा था कि त्रिपक्षीय मुकाबले से बीजेपी को फायदा होगा. लेकिन जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी ने चुनावी मंच तैयार किया है उससे पता चलता है कि वह बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी करने के लिए पूरी तरह से तैयार है. पूर्वी यूपी की ये चार सीटें ही हैं जिन्हें बसपा ने एनडीए के लिए मुश्किल बना दिया है आजमगढ़ सीट पूर्वी उत्तर प्रदेश की वो सीट जिसे समाजवादी पार्टी का गढ़ बताया जा सकता है. पर सपा के इस सुरक्षित किले को भी भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के आम चुनावों के बाद हुए उपचुनाव में भेदने में कामयाब हुई थी. भोजपुरी सिने स्टार निरहुआ ने इस सीट से तब जीत दर्ज किया था. जाहिर है बीजेपी ने उन्हें फिर एक बार मौका दिया है. दरअसल निरहुआ को इस सीट पर 2019 में करीब 3 लाख वोटों से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने हराया था. पर हारने के बाद भी निरहुआ ने आजमगढ़ नहीं छोड़ा. बाद में अखिलेश यादव ने प्रदेश की राजनीति करने के लिए लोकसभा सदस्यता छोड़ दी. उपचुनाव हुए और निरहुआ ने यहां से सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को करीब साढ़े 4 हजार वोटों से हराया था.पर इस जीत के पीछे सबसे बड़ा कारण बीएसपी का अलग होकर चुनाव लड़ना था. बीएसपी ने उस चुनाव में स्थानीय मुस्लिम नेता गुड्डु जमाली को मैदान में उतारा था. गुडु्डु ने करीब ढाई लाख वोट हासिल किए और मुलायम सिंह यादव परिवार के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को शिकस्त दिलवा दी. मतलब साफ है कि निरहुआ की जीत बीएसपी प्रत्याशी के कारण ही हुई थी. इस बार भी बीजेपी और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी पुराने ही हैं. पर इस बार बीएसपी ने जिस शख्स को कैंडिडेट बनाया है वो समाजवादी पार्टी नहीं बीजेपी के लिए खतरा बनने वाला है. बीएसपी ने 12 अप्रैल को जो चौथी लिस्ट जारी की है उसके अनुसार आजमगढ़ से भीम राजभर को आजमगढ़ से प्रत्याशी बनाया गया है. भीम राजभर उत्तर प्रदेश बहुजन समाज पार्टी के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में ये बात निकल कर आई थी कि पूर्वी यूपी की सीटें बीजेपी को इसलिए गंवानी पड़ी थी क्योंकि पिछड़ी जातियों से बीजेपी को अपेक्षित सपोर्ट नहीं मिल सका था. शायद यही कारण था कि योगी सरकार की अनिच्छा के बाद भी बीजेपी ने ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान को न केवल पार्टी में शामिल किया बल्कि उन्हें प्रदेश मंत्रिमंडल में भी शामिल कराया. पर मायावती ने ऐसी गोटियां बिछाईं हैं कि बीजेपी की यह रणनीति फेल होती नजर आ रही है. जाहिर है कि आजमगढ़ में बहुजन समाज पार्टी का राजभर प्रत्याशी आने के बाद इस समुदाय के वोट बीएसपी को ही जाएंगे(The Bahujan Samaj Party has won in eastern UP as well as in western UP. Until now, the Opposition has been attacking the Bahujan Samaj Party and its supremo Mayawati as the BJP’s B-team. But the BSP first gave candidates in West UP, leaving the Bharatiya Janata Party (BJP) chewing iron grams for victory, now it has announced candidates in East UP who are putting the party in difficulty. The elections were contested by the Samajwadi Party together. RLD and Bahujan Samaj Party. As a result, the BSP won 10 seats and the Samajwadi Party five. This time BJP and RLD are together and Congress and SP are together but BSP is struggling alone. Thus, the state was witnessing a three-way contest. It seemed that the BJP would benefit from the tripartite contest. But the way the Bahujan Samaj Party has prepared its election platform shows that it is fully prepared to create difficulties for the BJP. These are the four seats in eastern UP that the BSP has made difficult for the NDa)ओमप्रकाश राजभर कितनी भी रैली कर लें या प्रतिष्ठा का सवाल बना लें, इसे रोक नहीं पाएंगे. हालांकि आजमगढ में राजभर वोट निर्णायक नहीं हैं. यहां पर यादव और मुसलमान के वोट ही करीब 45 से 50 प्रतिशत हैं. उसके मुकाबले में राजभर वोट कहीं नहीं ठहरता है. मतलब साफ है कि मायावती को भी राजभर कैंडिडेट खड़ा करने से कोई फायदा नहीं हो रहा है. यह फैसला केवल बीजेपी को नुकसान पहुंचाने और समाजवादी पार्टी को कोई नुकसान न हो इसलिए किया गया लगता है. दरअसल मायावती अगर आजमगढ़ से किसी यादव या मुसलमान कैंडिडेट को टिकट दी होतीं तो बीजेपी को फायदा और समाजवादी पार्टी को नुकसान हुआ होता, पर अब ऐसा नहीं होने वाला है।घोसी संसदीय सीट पर पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान के बसपा प्रत्याशी बनने के बाद एनडीए की ओर चुनाव लड़ रहे सुभासपा कैंडिडेट अरविंद राजभर की स्थिति कमजोर होना तय हो गया है. अब उनकी नैय्या मोदी मैजिक ही लगा सकता है. दरअसल इस सीट पर करीब 2 लाख चौहान मतदाता हैं. बीजेपी ने घोसी से विधायक रहे दारा सिंह चौहान को पिछले साल समाजवादी पार्टी से तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल किया था. दारा सिंह चौहान को घोसी उपचुनाव में बीजपी का टिकट भी दिया गया पर वो चुनाव हार गए. माना यह गया कि स्थानीय जनता की नाराजगी के चलते उनको हार मिली थी.पूर्वांचल की राजनीति के जानकार गौरव दुबे कहते हैं कि बीजेपी यह मानकर चल रही थी नोनिया समुदाय के 2 लाख वोटों को दारा सिंह चौहान एनडीए कैंडिडेट अरविंद राजभर को ट्रांसफर करा सकेंगे. पर अब बीएसपी कैंडिडेट भी नोनिया समुदाय से आने के चलते इस उम्मीद पर पानी फिर गया है. ऐसा लगता है कि यूपी में बीएसपी और समाजवादी पार्टी फ्रेंडली मैच खेल रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने इस सीट से राजीव राय को टिकट दिया. इस तरह बीएसपी ने नोनिया कैंडिडेट खड़ाकर एनडीए को नुकसान पहुंचाने की पूरी तैयारी कर ली है।इस लोकसभा सीट पर करीब 2.5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. जो भाजपा के खिलाफ मजबूत कैंडिडेट के साथ हमेशा से जाते रहे हैं. 2014 में पहली बार भाजपा को यहां से जीत मिली थी. दरअसल मोदी लहर में बसपा के उम्मीदवार ने मजबूती से चुनाव लड़ा था. भाजपा के हरिनारायण राजभर को 379,797 मत जबकि बसपा के दारा सिंह चौहान को 2,33,782 वोट मिले थे. मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल से चुनाव लड़ने के चलते मुस्लिम मतों का बिखराव हुआ और बीजेपी जीत गई.मुख्तार अंसारी 1,66,436 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे. अगर 2019 में भी यही हाल रहा. मोदी लहर के बाद भी बसपा के अतुल राय को दलित, कुछ सवर्ण, चौहान और मुस्लिमों का वोट मिला था और वो एक लाख से अधिक वोट से चुनाव जीत गए थे. बीएसपी के नोनिया प्रत्याशी खड़े करने से बीजेपी को अब केवल मोदी मैजिक पर ही भरोसा दिख रहा है,चंदौली लोकसभा सीट पर 2019 में बीजेपी कैंडिडेट महेंद्र नाथ पांडेय को महज 13 हजार वोटों से जीत मिली थी. जबकि साल 2014 में उन्होंने बसपा के अनिल मौर्या को 1.5 लाख से अधिक वोटों से हराया था. मतलब साफ है कि केंद्रिय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय के लिए पहले ही चंदौली में कांटे की लडाई थी अब बीएसपी ने उनकी इस लड़ाई को और मुश्किल बना दिया है. बसपा ने सत्येंद्र मौर्य को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी को यहां और कमजोर कर दिया है. पूर्व के चुनावों में इस सीट पर मौर्य वोटर्स का खासा प्रभाव देखा गया है.समाजवादी पार्टी ने राजपूत वोटरों को देखते हुए इस बार 2 बार के विधायक और पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को टिकट देकर चुनाव को रोचक बना दिया है. राजपूत पूर्वी यूपी में बीजेपी के कोर वोटर्स हैं पर अगर अपनी जाति का कैंडिडेट कोई दूसरी पार्टी खड़ी करती है तो जाहिर है कि कुछ वोट तो कटता ही है. घोसी विधानसभा उपचुनाव में ठाकुरों के सारे वोट समाजवादी पार्टी के राजपूत कैंडिडेट को चले गए थे.चंदौली में मौर्य वोटर्स के प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि भाजपा के आनंद रत्न मौर्य ने यहां से जीत की हैट्रिक तब लगाई है जब बीजेपी आज के जितनी मजबूत पार्टी नहीं थी. 2014 के चुनाव में भी बसपा ने मौर्य नेता पर दांव खेला था. मायावती ने पूर्व विधायक रहे अनिल मौर्य को टिकट दिया था और वे चुनाव हार गए थे. लेकिन बसपा की नंबर 2 की पोजीशन थी. इस सीट पर सबसे बड़ी आबादी यादवों की है. सपा को यादव और मुस्लिम वोट तो मिलेंगे ही अगर राजपूत वोटों में वो सेंध लगाने में कामयाब होते हैं तो जीत का सेहरा बंध सकता है. क्योंकि बीएसपी तो बीजेपी का ही वोट काटने वाली है.भाजपा से दो बार के सांसद हरीश द्विवेदी का टिकट पहली ही लिस्ट में फाइनल हो गया था. हरीश द्विवेदी का 2019 में मुकाबला सपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी से था. चौधरी सपा व बसपा गठबंधन के प्रत्याशी थे.चौधरी पर सपा ने इस बार भी भरोसा जताया है. समाजवादी पार्टी अपने तीन विधायकों के बल पर मजबूत दिख रही है. इस बार कांग्रेस की ताकत भी समाजवादी पार्टी के साथ है. लेकिन बस्ती सीट पर भी बीजेपी के साथ बीएसपी ने खेल कर दिया है. बीएसपी ने बीजेपी के ही पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र को टिकट दिया है. दयाशंकर भाजपा के बागी हैं. जाहिर है कि बीजेपी के हर हथकंडे से वो परिचित हैं. मिश्रा ब्राह्मण मतदाताओं में सेंध लगाने का हर संभव प्रयास करेंगे.Two-time BJP MP Harish Dwivedi’s ticket was finalized in the first list. In 2019, Harish Dwivedi was contesting against SP candidate former minister Ram Prasad Choudhary. Choudhary was the candidate of the SP-BSP alliance. The Samajwadi Party is looking strong with three MLAs. This time, the Congress’ strength is also with the Samajwadi Party. But even in the Basti seat, the BSP has played with the BJP. The BSP has given the ticket to former BJP district president Dayashankar Mishra. Dayashankar is a BJP rebel. Obviously, he is familiar with every tactic of the BJP. Mishra will make every effort to penetrate the Brahmin voters.