'द सैटेनिक वर्सेज' पर पाबंदी लगाने की मांग

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नई दिल्ली, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने 36 साल पहले सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर प्रतिबंध लगा दिया था। एक बार फिर देश में उसकी बिक्री शुरू होने के कारण यह किताब चर्चा का विषय बनी हुई है। मुस्लिम समुदाय का एक धड़ा इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है।

‘ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड’ के राष्ट्रीय महासचिव अल्लामा बुनाई हसनी ने आईएएनएस से कहा, “बहुत अफसोस की बात है कि जो किताब समाज में अमन-शांति को भंग करता है, जिसको बहुत पहले भारत सरकार ने बैन कर दिया था, अब उस पर से यह पाबंदी हटा ली गई है। किसी आदमी ने इस किताब से पाबंदी हटाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की थी और कोर्ट ने उसकी अपील को स्वीकार करने के लिए किताब से पाबंदी हटा दी है।”

उन्होंने आगे कहा, “जो किताब समाज में अमन-शांति को भंग करता है, उसको हमारे समाज में खुलेआम नहीं बिकना चाहिए। इस किताब को रखने और बेचने की कोई गुंजाइश नहीं है। …किताब को भारत जैसे अमन और शांतिप्रिय देश में बिकने की इजाजत देना बहुत ही अफसोसनाक है। इसलिए हमारी सरकार से अपील है कि इस किताब पर देश में पाबंदी लगा दी जाए।”

रजा अकादमी के अध्यक्ष सईद नूरी ने भी ‘द सैटेनिक वर्सेज’ किताब पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “सरकार अपनी मंशा कोर्ट को बताती है और कोर्ट उसी प्रकार से अपना फैसला सुनाती है। साल 1924 से लेकर 2017 तक देश में 50 से अधिक किताबों पर पाबंदी लगाई जा चुकी है। लेकिन ‘द सैटेनिक वर्सेज’ से ही पाबंदी हटाना बहुत अफसोसजनक है।”

उन्होंने आगे कहा, “1988 में मुंबई में इस किताब को लेकर बवाल हुआ था तो 12 मुसलमानों की मौत हुई थी। इतने बड़े मामले को बहुत हल्के में लिया जा रहा है। साल 1988 में इस किताब और इसके लेखक सलमान रुश्दी के खिलाफ फतवा दिया। इसके बाद 14 फरवरी 1989 को भी एक फतवा आया था, जिस दिन मुंबई में 12 मुसलमानों की मौत हुई थी। इतने संवेदनशील मामले में कोर्ट ने बहुत आसानी से इजाजत दे दी। कोर्ट ने मुसलमानों के जले पर नमक छिड़कने का काम किया है, जबकि कोर्ट को इस पर प्रतिबंध बरकरार रखना चाहिए था। सरकार से हमारी अपील है कि इस पर फिर से पाबंदी लगाई जाए।”

‘एआईएमआईएम’ नेता वारिस पठान ने ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर दिल्ली हाईकोर्ट के रुख पर कहा, “इस किताब को आए करीब चार दशक हो गए। जब किताब आई थी, तब भी इसका विरोध हुआ था। इसमें कई वाहियात चीजें लिखी हैं, जिसको हम बयां नहीं कर सकते। इस किताब को लेकर काफी विरोध-प्रदर्शन हुआ था। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने इस किताब से बैन हटा दिया है। मेरी सरकार से गुजारिश है कि वह इसमें हस्तक्षेप करे और दोबारा बैन लगाने की मांग करे।”

उन्होंने कहा, “फिर से लोगों को भड़काने का काम हो रहा है। वे किस दिशा में देश को ले जाना चाहते हैं। हमारा मानना है कि देश में प्यार, मोहब्बत और भाईचारा बना रहे। हमारी मांगी है कि गंगा-जमुनी तहजीब और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए ऐसी किताब, जो एक समुदाय की भावना को ठेस पहुंचाती है, उस पर लगातार बैन लगे रहना चाहिए।”

–आईएनएस

एससीएच/एकेजे

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इनपुट. आईएएनएस के साथ

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