मौनी अमावस्या 29 जनवरी 2025 को।
विनय मिश्र, जिला संवाददाता।
देवरिया।
आचार्य अनिल मिश्रा ने बताया कि कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयन्ती २३ जनवरी २०२५ गुरुवार को सम्पूर्ण भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनायी जायेगी।
भगवान् भास्कर २४ जनवरी २०२५ को दिन में ९:५४ बजे श्रवण नक्षत्र में प्रवेश करेंगें।
षट्तिला एकादशी व्रत का मान सबके लिए २५ जनवरी २०२५ शनिवार को होगा। आज के दिन तिल को छ: प्रकार से प्रयोग करते है, इसीलिए इसे षट्तिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। तिल के छ: प्रयोग निम्न हैं-
तील से स्नान, तील का उबटन लगाना, तील का हवन करना, तील का तेल शरीर पर लगाना, तील का भोजन करना एवं तील का दान करना सर्व पापनाशिनी होती है।
तिल द्वादशी का मान २६ जनवरी २०२५ रविवार को होगा। आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषत: भारत की राजधानी दिल्ली में भारत का ७५ वां गणतन्त्र दिवस ध्वजोत्तोलन के साथ हर्षोल्लास एवं समारोह पूर्वक मनायी जायेगी। आज सम्पूर्ण भारतवर्ष तिरंगामय दिखाई देगा।
पुत्र की कामना से किया जाने वाला सोम प्रदोष एवं तेरस का व्रत २७ जनवरी २०२५ को किया जायेगा एवं आज ही महानिशा में चतुर्दशी तिथि मिलने के कारण मासशिवरात्रि व्रत भी किया जायेगा। सोम प्रदोष के साथ मासशिवरात्रि का संयोग शिवपूजन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा।
माघ की अमावश्या को मौनी अमावश्या के रुप में माना जाता है और इसका मान २९ जनवरी २०२५ बुधवार को होगा। आज के दिन मौन रहकर गंगा में, समुद्र में अथवा घर पर स्वच्छ जल में स्नान दान किया जाता है। विशेषत: प्रयाग संगम में मौन स्नान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
-:महाकुम्भ प्रयागराज:-
ब्रह्माजी कहते हैं – हे मनुष्यों मैं तुम्हें ऐहिक तथा आयुष्मिक सुख देने वाले चार कुम्भपर्वों का निर्माण कर पृथ्वी के चार स्थानों ( हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक) में प्रदान करता हूं ।
कुम्भ महापर्व का प्रमाण वेदों से भी प्राप्त होता है यह सिद्ध है। इतिहासकारों ने सटीक विष्लेषण नहीं किया है किन्तु कुम्भ महापर्व अति प्राचीनकाल से आयोजित होता आ रहा है। कुम्भ महापर्व अद्भूत एवं अतुलनीय है। विश्व के किसी भी धर्म- सम्प्रदाय में इसका कोई जोड़ नहीं है। सम्पूर्ण भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व से लोग इस महापर्व में गंगा यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम ‘त्रिवेणी’ के अमृतोमय जल में डूबकी लगाने के लिए जिस भाव एवं श्रद्धा के साथ आते हैं वह वर्णनातीत एवं अकल्पनीय है। प्रयाग में लगने वाले कुम्भ महापर्व के लिए शर्तें एवं परिस्थितियां तथा प्रमाण निम्न है –
*माघ मकरगत रवि जब होई ।*
*तीरथ पतिहिं आव सबकोई ।।*
जब माघ मास हो एवं सूर्य मकर राशि में हों तो सभी देव, दनुज,गन्धर्व एवं मानव तीर्थराज प्रयाग की ओर अग्रसित होते हैं। इसीलिए आम जनमानस माघ मास में तीर्थराज प्रयाग में स्नान, दान, जप, हवन, भण्डारा, एक दिवसीय वास, सप्ताह वास, पक्ष वास एवं कल्पवास अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते हैं।
कुम्भ के विषय में लिखा है-
मकर राशि के सूर्य हों और वृषभ राशि में गुरु गोचर कर रहे हों तो प्रयाग में कुम्भ योग होता है। जिसमें स्नान- दान सामान्य मनुष्य के लिए दुर्लभ होता है। यह संयोग सामान्यतया १२ वर्ष के अन्तराल पर प्राप्त होता है।
अर्थात् माघ मास हो, गुरु वृषभ राशि में गोचर कर रहे हों, सूर्य एवं चन्द्रमा मकर राशि में विराजमान हों तथा अमावश्या तिथि हो तो यह संयोग “महाकुम्भ पर्व” कहलाता है । यह योग सामान्यतया ज्योतिषीय गणनानुसार १४४ वर्ष के अन्तराल पर् प्राप्त होता है। अथर्ववेद में इसका उल्लेख निम्न प्रकार है –
इसप्रकार १- बृहस्पति मेष राशि में अथवा वृष राशि पर होना चाहिए।
२- सूर्य मकर राशि का हो तथा चन्द्रमा भी मकर राशि आ जाये ।
३- सबसे महत्वपूर्ण यह है कि १२ वर्ष का अन्तराल होना आवश्यक है। इसलिए मेष राशि एवं वृष राशि दोनों ही राशियों में से किसी भी राशि में बृहस्पति आ जाये तो माघ कृष्ण अमावश्या को कुम्भ महापर्व का मुख्य स्नान होता है।
हे सन्त गण! पूर्णकुम्भ समय पर बारह वर्ष के बाद आता है। इस प्रकार सम्बत् २०८१ माघ कृष्ण अमावश्या तद्नुसार *२९ जनवरी २०२५ बुधवार को पूर्ण महाकुम्भ पर्व का मुख्य स्नान पर्व अपनी भव्यता-विशालता एवं श्रद्धा भाव में सराबोर होकर सम्पन्न होगा।
वस्तुत: यह सन्तों महात्माओं के सम्मिलन का पर्व है। इसको वे ही अपनी – अपनी परम्पराओं के अनुसार शाही स्नान के रुप में सम्पन्न करते हैं। सनातन धर्म में सन्तों महात्माओं के १३ अखाड़े हैं ( ३ उदासीन अखाड़े, ३ वैष्णव अखाड़े और ७ शैव अखाड़े )। इन तेरह अखाड़ों के सन्त कुम्भपर्व पर स्नान, जप, पाठ, साधना, तपस्या एवं विश्व की शान्ति, समृद्धि एवं कल्याण पर चर्चा आदि के दृष्टिकोंण से मुख्य स्नान से आगे एवं पीछे एक- एक शाही स्नान का विस्तार कर लेते हैं। इस पर्व के प्रवर्तक आदि जगद्गुरु शंकराचार्य को भी माना जाता है। प्रयाग महाकुम्भ पर्व के तीन प्रमुख शाही स्नान निम्न तिथियों पर होंगें –
१ – प्रथम शाही स्नान – मकर संक्रान्ति १४ जनवरी २०२५ मंगलवार ।
२- द्वितिय शाही स्नान (मुख्य स्नान) – २९ जनवरी २०२५ बुधवार ।
३ – तृतीय शाही स्नान – माघ शुक्ल पंचमी ( बसन्त पंचमी ) ३ फरवरी २०२५ सोमवार ।
इसके पश्चात महात्माओं का धीरे- धीरे प्रस्थान एवं यज्ञादि से पुण्यमय हुए तीर्थराज प्रयाग में स्नानार्थ आम जनमानस का स्नान प्रारम्भ होता है और महाशिवरात्रि तक इसका स्नान चलता रहता है।
आम जनमानस का शाही स्नान जिसे चौथा शाही स्नान कहेंगें माघ शुक्ल पूर्णिमा तद्नुसार १२ फरवरी २०२५ बुधवार को होगा। इसके पश्चात् प्रयाग में कल्पवास करने वाले लोग अपने – अपने मन्दिरों , मठों, पीठों एवं गृहस्थजन अपने घरों की तरफ प्रस्थान कर जायेंगें ।
महाकुम्भ पर्व का अन्तिम स्नान अर्थात् पंचम शाही स्नान महाशिवरात्रि तद्नुसार २६ फरवरी २०२५ बुधवार को होगा।
कहा जाता है कि मनुष्य जैसे ही प्रयागराज जाने के लिए तैयार होता है उसके पाप उपर की ओर उठने लगते हैं और प्रयागराज जाने से रोकने लगते हैं। पुण्य के प्रभाव से एवं सत्संगति के कारण जब प्रयाग पहुंच जाता है तो उसके पाप उपर उठकर मुंह , नाक, आंख एवं कान में समा जाते हैं। जब मनुष्य प्रयागराज में गंगा अथवा गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम की कृष्ण-श्वेत धारा में डुबकी लगाता है उसके पाप निकलकर बालों में समा जाते हैं। इसलिए कहा गया है कि इन पापों से मुक्ति हेतु – *” प्रयागे मुण्डे गया पिण्डे काशी ढुण्ढे “* अर्थात् प्रयागराज में मुण्डन, गया में पिण्डदान एवं काशी में ढुण्ढीराज का दर्शन करने पड़ते हैं। अत: प्रयाग में पुरुषों को स्नान के पश्चात् मुण्डन कराना चाहिए और पुन: स्नान एवं दान करना चाहिए जिससे पापों का नाश एवं अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। तत्पश्चात त्रिवेणी , वेणीमाधव , सोमेश्वर महादेव , भारद्वाज आश्रम, नागराज वासुकी , अक्षयवट एवं शेषनाग के दर्शन करना चाहिए ।
जो लोग धनाऽभाव, मनाऽभाव, पुण्याऽभाव, पारिवारिक, सामाजिक , शारीरिक, राजनैतिक अथवा कानूनी प्रतिरोध आदि के कारण इन स्थानों के दर्शन अथवा स्नान का लाभ प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं वे प्रतिदिन स्नानोपरान्त निम्न मंत्र का जप करके पुण्य के भागी एवं प्रयाग स्नान का लाभ प्राप्त कर सकते हैं –
इसके जप करने से त्रिवेणी स्नान का त्रिकालप्रभाव , वेणीमाधव की महिमा, सोमेश्वर महादेव का आशिर्वाद, भारद्वाज ऋषि की तपस्या , नागराज वासुकी की बन्धन मुक्ति, अक्षयवट की अमरता एवं शेषनाग की अशेष कृपा के साथ सम्पूर्ण तीर्थराज प्रयाग स्नान का पुण्यफल प्राप्त होता है।