आजमगढ़:सावन के दूसरे सोमवार को ऐतिहासिक महादेव घाट और दत्तात्रेय मंदिर पर श्रद्धालुओं की लगी भीड़

Azamgarh news:On the second Monday of Sawan, a crowd of devotees gathered at the historic Mahadev Ghat and Dattatreya temple

प्रेमप्रकाश दुबे की रिपोर्ट

निजामाबाद आजमगढ़।सावन के दूसरे सोमवार को महादेव घाट पर कावरियों का जत्था मार्कण्डेय धाम से जल लाकर महादेव घाट भगवान भोलेनाथ शिवलिंग पर जल अर्पण कर हवन पूजा करा रहे थे और ऐतिहासिक पुरातन दत्तात्रेय मंदिर पर सोमवार सुबह से ही भक्तों की लाइनें लगनी शुरू हो गई।भक्तगण सुबह से ही लाइनों में लगकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते दिखे।बारी आने पर भक्तों ने भांग, धतूरा,बेलपत्र,अक्षत धूप,अगरबत्ती आदि से भगवान भोलेनाथ का दर्शन पूजन कर अपने और अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हुए मत्था टेक रहे थे।मंदिर ॐ नमः शिवाय,हर हर महादेव के जयकारों से गूंज रहा था।सुबह से ही उपनिरीक्षक चंद्रजीत यादव,म0उप0 सानिया गुप्ता,रूपम वर्मा,हे0 का0 अरविंद यादव,अनूप रावत,राहुल कुमार यादव और थाना प्रभारी हीरेंद्र प्रताप सिंह भारी पुलिस बल के साथ सुरक्षा व्यवस्था के साथ मंदिर की निगरानी कर रहे थे और दर्शनार्थियों को लाइनों में लगा कर मंदिर में दर्शनों के लिए जाने दे रहे थे।सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हे सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग दिया था,उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।भगवान शिव को सावन महीना प्रिय होने के अन्य कारण यह है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं भूलोक वासियों के लिए शिवकृपा पाने का यह उत्तम समय है।पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था।समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की,लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलकंठ हो गया इसी से उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा।विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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