Azamgarh news: चलते-फिरते तीर्थ थे सन्त प्रेम नारायण
रिपोर्ट:राजेंद्र प्रसाद
बिंद्रा बाजार/आजमगढ़:मुहम्मदपुर ब्लाक अंतर्गत रोहुआ मुस्तफाबाद मोड़(वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग)स्थित सन्त निरंकारी सत्संग भवन में 24 दिसंबर को जनपद के प्रख्यात एवं महान सामाजिक-आध्यात्मिक चिंतक,शैक्षिक इतिहास व उर्दू प्रवक्ता,संयोजक एवं निरंकारी ज्ञान प्रचारक सन्त श्री प्रेम नारायण लाल जी की 7वीं पावन पुण्य-स्मृति में आयोजित एक विशेष व विशाल सत्संग समारोह में दिल्ली से पधारे वरिष्ठ निरंकारी प्रचारक व सेवा निवृत्त भारतीय नौसेना के अधिकारी श्री ऋषिराम शर्मा जी ने व्यक्त किये।
श्री शर्मा जी ने आगे कहा कि सन्त श्री प्रेम बड़े भावुक व्यक्तित्व वाले व्यवहारिक भक्त थे।वे सत्संग के मंच पर एक विद्वान गुरु-रूप,सन्तों-भक्तों के बीच एक अच्छे सन्त-भक्त के रूप,घर में एक ज़िम्मेदार पिता-अभिभावक,पत्नी के लिए अच्छे पति,समाज के लिए एक समर्पित समाजसेवी के रूप थे।वे दुःखियों के दुःख को अपने दुःख की तरह महसूस करते थे और बिना रात-दिन देखे सूचना पाते ही सहयोग करने को आतुर दिखते थे।उन्होंने जीवन में मानव का हर क़िरदार बखूभी निभाया ही नहीं बल्कि ख़ुद क़िरदार ही बन गए थे।इसीलिए तो आज भारत के हर कोने में उनके चाहने वाले और दिल से याद करने वाले मिलते हैं। उनकी शिक्षा है कि जीवन में गुरु-ज्ञान से बढ़कर कुछ भी नहीं।ब्रम्हज्ञान से आगे कोई अन्य ज्ञान नहीं। प्रेम ही परमात्मा का दूसरा रूप है।प्रभु-प्रेमी सबसे समान प्रेम करता है।श्री शर्मा ने कहा कि आज इस प्रेरणा दिवस पर उनकी शिक्षाओं से हमें व्यवहारिक शिक्षा लेनी चाहिए और उन्हीं की तरह एक अच्छे समाज के निर्माण में सहयोग करना चाहिए ।यही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।