Deoria news, पूज्य संत चंद्र देव शरण जी महाराज के प्रति पुण्यतिथि पर विशेष
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पूज्य संत चंद्र देव शरण जी महाराज के प्रति पुण्यतिथि पर विशेष।
देवरिया।
मां सरयू के पूरे सरीला तक के उत्तरी छोर पर स्थित योगीराज अनंत महाप्रभु के ज्ञान नंबर से बाबा राघव दास के कर्म योग एवं साधु रन ब्रह्मचारी सत्यव्रत जी महाराज के भक्ति योग ने इस आश्रम को आध्यात्मिक की त्रिवेणी का संगम बना दिया है कर्मयोगी बाबा राघव दास ने इस आश्रम को स्वतंत्रता आंदोलन में समूचे भारतीय राष्ट्र का प्रेरणा केंद्र बना दिया था प्लस स्वरूप यहां से अनेक दिव्या विभूतियां एवं प्रतिभाओं का आविर्भाव हुआ इन्हीं निधियो के क्रम में पूज्य संत चंद्र देव शरण जी महाराज एक विभूति रहे जो आश्रम के पांचवी पीठाधीश्वर वर्ष 1974 में बनाए गए थे पूज्य संत चंद्रदेव शरण जी महाराज का उत्तर प्रदेश के अंतर्गत देवरिया जिले में भाटपार रानी तहसील के ग्राम रघुनाथपुर में जनवरी सन 1909 में ब्राह्मण कुल में हुआ था श्री विक्रमादित्य द्विवेदी आपके पूज्य पिता थे श्री चंद्रदेव शरण जी महाराज के अंदर बचपन से ही वैराग्य भाव था कक्षा 8 की परीक्षा उत्तरण कर वर्ष 1930 में पूज्य महाराज जी आश्रम के संस्कृत महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने आए उन्होंने उन दिनों परम पूज्य बाबा राघव दास जी एवं उनके परम प्रिय शिष्य ब्रह्मचारी सत्यव्रत जी साधु द्वय की अप्रीतम, साधना से आश्रम का स्वर्ण युग चल रहा था यह आश्रम पारसमणी सदृश्य था जिसके स्पर्श मात्र से कुघातको स्वर्ण बनाने का अवसर सुलभ था इस दुर्लभ संजोग की घड़ी में आश्रम को श्री चंद्रदेव शरण जी महाराज जैसे निधि के रूप में ब्रह्मचारी श्री सत्य व्रत जी महाराज को प्राप्त हुआ श्री चंद्रदेव शरण जी महाराज की आगे की शिक्षा दीक्षा आश्रम की देखरेख में संपन्न हुई इधर श्री बाबा राघव दास के निधन के बाद ब्रह्मचारी श्री सत्यव्रत जी महाराज को आश्रम का पीठाधीश्वर 1958 में बनाया गया सन 1958 से लेकर 1961 तक ब्रह्मचारी सत्यव्रत जी महाराज जिन्हें छोटे महाराज जी के नाम से जाना जाता था पीठाधीश्वर रहे इधर चंद्र देव शरण जी महाराज आश्रम की सेवा में अपने आगमन के समय से ही लग रहे आपको लोग पुजारी जी के नाम से जानने लगे थे। प्रतिदिन भगवान की सेवा मानस पाठ गजेंद्र मोक्ष राम रक्षा स्त्रोत राम नाम जप के साथ ही गुरुजनों की सेवा भी करते रहते थे वह अपना पूरा जीवन आश्रम के प्रति समर्पित कर चुके थे ना चाहते हुए भी सन 1974 में उन्हें परमहंस पद स्वीकार करना पड़ा लगभग 30 वर्षों के लंबे समय तक इन्होंने पीठाधीश्वर पद को सुशोभित किया। लेकिन काल की गति ने, 21 दिसंबर 2003 में आश्रम से महाराज जी को सदा के लिए आश्रम वासियों से छीन लिया, श्री चंद्रदेव शरण जी महाराज अपने त्याग तपस्या संयम सेवा की भावना से संपूर्ण क्षेत्र की संस्कृत बौद्धिक शैक्षिक उन्नति का महाव्रत लिए क्रियाशील बने रहे वह अंत समय तक सहज मुद्रा में रहे एवं मिलने जुलने वालों से समाज और राष्ट्र की मंगल कामना करते रहे ।21 दिसंबर 2003 को गोदान के साथ श्रीमद् भागवत की कथा राम नाम जप एवं हनुमान चालीसा पाठ भक्तों के साथ किया और अंतिम वाक्य था सबको प्रसाद बांट दो इन शब्दों के साथ ही पूज्य महाराज जी मध्यान्ह में 2:50 पर आश्रम वासियों को रोता बिलखते छोड़ अपना शरीर त्याग गोलोक वासी हो गए 22 दिसंबर 2003 को आश्रम में उदास मन से राजनेता, सामाजिक संस्थाओं ,सारी शिक्षण संस्थानों, एवं कर्मचारी गण क्षेत्र की अपार जनता हजारों की संख्या में मां सरयू सरीला की गोद में पूज्य संत को जल समाधि दी । आज उनकी पुण्यतिथि 21 दिसंबर 2025 को प्रतिवर्ष की भाति मनाई जा रही है, वर्तमान पीठाधीश्वरआजनेय दास जी महाराज, की देखरेख में पुण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।
पूज्य महाराज जी के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करते हुए शत-शत नमन।



