बैतूल:नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में प्रवीण गुगनानी का व्याख्यान
मध्य प्रदेश बैतूल से शेख इकबाल की खास रिपोर्ट
विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर नेपाल में राजधानी काठमांडू स्थित भारतीय राजदूतावास के प्रवास की अगली कड़ी में प्रवीण गुगनानी नेपाल के सबसे बड़े व सबसे पुराने, त्रिभुवन विश्वविद्यालय पहुंचे। त्रिभुवन विवि के भव्य कार्यक्रम में विदेश मंत्रालय, भारत सरकार के सलाहकार प्रवीण गुगनानी ने हिन्दी केंद्रित अपना व्याख्यान दिया।
प्रवीण गुगनानी ने कहा कि नेपाल के बंधु तो बड़ी ही सुंदर, परिष्कृत और भावभीनी हिन्दी भाषा बोलते हैं। नेपालियों के हिन्दी प्रेम का सदैव अभिनंदन करने के भाव को प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि अब हिन्दी, साहित्य व पारंपरिक ज्ञान के साथ साथ “कृत्रिम मेघा” अर्थात् “आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस” की भाषा कैसे बने इस ओर कार्य गति से जारी है। गुगनानी ने बताया कि गत वर्ष फ़िजी में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में जिसमें प्रवीण गुगनानी भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ प्रतिनिधि मण्डल में गये थे, उस सम्मेलन का मुख्य सूत्रवाक्य भी यही था – “हिन्दी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेघा तक”। भारतीय भाषा संस्थान अब हिन्दी के इस नवीन रूप को शिल्प देनें हेतु सतत प्रयत्नशील हैं।प्रवीण भाई बोले कि, विश्व हिन्दी दिवस अब वैश्विक हो गया है क्योंकि विश्व के तीस से अधिक देशों में पढ़ी-पढ़ाई जाती है, लगभग 100 विश्वविद्यालयों में उसके लिए अध्यापन केंद्र खुले हुए हैं। अकेले अमरीका में लगभग 20 केंद्रों में उसके अध्ययन अध्यापन की व्यवस्था है। श्री गुगनानी ने अपने उद्बोधन में बताया कि नेपाल तो प्राचीनकाल से ही हिन्दी का उपासक रहा है। पश्चिम नेपाल की दांग घाटी में प्राप्त आज से अलगभग 650 वर्ष पूर्व के शिलालेख यही कहते हैं। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोईराला तो हमेशा हिन्दी से संबद्ध ही नहीं रहे वरन् अच्छे लेखक रहे हैं। मनीषा कोइराला ने भी हिन्दी फ़िल्म उद्योग के माध्यम से नेपाल के कोने कोने तक हिन्दी को लोकप्रिय बनाया है। नेपाल का मल्ल राजवंश भी नेपाली भाषा के साथ साथ हिन्दी साहित्य को सरंक्षित करने व उसके उन्नयन के कार्य सतत लगा रहा था। शाहवंशीय नेपाल नरेशों के समय में भी पृथ्वीवीर विक्रम के समय की कई प्रतिष्ठित हिन्दी रचनाएं मिलती हैं। राजा राजेंद्र विक्रम शाह तो स्वयं हिन्दी में अच्छी कविताएँ किया करते थे। श्री गुगनानी ने अपने संभाषण में गौरान्वित होते हुए बताया कि
वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान देहरादून ने अपने अध्ययन व शोध में यह पाया है कि अब हिन्दी १५६ करोड़ लोगों की संपर्क भाषा बनकर विश्व में सबसे अधिक बोली जाने संपर्क भाषा हो गई है।