राजनैतिक व्यंग्य-समागम:1 जो रगों में ही न दौड़ा, तो फिर सिंदूर क्या है! : राजेंद्र शर्मा
चचा गालिब से दोहरी माफी के साथ। एक माफी तो उनके शेर की पैरोडी करने के लिए। दूसरी माफी, पैरोडी में भी शेर की टांग तोड़ने के लिए। कहां चचा का रगों में दौड़ने-फिरने का कायल नहीं होना और लहू के आंख से टपकने की डिमांड करना और कहां हमारा सिंदूर के रगों में दौड़ने का ही कायल हो जाना। पर क्या कीजै सिंदूर की तासीर ही कुछ ऐसी है। मोदी जी ने अपनी रगों में बहा जरूर दिया है, लेकिन इससे सिंदूर की तासीर तो नहीं बदल जाएगी। हम सिंदूर के गरम होने की बात नहीं कर रहे हैं, जो मोदी जी की रगों में बह रहा है। हम सिंदूर के ठोस होने की बात कर रहे हैं। और ठोस सिंदूर के आंख से टपकने की डिमांड तो चचा गालिब भी नहीं कर सकते थे।
सच पूछिए तो आंख से खून टपकने की मांग भी कुछ ज्यादा ही थी। पर शायर लोगों को बात को कुछ न कुछ बढ़ा-चढ़ाकर कहने की तो छूट देनी ही पड़ेगी। फिर भी आंख से सिंदूर तो मोदी जी जैसा टॉप का शायर भी नहीं टपकवा सकता है।
अब प्लीज रगों में सिंदूर के दौड़ने पर हुज्जत मत करने लगिएगा। सिंदूर ठोस होने से भी क्या हुआ, मोदी जी की रगों में बह तो सकता ही है। आखिर, मोदी जी की रगों का सवाल है। फिर मोदी जी ने तो पहले ही बताया कि उनकी रगों में बहने वाला सिंदूर गर्म है। और गर्म की कोई सीमा तो है नहीं। पहलगाम में जैसे बहन-बेटियों के सिंदूर मिटाए गए, उस पर खून खौल तो मामूली हिंदुस्तानियों का भी गया था। जाहिर है छप्पन इंच की छाती वाले मोदी जी के मामले में टेंपरेचर खून के खौलने के अंक से तो ज्यादा ही होगा। और सिंदूर भी, सुनते हैं कि साढ़े चार सौ-पांच सौ डिग्री पर तो द्रव में बदलने ही लगता है। यानी पर्याप्त गरम हो जाय, तो सिंदूर रगों में बह भी सकता है। और तो और आंखों से टपक भी सकता है।
वह तो मोदी जी ने चचा गालिब का ख्याल कर के सिंदूर को रगों में बहाने पर ही बस कर दी, वर्ना चाहते तो आंखों से टपकवा भी सकते थे और आरीजिनल शेर को पछाड़ भी सकते थे। लहू आंख से टपकाना तो उनके लिए बच्चों का खेल था।
हमें पता है कि विज्ञान-विज्ञान करने वाले सिंदूर के रगों पर बहने पर भी बहस करेंगे। कहेंगे कि सिंदूर, साढ़े चार सौ, पांच सौ डिग्री पर पिघलता जरूर है, पर रगों में बह नहीं सकता है। इंसान की रगों में पिघला हुआ सिंदूर, वही काम करेगा जो किसी जमाने में पिघला होगा, जब वेदों के श्लोक सुनने वाले शूद्र के कानों में उसे डाला जाता था। पिघला हुआ सिंदूर, जहां-जहां छुएगा, सब पूरी तरह से जला देगा। बेशक, विज्ञान गलत नहीं है। पर उसके नियम मोदी जी पर तो लागू ही नहीं होते हैं। भूल गए क्या? मुश्किल से साल भर पहले, पिछले चुनाव के दौरान ही मोदी जी ने क्या रहस्योद्घाटन किया था! नॉन बायोलॉजीकल हैं, हमारे मोदी जी। जब बंदा ही नॉन बायोलॉजीकल होगा, क्या उसकी नसें भी नॉन बायोलॉजीकल नहीं होंगी?
फिर मोदी जी की नॉन बायोलॉजीकल नसों को कम कर के क्यों आंका जा रहा है और उनके सिंदूर के गलनांक पर जल ही जाने की धर्मविरोधी अटकलें क्यों लगायी जा रही हैं?
और हां, जब नॉन बायोलॉजीकल की बात आती है, तो यह सवाल भी आउट ऑफ सिलेबस हो जाता है कि पहले उन्हीं रगों में और क्या, बल्कि क्या-क्या दौड़ता रहा था? मोदी जी के विरोधियों ने इसमें भी विरोध करने की गुंजाइश निकाल ली है। कह रहे हैं कि पहले तो मोदी जी कहते थे उनके खून में व्यापार है। किसी और टैम पर उन्होंने बताया था कि उनके खून में डेमोक्रेसी है। और तो और एकाध मौकों पर तो उन्होंने अपने खून में सेकुलरिज्म होने का भी दावा किया था। और अब सिंदूर! ये चल क्या रहा है?
सिंपल है। जब बायोलॉजीकलों तक का खून बदला जा सकता है, तो नॉन-बायोलॉजीकलों का खून बदलने में क्यों दिक्कत होनी चाहिए। खून एक बार बदला तो, और चार बार बदला तो, बात तो एक ही है। सच पूछिए तो बार-बार बदलने से तो खून बदलना आसान ही होता जाता है। नसों को प्रैक्टिस जो हो जाती है, खून बदले जाने की। फिर भी रगों में सिंदूर बहने का मामला, पहले वाले मामलों से बहुत डिफरेंट है। डेमोक्रेसी या सेकुलरिज्म के खून में बहने के मामलों से तो यह बिल्कुल ही अलग है। याद रहे कि बाकी सब, चाहे व्यापार हो, या डेमोक्रेसी या सेकुलरिज्म, सभी मोदी जी के खून में थे। लेकिन, सिंदूर इज़ डिफरेंट। सिंदूर, खून में नहीं है, खून की जगह है, जो नसों में दौड़ रहा है। नॉन बायोलॉजीकल जी को खून की जरूरत भी क्या है? सिंदूर से बखूबी काम चल सकता है, बस सिंदूर नसों में बहने के लिए तैयार होना चाहिए।
मोदी जी ने पूरे देश के सामने अनुकरण करने के लिए एक मॉडल पेश कर दिया है — नसों में दौड़ते सिंदूर का मॉडल। बल्कि इसी मॉडल को फालो करते-करते रामचंद्र जांगड़ा साहब ने पहलगाम की चूक पर से भी पर्दा हटा दिया। थैंक यू रामचंद्र जांगड़ा साहब, इस चूक पर से पर्दा उठाने के लिए। थैंक यू जांगड़ा साहब, भगवा पार्टी के राज्यसभा सदस्य की अपनी घनघोर व्यस्तताओं के बीच से, पहलगाम की चूक से पर्दा उठाने के लिए टैम निकालने के लिए। पहलगाम के लिए कोई सुरक्षा चूक जिम्मेदार नहीं थी। पहलगाम के लिए सरकार की कोई शेखीबाजी भी जिम्मेदार नहीं थी कि धारा-370 के साथ कश्मीर में आतंकवाद मिटा दिया है। पहलगाम के लिए पाकिस्तान, आतंकवादी भी जिम्मेदार नहीं थे। पहलगाम के लिए जिम्मेदार थी, सिंदूर उजड़वाने वाली महिलाओं में वीरांगना भाव की कमी। उनमें जज्बा नहीं होना। दिल नहीं होना। उनका सिंदूर सिर्फ माथे पर होना। अगर, सिंदूर उनकी भी नसों में दौड़ रहा होता, तो पहलगाम की कहानी ही कुछ और होती। उन्होंने मारने वालों के आगे हाथ नहीं जोड़े होते, क्योंकि हाथ जोड़ने से कोई नहीं छोड़ता। रगों में दौड़ते सिंदूर से उन्होंने आतंकवाद के सीने पर वैसे ही प्रहार किया होता, जैसे मोदी जी ने पाकिस्तान के सीने पर किया है। और आतंकवादी वैसे ही ढेर हो गए होते, जैसे पाकिस्तान ढेर हो गया है। जो रगों में ही न दौड़ा, तो फिर सिंदूर क्या है?
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*2. मोदी महात्म्य : विष्णु नागर*
चेतावनी : इस रचना का तथ्य और सत्य से उतना ही सघन संबंध है, जितना मोदी जी का रहता है। इसमें तथ्य और सत्य के कहीं दर्शन हो जाएं, तो इसे अपना सौभाग्य मानें।
मोदी जी का आभार कि यह रचना उनके कारण संभव हुई और मैं पाठकों की सेवा में इसे पेश कर सका :
मोदी जी की जन्मतिथि के कारण लोग भ्रम में पड़ जाते हैं कि उनका जन्म चूंकि महात्मा गांधी की हत्या के करीब डेढ़ साल बाद हुआ था, इसलिए उनका गांधी जी के जीवित रहते कभी कोई संपर्क नहीं हुआ। यह असत्य है, तथ्यों से परे है। यह नेहरू जी का षड़यंत्र है, मोदी जी का अपमान है, इसलिए राष्ट्र का अपमान है। सबसे ऊपर यह भारतीय संस्कृति का अपमान है। आत्मा न पैदा होती है, न मरती है। इससे भी आगे बढ़कर कहा जा सकता है कि मोदी जी न पैदा होते हैं,न …… हैं। तो जन्मतिथि तो एक औपचारिकता है। एक बहाना है। आधार कार्ड की आवश्यकता है, वरना क्या जन्मतिथि और क्या डिग्री? क्या नकली और क्या फर्जी? व्यक्ति जो मानता है, वह है। जो डिग्री लेकर भी डिग्री को नहीं मानता, वह डिग्रीधारी होकर भी बिना डिग्री का है। और जो मानता है और मनवाता है कि उसके पास डिग्री है और असली है, तो वह असली है। इसी तरह मोदी जी अपनी स्वाभाविक विनम्रतावश अपना जन्म 1950 में हुआ बताते हैं, तो इसे मान लेना चाहिए। संदेह व्यक्ति का विनाश करता है।
हां, तो मैं कहना यह चाहता हूं कि मोदी जी, गांधी जी के सबसे पहले और एकमात्र सच्चे फ्रेंड, फिलास्फर और गाइड थे। मोदी जी के कारण ही गांधी जी, आज गांधी जी हैं, वरना उनका नाम दुनिया से मिट जाता। मोदी जी के कारण ही आज भी वह मोदी जी से इतने बड़े हैं, वरना एक धोती से अपने अंग ढंकनेवाला, छह बार कपड़े बदलने वाले महाबली से, इतना बड़ा कैसे बना रह सकता था? असंभव था। मोदी जी की उदारता को हम दस लाख के बल्ब की रोशनी में देखते हैं। वह हजार वाट के बल्ब क्या, ट्यूब लाइट की रोशनी में भी ठीक से नहीं दिखेगी। वह सूरज की रोशनी में ही दिख सकती है और मुझे दिख रही है, इसलिए लिख रहा हूं।
युवा गांधी जी, वकालत करके, ट्रेन से बिस्तर सहित फेंक दिए गए, दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर अपना जीवन बर्बाद कर रहे गांधी जी को मोदी जी ने प्रेरणा दी कि बहुत हुआ बापू (इस शब्द का पहली बार गांधी जी के लिए प्रयोग मोदी जी ने ही किया था और महात्मा शब्द का पहला इस्तेमाल भी उन्होंने ही किया था, इस तथ्य को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद साबित कर चुकी है।इस बारे में पहले उपलब्ध सभी जानकारियों का आधिकारिक खंडन भी उसने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से किया है। देखें प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो की वेबसाइट, जिसका नाम आज भी यही है। अभी परिवर्तित नहीं किया गया है।) अब आपको देशसेवा करना चाहिए।आप उस मिट्टी के बने ही नहीं हैं कि आपका राजनीतिक करियर विदेश में बने। आपको अपना करियर बनाना है और साथ ही अमरता का लाभ भी प्राप्त करना है, तो इसके लिए आपको स्वदेश आना होगा। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। आइए आप, मैं आपको गोपाल कृष्ण गोखले जी से मिलवाता हूं। वे मुझे बहुत मानते हैं। एक बार भावुक होकर कहने लगे थे कि मोदी, इस जालिम दुनिया में तू ही मेरा एकमात्र सहारा है। तू न होता बच्चे, तो मेरा क्या होता,यह सोच कर ही मेरा दिल दहल जाता है। जुग-जुग जियो मेरे लाल। यह सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए थे। आप आएंगे, तो वे आंसू मैं आपको दिखाऊंगा। एक डिबिया में मैंने संभाल कर रखे हैं। बहुत कीमती आंसू हैं। पांच करोड़ से कम में मैं बिकने नहीं दूंगा, चाहे इक्कीस क्या, बाइसवीं सदी आ जाए।
खैर शार्ट में कहानी यह है कि मोदी जी ने गांधी जी से कहा, आप यहां आइए, बाकी इंतजाम मैं कर दूंगा। आपको गोखले जी से तो मिलना है, बाकी वो आपको गाइड करेंगे। वो अगर नहीं कर पाए ठीक से, तो आपका यह छोटा भाई, आपका लक्ष्मण, आपको ऐसा गाइड करेगा कि आपका करियर राकेट की तरह ऊपर उठ जाएगा। थोड़ी देर, एक-डेढ़ घंटा आराम करेगा, रोटी-शोटी खाएगा, पानी-शानी पिएगा और फिर आगे की यात्रा पर चल देगा! आप आओ तो, आप तो उधर ही मस्त हो गए। जो मजे इंडिया में है, कहीं नहीं। मैं तो सारी दुनिया घूम चुका हूं। आपने तो केवल इंग्लैंड देखा है और दक्षिण अफ्रीका और वो भी पानी के जहाज से! जिंदगी का बहुत-सा कीमती समय आप इस तरह बर्बाद कर चुके हैं। अब और मत कीजिए।
मैं गारंटी लेता हूं कि मैं आपको मोहनलाल (यही मोदी जी ने कहा था,यह प्रूफ मिस्टेक नहीं है) करमचंद गांधी से महात्मा गांधी बना दूंगा। और नहीं बना पाया, तो आप जिस चौराहे पर कहोगे, फांसी पर लटक जाऊंगा। मोदी जी ने यह भी कहा कि आप चाहेंगे, तो मैं भी आपके साथ पूरे देश की यात्रा पर चल सकता हूं, बल्कि आप मेरे साथ चलोगे। आपकी अभी वह हैसियत नहीं कि मैं आपके साथ यात्रा पर चलूं, आप मेरे साथ चलोगे। इधर गोखले जी की बातों से मुझे यह लगा कि वह आपको रेल के तीसरी श्रेणी के डिब्बे से पूरे भारत की यात्रा करने के लिए कहनेवाले हैं — वह भी बिना भाषण दिए! वे कहने वाले हैं — ‘पहले सुनो और समझो। देश को समझो, यहां के लोगों को समझो’। उन्हें मैंने बहुत मनाया कि महाराज, गांधी जी, अभी आप जितने बड़े नेता नहीं हैं। कोई नेता देश घूमे और भाषण न दे, यह भी कोई बात हुई! अजीब आदमी हैं आप! ऊपर से आप चाहते हो कि फारेन रिटर्न आदमी न केवल रेल से भारत घूमे, बल्कि थर्ड क्लास से? ऐसा अत्याचार मत करो। पर वे नहीं माने। खैर, आप उनसे मिलो और डिसाइड करो, मगर एक बात मैं पहले ही बता दूं, मैं रेल के थर्ड क्लास के डिब्बे में सफर नहीं कर सकता। यह मेरी गरिमा के खिलाफ है। ऊपर से मेरे पास इतना समय भी नहीं है। मैं आपके लिए हवाई जहाज का प्रबंध कर सकता हूं। यह मेरे बांएं हाथ का खेल है। सुबह से शाम में आपको पूरा देश घुमा दू़ंगा। यह और किसी के बस में नहीं है कि वह आपके लिए इतना बढ़िया इंतजाम कर सके। आपमें जज्बा है और आप गुजराती हो और ऊपर से जाति से बनिये हो। और मैं बड़े बनियों को बहुत प्यार करता हूं। वे ही मेरा वर्तमान और भविष्य हैं। बस आप आ जाइए। राजनीति में वक्त का बहुत महत्व है। पहले ही देर हो चुकी है। देखिए अभी आप आ गए, तो मैं आपको ऐसा लांच करूंगा कि आप देखते रह जाओगे। गुजराती ही गुजराती के काम न आए, तो जीवन व्यर्थ है!
गांधी जी का जवाब, ‘मोदी, तेरा प्रस्ताव तो बढ़िया है। तू बहुत दूर की सोचता है, पर समस्या ये है कि मैं तेरे साथ हवाई जहाज का सफर करूंगा, तो कैमरे का फोकस तू अपने पर रखेगा। लोग समझेंगे कि गांधी को मोदी नहीं, मोदी को गांधी लांच कर रहा है। बेशक हवाई जहाज का सफर बहुत आराम का है। एक दिन में समूचा देश देख लेने का लालच बहुत बड़ा है, पर मैं शुरुआत में ही ऐसी ग़लती नहीं करूंगा। हवाई जहाज से सफर नहीं करूंगा। अपने को चौपट करके मैं तेरा करियर नहीं बना सकता। सॉरी। गोखले जी जो कहेंगे, वैसा ही करूंगा। तू गोखले जी के बेहद निकट है। अपना यह प्लान तू उनको बता।उनकी अनुमति मिल जाए कि हां, यह ठीक है, तो इसे मान लूंगा। वैसे आराम इसी में है, कंफर्ट इसी में है। बहुत झेल लिया दक्षिण अफ्रीका में। तेरा तरीका मुझे पसंद है।कुछ भी बक दो, लोग समझते हैं कि यह भाषण है।भाषण दो, हाथ हिलाओ और हवाई जहाज में रवाना!इतने में ही जनता मोदी-मोदी करने लगती है। तू मोदी मोदी की जगह गांधी गांधी करवाए, तो सोच भी सकता हूं। जितना मैं गोखले जी को जानता हूं, वे यह नहीं मानेंगे, पर तू प्रयास कर। बाकी सब भगवान के हाथ में है। मैं तो अभिभूत हुआ कि तू कैमरे से ज्यादा मेरे बारे में सोचता है। भगवान एक दिन तुझे प्रधानमंत्री जरूर बनाएगा। चाहे जिस रास्ते बनाए, मगर बनाएगा अवश्य।
मैंने ज्योतिष सीखा है, पर जल्दी मत करना। बीसवीं सदी को गुजर जाने देना। इक्कीसवीं में आना। उसके आने के बाद तेरा भाग्य खुलेगा।
और सुन, यह प्राइवेट बात है। एक नेता होगा- नेहरू। उससे बच के रहना। वह मरने के बाद भी तेरा रास्ता रोकेगा, पर रोक नहीं पाएगा! तू उसे गाली देना बंद मत करना, उसे मुसलमान बताने से भी हिचकना मत। डरना मत। उसे किसी तरह की कोई रियायत मत देना। तेरे मन में उसके काम के प्रति जिस दिन सम्मान जगा, समझ लेना तेरा करियर बर्बाद हुआ। नेहरू की इमेज तुझे खा जाएगी। सावधान रहना, गफलत मत करना। मेरी बात और है। बाकी तू समझदार है। थोड़ा लिखा, ज्यादा समझना। और हां सेहत बनाना और दिमाग को अभी से गिरवी रख देना, वरना आगे पछताएगा।
तू जोर दे रहा है, तो आता हूं, तेरी बात तो गोखले जी मानते हैं, मैं कैसे टालूंगा! बाकी मैं आऊं, तो तू संभालना। तेरी एक इमेज यह है कि कैमरे के सही एंगल तुझ पर किस तरह पड़ेगा, इस बारे में तू जितना सोचता है, उतना किसी के बारे में नहीं। मां-बाप,भाई-बहन, चाय बेचने के बारे में नहीं सोचता। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि तू दगाबाज है। कहता कुछ है और करता कुछ है। इस युग में ये मेरे साथ नहीं चलेगा। इक्कीसवीं सदी में जो चाहे, करना।
बहू को आशीर्वाद। बच्चों को प्यार।
*2.* गांधी जी की इस आखिरी पंक्ति ‘बहू को आशीर्वाद, बच्चों को प्यार’ ने मोदी जी के नर्म-नाजुक दिल को गहरी चोट पहुंचाई। वह समझ गए कि यह आदमी ऊपर से तो मेरा हितैषी बनता है, मगर अंदर से मुझसे बेहद जलता है। यह अभी से मेरा करियर बिगाड़ना चाहता है, ताकि कांग्रेस भारत पर राज करती रहे और मैं कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाऊं! यह बीवी-बच्चों की बात करके आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प ले चुके मुझ महान आदमी को गृहस्थी के चक्कर में फंसाना चाहता है। ओ गांधी, मैं इतना भोला नहीं हूं, बेवकूफ नहीं हूं। मैं तो इसका भला सोच रहा था और यह मेरे बारे में ऐसी ओछी बातें सोच रहा है! बहू को आशीर्वाद और बच्चों को प्यार! तू कर न अपने बीवी-बच्चों से प्यार। मुझे क्यों सीख देता है। तू बिगाड़ अपना करियर, मुझे अभी बहुत दूर जाना है। ऐसे आदमी से अपनी नहीं बनेगी। इसे आगे बढ़ाया, तो पता नहीं, यह क्या कहर ढाएगा! मोदी ने अपने आपसे कहा, मोदी, तू सावधान। अभी तेरा वक्त नहीं आया है। उत्तेजना में आकर एक भी ग़लत कदम आज उठाया, तो तेरा कल बिगड़ जाएगा। अभी तो इस गांधी को अपने जाल में फंसा कर रखना है। जिसके खून में व्यापार है, वह क्रोध में आकर ऐसी ग़लती नहीं कर सकता। वैसे भी अभी इसका समय है। अभी ये महान बनेगा,फिर इसकी महानता को चूना लगा कर मैं! आ बेटा, गांधी तू भारत आ। तुझे मजा न चखाया, तो मेरा नाम भी मोदी नहीं। एक न एक दिन प्यार से ऐसा गच्चा दूंगा कि इसकी सत्य-अहिंसा सब यहीं की यहीं धरी रह जाएगी। तेरे चश्मे का इस्तेमाल करके तुझे सफाई का ब्रांड एंबेसडर मैंने नहीं बना दिया, तो मेरा नाम भी मोदी नहीं। आ, गांधी, आ। तेरी महानता भी देखता हूं। बताता हूं कि तू महान है कि मैं! तू असली हिन्दू है कि मैं! हो जाए मुकाबला। तेरा किया-धरा मटियामेट न कर दिया, तो मैं भारत मां का सच्चा सपूत नहीं। सच्चा हिन्दू नहीं। आ, गांधी, आ। तेरा तो ऐसा स्वागत करूंगा कि तू जिंदगी भर याद करेगा।इधर-उधर भटकता ही फिरेगा। कभी तुझे चैन नहीं मिलेगा। मर कर भी तू चैन न पाएगा। स्वर्ग में भी करवट बदलेगा, कसमसाएगा। देख तू मेरा भी चमत्कार! जयश्री राम। तू जो सपने देखता है, सबको बत्ती लगा दूंगा।आ,गांधी,आ।
(राजेंद्र शर्मा वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं।)