‘एक देश-एक चुनाव’ पर जेपीसी की तीसरी बैठक में प्रियंका गांधी ने पूछा, ‘पर्याप्त ईवीएम हैं?’

 

नई दिल्ली, 25 फरवरी । ‘एक देश-एक चुनाव’ से जुड़े विधेयकों की समीक्षा के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की तीसरी बैठक मंगलवार को संसद भवन परिसर में हुई। इसमें कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष ऋतुराज अवस्थी सहित चार कानूनी विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी।

सरकार ने ‘एक देश-एक चुनाव’ को अमली जामा पहनाने के लिए दो विधेयक लोकसभा में पेश किए थे। इनमें 129वां संविधान संशोधन विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 शामिल हैं।

जेपीसी की बैठक में पूर्व सीजेआई यूयू ललित ने कहा कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने से संसाधनों और समय की बचत हो सकती है, लेकिन इसके साथ ही संवैधानिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी ध्यान देना जरूरी है। ‘एक देश-एक राष्ट्र’ पर रिपोर्ट पेश करने वाली पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के सचिव नितेन चंद्रा ने कहा कि यह विधेयक असंवैधानिक नहीं हो सकता है। संविधान में कहीं यह नहीं कहा गया है कि चुनाव का टाइम फ्रेम तय नहीं किया जा सकता। यह सिर्फ चुनावों की समय सीमा को निर्धारित करने की बात है।

बैठक में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने भी महत्वपूर्ण सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि क्या हमारे पास इतनी ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) हैं कि हम एक साथ चुनाव करा सकें? उन्होंने सवाल उठाया कि ईवीएम की देखरेख और रखरखाव कैसे कियाजाएगा। एक साथ चुनाव कराने के लिए क्या तरीका अपनाया जाएगा?

लोजपा (रामविलास) की सांसद सांभवी चौधरी ने पूछा कि अगर चुनावों का समय तय हो जाता है, तो सरकारों के प्रति जवाबदेही पर क्या असर पड़ेगा? एक बार सरकार बनने के बाद लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही को कैसे तय किया जाएगा?

बैठक में अधिकांश सांसदों ने मध्यावधि चुनाव के बारे में सवाल उठाए। उन्होंने पूछा कि यदि कहीं मिड-टर्म चुनाव होते हैं और किसी को बहुमत नहीं मिलता और हंग मैंडेट होता है, तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? इस पर कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि इस सवाल का जवाब उचित तैयारी के साथ दिया जाएगा।

बैठक में पूर्व जस्टिस और लॉ कमीशन के पूर्व अध्यक्ष ऋतुराज अवस्थी ने इस बिल का समर्थन किया। उन्होंने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा कि यदि देश में एक साथ चुनाव कराए जाएं, तो इससे संसाधनों और पैसे की बड़ी बचत हो सकती है। उनके अनुसार, यह कदम प्रशासनिक स्तर पर भी सुविधाजनक होगा और चुनावी प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित बनाने में मदद करेगा।

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