डॉ परमानंद उपाध्याय की 97 वीं जयंती पर विशेष ।
विनय मिश्र जिला संवाददाता।
बरहज, देवरिया। डॉ परमानंद उपाध्याय आजीवन गरीबों की सेवा करते रहे। इन्होंने लगभग 60 वर्षों तक चिकित्सा के द्वारा मरीजों की सेवा की। गरीब इन्हें अपना भगवान मानते थे। यह ₹5 से लेकर ₹30 तक की दवा में मरीज को ठीक कर देते थे, इतना ही नहीं यह उच्च कोर्ट के साहित्यकार भी थे। कविताएं इन्होंने बहुत लिखी लेकिन पुस्तक के रूप में वह प्रकाशित नहीं हो पायीं। यह अच्छे लेखक भी थे । इनके निबंध आश्रम बरहज की पत्रिका अनंत ज्योति में 1962 और 1968 में देखने को मिलती है। लिखने की कला में हिंदी और अंग्रेजी पर इनका समान अधिकार था। अंग्रेजी में भी उच्च कोटि की रचना करते थे। इनके इंग्लिश रचनाओं को सम्पदा न्यूज़ ने एक बार प्रकाशित भी किया था।
डॉ परमानंद उपाध्याय ने बरहज में “हिंदी साहित्य परिषद” की स्थापना में, बरहज के मशहूर व्यक्ति “गया चौधरी जी”, “विश्वनाथ त्रिपाठी” और गजानंद केडिया के सहयोग से हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना में विशेष योगदान दिया था। इसके पहले इन्होंने बाजार में इन लोगों के सहयोग से एक पुस्तकालय खुलवाया जिसका नाम था “हिंदी साहित्य पुस्तकालय” जिसमें बरहज के अधिकांश साहित्यकारों ने अपना योगदान किया था। यहां कवि गोष्ठी भी हुआ करता था। बाद में एक विशाल हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना की गई । इस साहित्य परिषद की कमेटी बनी जिसमें गजानंद केडिया, श्री गया खटीक, विश्वनाथ त्रिपाठी और डॉक्टर परमानंद उपाध्याय ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया था।
डॉ परमानंद उपाध्याय बरेली के श्री राधा कृष्ण उपाध्याय के तीसरे पुत्र और राम लक्षन उपाध्याय के पौत्र थे। इनके दो बड़े भाई थे। सुप्रसिद्ध कवि गीतकार श्री मोती बीए इनके बड़े भाई थे तथा महात्मा गांधी के आदर्शों पर जीवन भर अपने को समर्पित कर देने वाले व्यक्तित्व श्री जगदीश नारायण मालवीय उनकी सबसे बड़े भाई थे । बरहज के बाबा राघव दास, सत्यव्रत जी महाराज, कुसुम बंधु, राम परीक्षण तिवारी, स्व संग्राम सेनानी पंडित विश्वनाथ त्रिपाठी, श्री पंडित छांगुर त्रिपाठी इत्यादि लोगों द्वारा एक साहित्यिक माहौल बनाया गया। बरहज में एक साहित्यिक माहौल पैदा हुआ जो साहित्य परिषद, श्री विश्वनाथ त्रिपाठी का घर, जयनगर के सम्मानित व्यक्तित्व के घर, गौरा में, महावीर प्रसाद केडिया के घर इत्यादि स्थानों पर कवि गोष्ठियों का होना प्रारंभ हो गया। इन लोगों के सहयोग से विशाल कवि सम्मेलन हिंदी साहित्य परिषद में प्रतिवर्ष होने लगा। इन सब का श्रेय कहीं ना कहीं डॉक्टर परमानंद उपाध्याय को जाता है। इन्होंने साहित्यकारों की आजीवन सेवा की। अधिकांश लोगों से तो यह दवा के पैसे ही नहीं लेते थे। पूरे जीवन में कोई भी मरीज इनके दरवाजे पर नहीं मरा। यह एक इनकी बहुत बड़ी उपलब्धि है। जब कभी यह अपने रोमांटिक मूड में आते थे तो इतनी सुंदर-सुंदर कविताओं का उदाहरण प्रस्तुत करते थे जिससे पता चलता था कि इनका अध्ययन बहुत ही विशाल रहा होगा। इन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जो आज उपलब्ध नहीं है और प्रकाशित भी नहीं हो पाई।
इन्होंने चिकित्सा का कार्य वाराणसी से शुरू किया था। अध्ययन भी उन्होंने वहीं से किया। बासुपुर गाजीपुर में इन्होंने काफी समय तक चिकित्सा सेवा की। उसके बाद यह बरहज में आकर गांव में घूम-घूम करके गरीबों को और कमजोर वर्ग के लोगों की सेवा चिकित्सा कार्य द्वारा करना शुरू किया। बहुत बड़े-बड़े डॉक्टर, बहुत बाद तक, जब तक यह जीवित रहे, इनकी चिकित्सा का लोहा मानते रहे। इनका व्यक्तिगत परिचय कवि नीरज, बेकल उत्साही, राम दरस मिश्र, श्याम नारायण पाण्डेय, शंभू नाथ सिंह से था। इनकी एक पंक्ति से मैं अपनी बात समाप्त करता हूं । इनकी कविता है, “जीवन में मैं कभी ना हारा”
यह सत्य है कि डॉक्टर परमानंद आजीवन सेवा और संघर्ष करते रहे और वास्तव में इन्होंने कभी अपनी हार स्वीकार नहीं की।
अंतिम समय में भी इन्होंने संपदा के लिए अपना आशीर्वाद प्रदान किया। संपदा न्यूज़ ऐसे महान विभूति को श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।