देसी नस्ल की गाय के संरक्षण की ललक ने बना दिया डेयरी फार्म मालिक, प्रतिदिन बेच रहे 350 लीटर दूध
Passion for the conservation of indigenous breed cows has made dairy farm owners, selling 350 liters of milk per day
नवादा,
20 जून: कहा जाता है कि अगर किसी काम को पूर्ण करने का संकल्प और ललक हो तो ईश्वर भी ऐसे लोगों की मदद करते हैं। ऐसा ही कुछ देखने को मिला बिहार के नवादा जिले में, जहां गांव में देसी नस्ल की गायों के संरक्षण की ललक में 40 वर्षीय रौशन कुमार आज एक डेयरी फार्म के मालिक हो गए और आज इनके गौशाला से 350 लीटर से अधिक दूध की बिक्री हो रही है।
यह पूरी कहानी नवादा जिले के अकबरपुर प्रखंड के 40 वर्षीय रौशन कुमार की है, जो मां के कैंसर के कारण अन्य राज्यों में कमाने नहीं जा सके। रौशन बताते हैं कि करीब 14 साल पहले वह भी स्थानीय स्तर पर काम नहीं मिलने के कारण अन्य राज्यों में कमाने जाने की सोच रहे थे, लेकिन मां को कैंसर हो गया। पिता किसान थे। इसी बीच जमीन भी गिरवी रखनी पड़ी। ऐसी स्थिति में मां को छोड़कर बाहर भी नहीं जा सका।
इसी बीच, उन्हें देसी गाय संरक्षण का जुनून सवार हो गया और शुरू में लोगों की आर्थिक मदद से देसी नस्ल की एक गाय खरीदी और दूध का कारोबार शुरू किया। इसके बाद रौशन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आज रौशन के पास गाय और बछड़ा मिलाकर 75 से अधिक मवेशी हैं। उन्होंने आईएएनएस को बताया कि उनके पास जितनी गाय है, सभी देसी नस्ल की हैं। हर रोज 350 लीटर से अधिक दूध की बिक्री होती है। आज रौशन कुमार एक आधुनिक सुविधा वाले डेयरी फार्म के मालिक हैं और करीब 10 लोगों को सालों भर रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं।
इनके डेयरी फार्म में दूध के अलावा दही, मिल्क शेक, पनीर जैसे प्रोडक्ट बन रहे हैं और नवादा में आपूर्ति किये जा रहे हैं। वे बताते हैं कि शादी, ब्याह के मौसम में पनीर और दही की बिक्री बढ़ जाती है।
आईएएनएस से रौशन ने कहा, उन्होंने 2014 में देसी नस्ल की गाय के पालन के लिए एक प्रशिक्षण भी लिया था। उनके गौशाला में आज की तारीख में 44 देसी नस्ल की गाय और 29 बछड़े हैं। वे कहते हैं कि देसी नस्ल की गायों का रखरखाव जहां आसान होता है, वहीं इनके दूध की मांग भी अधिक होती है।
उन्हें डेयरी के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्रदान करने में कृषि विज्ञान केन्द्र, सेखोदेवरा की अहम भूमिका रही है। इसके अलावा स्थानीय वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन मिलता है। आज रौशन को गांव छोड़कर अन्य राज्यों में रोजगार के लिए नहीं जाने का कोई अफसोस नहीं है, बल्कि उन्हें इस बात की खुशी है कि वे अपनी जन्मस्थली पर रहकर लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।
वे बताते हैं कि आज वे आधुनिक तरीके से गांव में खेती भी कर रहे हैं। आसपास के पशुपालक भी इनसे सलाह लेने आते रहते हैं। आज उनका परिवार भी इस व्यवसाय में उनकी मदद कर रहा है।
कृषि विज्ञान केन्द्र, सेखोदेवरा के वैज्ञानिक डॉ धनन्जय ने कहा कि रौशन आज इस क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। कृषि आधारित डेयरी का रोजगार खड़ाकर रौशन ना सिर्फ आत्मनिर्भर हुए हैं, बल्कि देसी नस्ल की गायों को बचाने में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं। केन्द्र तकनीकी रूप से उन्हें सहयोग करता रहता है।