स्वाधीनता समर में भदोही में जन क्रांति के नायक : अमर शहीद झूरी सिंह
रिपोर्ट अशरफ संजरी
भदोहीl जन क्रान्ति के अग्रदूत, जन नायक तथा 1857 के आजादी के महान योद्धा शहीद झूरी सिंह का जन्म जनपद भदोही (तत्कालीन वाराणसी) के परउपुर गांव में 21 अक्टूबर 1816 में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री सुदयाल सिंह था तथा इनके बाबा का नाम अकबर सिंह था, जो कि आठ भाई थे। 28 फरवरी 1857 को अभोली के एक बगीचे में सभा हुई, जिसमें नील की खेती न करने की रणनीति बनाई गयी। इस सभा में मुख्य रूप से उदवंत सिंह, रामबक्स सिंह, भोला सिंह आदि लोगों ने भाग लिया था।
इस प्रकार 03 जून 1857 की क्रान्ति का बिगुल फूंक दिया गया और नील की खेती जला दी गयी। यूरोपीय इतिहासकार जेक्सम लिखते है कि 10 जून 1857 को भदोही में क्रान्ति ने बहुत ही व्यापक रूप ले लिया था और क्रान्ति की ज्वाला इतनी तेज हो गयी थी कि अग्रेज सिपाही मीरजापुर की पहाडियों की तरफ भाग गये थे। 16 जून 1857 को अग्रेजों ने अपनी चाल बदली और बंगाल सिविल सेवा का अधिकारी ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट विलियम रिचर्टमूर को क्रान्ति का बिगुल समाप्त करने के लिए भेजा । उस समय क्रान्ति का नेतृत्व कर रहे उदवन्त सिंह को सन्धि का निमन्त्रण पत्र भेजकर बुलवाया और धोखे से उदवन्त सिंह सहित तीन क्रन्तिकारियों को गिरफ्तार कर के गोपीगंज में इमली के पेड़ पर की फाँसी पर लटका दिया।
इस घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में
जनता का क्रोध फूट पड़ा और जनपद में विशाल जन आन्दोलन का रूप ले लिया था। तथा उदवन्त सिंह की पत्नी ने विलियम रिचर्टमूर को मारने का प्रण किया। 17 जून 1857 को झूरी सिंह ने क्रान्ति का नेतृत्व अपने हाथों में ले लिया। झूरी सिंह को विलियम रिचर्डमूर का एक क्षण भी जीवित रहना बर्दास्त नहीं था। उन्होने अपने साथियों को लेकर पाली स्थित नील के गोदाम पर आक्रमण कर दिया। “द काउन बनाम झूरी सिंह” में बताया गया है कि करीब तीन सौ आदमियों के साथ चार जुलाई 1857 को शाम चार बजे तलवार, भाला, लाठी, गड़ासा आदि से हमला किया गया था तथा वहाँ पर बैठक कर रहे तीनों अग्रेज अधिकारी ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट विलियम रिचर्टमूर ,ए. के. कैस व एम. के. जान का सिर कलम कर दिया। 12 जुलाई सन 1857 को भदोही में नये ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट की नियुक्ति झूरी सिंह को पकड़ने के लिए हुई। तथा मेजर वार नेट, मेजर साइमन, मि.पी.वाकर, इलिएट मि.टकर आदि कई अधिकारियों के नेतृत्व में टीम गाठित कर दी गयी। उधर 08 अगस्त 1857 को अंग्रेजी हुकुमत द्वारा घोषणा की गयी कि जो भी मि० विलियम रिचर्डमूर के हत्यारे को (झूरी सिंह) को पकड़वायेगा उसे एक हजार रू० इनाम दिया जाऐगा। झूरी सिंह के परिवार को जन प्रताणित किया जाने लगा। उस समय वे पूर्वी चम्पारण बिहार में थे। वापस आते समय वाराणसी के कपसेठी क्षेत्र के लोहराडीह (खुरहिया) में इनकी ससुराल थी और वहीं पर रात को रुक गये। इनाम के पैसे की लालन में आकर झूरी सिंह के साले ने उनके रूकने की सूचना अंग्रेजों को दे दी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें मीरजापुर की जेल में बन्द किया गया तथा उनपर वही मुकदमा चला और अन्त में उन्हें ओझला नाला विन्ध्याचल पर फाँसी दे दी गयी। इस प्रकार अमर शहीद झूरी सिंह का अंत हो गया। वे सदा के लिए भारतीय जनमानस में देश भक्ति एवं राष्ट्रीय चेतना का पुंज प्रकाशित करते रहेंगे।