दौरे हयात आएगा कातिल कजा के बाद, है इब्तेदा हमारी तेरी इंतेहा के बाद इमाम हुसैन ने मजहबे इस्लाम के गुलशन को अपने खून से सींच कर रहती दुनिया तक कर दिया हरा भरा

यजिदियों ने छह माह के दूध पीते लखते जिगर अली असगर को भी नहीं छोड़ा, और तीर चलाकर शहादत का पीला दिया जाम आसमान से लेकर ज़मीन तक इमाम हुसैन की शहादत की खून ने पूरे कायनात को लाल कर दिया, उनकी शहादत पर रो पड़ा जर्रा-ज़र्रा 

 

ब्यूरो चीफ हैदर संजरी

 

भदोही। इस्लामी साल के साठ हिजरी मे आठ रजब को हज़रत अमीर मुआविया के इंतेक़ाल के बाद उनका पुत्र यजीद जब सल्तनत ( राज्य) का मालिक हुआ। काफी फरेबी मक्कार जालिम यानि उसमे सारे दुर्गुण भरे हुए थे। उसने गद्दी संभालते ही मदीने के हाकिम को हुक्म दिया कि हज़रत इमाम हुसैन को हमारी बैयत ( गुलामी) कबुल करने को कहो। जब हाकिम आपके पास पहुंचा और हुक्म सुनाया तो हज़रत इमाम हुसैन ने कहा कि कल जब मस्जिद मे यजीद के वालिद ( पिता) के इंतेक़ाल व उसके हुक्मरान बनने की खबर सुनाने के बाद फैसला किया जाएगा। लेकिन इसके बाद भी हाकिम अपने यजीद का बैयत कबुल करने का दबाव बनाता रहा। हज़रत इमाम हुसैन मक्का शरीफ में आये तो बेशुमार लोग आपकी बैयत कबुल करने लगे। क्योंकि यजीद मे तमाम बुराइयों की वजह से खिलाफत (उत्तराधिकारी) के काबिल नहीं था। इससे लोग उससे नफरत ही करते थे, जो की लोगो ने यजीद के बैयत से इनकार करने लगे।इनकार करने पर यजीद काफी जलभुन गया था। अपनी अस्वीकारिता उसे पसंद नहीं आ रही थी। इधर नवास-ए-रसूल की बढ़ती लोकप्रियता देखकर यजीद काफी जलभुन गया। उसे अपने सल्तनत का ख़तरा दिखाई देने लगा। इसके लिए वह तमाम प्रकार के फरेबी चाल चलने लगा। हज़रत इमाम हुसैन ने मुस्लिम बिन अकील को नायब बना कर कूफा भेजा जहां 12 हजार की संख्या से अधिक लोगो ने आपकी बैयत कबुल की। उन पर भी यजीद ने जुल्म ढाये। यह खबर जब हजरत मुस्लिम रज़िअल्लाह को मिली तो उनके आवाज़ पर चालीस हजार लोग इकठ्ठा हो गए। लेकिन यजीद का फरेब यहां पर भी चलता रहा।और उसने फरेब से हज़रत मुस्लिम रज़ि. को शहीद करवा दिया। यह खबर जब हज़रत इमाम हुसैन को मिली तो आप काफी रंजीदा हुए और अपने 72 जांनिसारो ( करीबियों) को लेकर मैदाने कर्बला की तरफ बढे। नवीं मुहर्रम तक यह सब चलने के बाद दसवीं मुहर्रम यानी यौमे आशूरा के दिन कर्बला मे पहुंचे।आपने फरमाया यह मैदाने करबो बला का मकाम है। इसके बाद यजीद ने इब्ने साद को फ़ौज के साथ मुकाबले के लिए भेजा तो साद ने हज़रत इमाम हुसैन से मुकाबले के लिए ही इनकार कर दिया। तो नवास-ए-रसूल ने फरमाया कि यजीद हमारे नाना जान के दीन पर चले तो मैं वापस चला जाऊंगा। अगर यजीद को डर है कि मैं सल्तनत ( हुकूमत) चाहता हूँ तो ऐसा भी नहीं है। वह हमारी बैयत कर ले तो मैं दूसरे मुल्क चला जाऊंगा। लेकिन इब्ने साद ने यजीद का पत्र दिया कि इमाम हमारी बैयत करें। आपने उसके पत्र को पढ़ा और फेंक दिया। इससे जालिम यजीद काफी नाराज हुआ। उसने अपने सारे फ़ौज को कर्बला में दाखिल होने का हुक्म दे दिया।लेकिन इमाम हुसैन हर हाल मे जंग नहीं होने देना चाहते थे।ताकि बेकसूरो का खून न बहे।सारी कोशिशो के बाद भी जब दोनों पक्षो मे सुलह नहीं हो सका तो मैदाने कर्बला में जंग का एलान हो गया। इससे हज़रत इमाम हुसैन भी जंग के लिए मजबूर हो गए। हज़रत हूर जो कि यजीद फ़ौज मे सिपहसालार के पद पर तैनात थे। हज़रते हूर को यजीद की यह हरकत पसंद न आई और आपने रातो रात सच्चाई का साथ देने के लिए नवास-ए-रसूल का दामन थाम लिया और मैदाने जंग मे यजीदी फ़ौज से लड़ते हुए शहादत का जाम नौश फरमाया। इसी प्रकार हक़ के खेमे के हर जानिसार दुश्मनो से जंग करते हुए खुदा की राह मे रसूले पाक की दीन के लिए शहीद हो जा रहे थे। क्या मंजर था उस वक्त जमीं तो हिल गई थी आसमां भी कांपने लगा था और मलायका के भी आंखें आसुंओं से तर हो रहे थे। लेकिन जुल्मी यजीद का पत्थर दिल नहीं पिघला। हज़रत अब्बास अलमदार शहीद हुए। इसके बाद जवानी मे कदम रख रहे हज़रत अली अकबर भी जालिम फ़ौज से लड़ते हुए शायद हुए। जालिमो का जुल्म यही नहीं थमा बल्कि छह माह के दूध पीते लख्ते जिगर अली असगर को भी नहीं छोड़ा और तीर चलाकर शहादत का जाम पिला दिया। इस मंजर को देख हज़रत इमाम हुसैन ने जालिमो को रोकने की कोशिश की लेकिन वे नहीं माने और आप इसी दौरान वक़्त नमाज़ के समय बारगाहे इलाही यानी खुदा के सामने सर झुकाए खड़े थे सज्दे में खुदा-ए-तआला से दुआए कर रहे थे कि जालिमो ने वह कर दिया जिसके लिए उन्हें ता कयामत तक लाख तौबा कर लें पर उनकी बख्शीश नहीं हो सकती। यानी कि जालिमो ने आप का सरे मुबारक को बदन से जुदा कर दिया। आसमान से लेकर जमीं तक इस मंजर को देख अपने पर काबू न कर सके।पुरे कायनात में शहादत की खून ने लाल कर दिया। इमाम हुसैन की शहादत के बाद जालिमो का बुरा हश्र हुआ उनकी सल्तनत छिन गई। और उनपर खुदा का अज़ाब नाजिल हो गया। लेकिन इमामे हुसैन ने मजहबे इस्लाम के गुलशन को अपने खून से सींच कर हरा भरा कर रहती दुनिया तक कायम कर दिया। किसी शायर ने ईमान को ताजगी देने के लिए कहा है कि दौरे हयात आएगा कातिल कजा के बाद, है इब्तेदा हमारी तेरी इंतेहा के बाद, कत्ले हुसैन अस्ल मे मार्गे यजीद है, इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद।

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