रानी की सराय में अवैध रुप से संचालित हो रहे हैं अपंजीकृत क्लीनिक,स्वास्थ्य विभाग मौन, पांच वर्षों के अन्दर दो महिलाओ की मौत
रानी की सराय/आजमगढ़:कहा जाता है कि डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होता है । वही डॉक्टर चंद रूपयो की लालच मे हैवान बन जाता है । ऐसा लोगों का कहना है। वही रानी की सराय मे झोला छाप डॉक्टरों की भरमार है। चौक-चौराहे पर बड़े-बड़े बोर्ड लगा कर ये डॉक्टर भोले-भाले ग्रामीणों को ठगने के प्रयास में लगे हैं। भोली-भाली जनता इनके झांसे में आकर आर्थिक दोहन के साथ-साथ शारीरिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। वही झोलाछाप डॉक्टर मौत के घाट उतार दे रहे हैं रानी की सराय में कोई पहला मामला नहीं है पहले भी कई मामले आए अस्पताल में तोड़फोड़ भी हुई। लेकिन ये स्वास्थ्य विभाग की दया दृष्टि पर इन अपंजीकृत क्लीनिक संचालित हो रहे है।ये मरीजो को मौत घाट उतार रहे हैं ।स्वास्थ्य विभाग आँख मूंदे हुए हैं ।हाल ही में ही अनौरा स्थित एक अपंजीकृत क्लीनिक में महिला की मौत हो गई थी ।
क्षेत्र में झोला छाप डॉक्टरों की भरमार है। चौक-चौराहे पर बड़े-बड़े बोर्ड लगा कर ये डॉक्टर भोले-भाले ग्रामीणों को ठगने के प्रयास में लगे हैं। भोली-भाली जनता इनके झांसे में आकर आर्थिक दोहन के साथ-साथ शारीरिक नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। लोगों की माने तो क्षेत्रों में अप्रशिक्षित डाक्टरों झोला छाप द्वारा इलाज कराने की बात कौन कहे बड़े बड़े आपरेशन तक किये जा रहे हैं। साथ ही मोटी रकम लेकर नर्सिग होम संचालक इलाज के नाम पर मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्हें इस बात का डर नहीं होता कि मरीज मरेगा या उसे इंफेक्शन संक्रमण भी हो सकता है.। ऐसे नीम-हकीम के चक्कर में आये दिन कई लोगों की जान जा रही है।वहीं, झोलाछाप डॉक्टर अपनी-अपनी क्लिनिक के आगे बड़े-बड़े अक्षरों मे एमबीबीएस की डिग्री लिखा बोर्ड लगाने में परहेज नहीं करते हैं। सरकारी अस्पतालों में सरकार ने स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाने को ले निशुल्क दवाओं सहित कई जांचे भी निशुल्क में कराए जाने की व्यवस्था उपलब्ध कराई है। इस स्वास्थ्य केन्दो पर भी दवाइयां बाहर से लिखी जा रही है बुद्धिजीवियों द्वारा समय-समय पर जिला प्रशासन से झोला छाप चिकित्सकों के विरूद्ध कार्रवाई किये जाने की मांग की जाती रही है। जांच के नाम पर भी मरीजों से ऐंठा जाता है पैसा झोलाछाप डॉक्टर पहले उल्टा सीधा इलाज करते हैं, इसके बाद जब स्थिति काबू से बाहर हो जाती है तो किसी बड़े डॉक्टर को दिखाने के नाम पर अपनी पीछा छुड़ा लेते हैं। हालांकि, तब तक स्थिति यह हो जाती है कि मरीज को बचाया जाना संभव ही नहीं रहता है। ये डॉक्टर बुखार की जांच के लिए कोई भी टेस्ट तक कराने की सलाह नहीं देते हैं। गंभीर बीमारियों के भी इलाज में चूकते नहीं है। बिना प्रशिक्षण के लोगों को इंजेक्शन लगाने के साथ ग्लूकोज व अन्य दवाओं को चढ़ा देते हैं। दवा की डोज की सही जानकारी न होने के बावजूद सामान्य बीमारी में लोगों को दवा की हैवी डोज दे देते हैं।